Why Hero and Honda Separate: हीरो-होंडा की पार्टनरशिप देश की सबसे मजबूत ऑटोमोबाइल पार्टनरशिरप में से एक मानी जाती थी. लेकिन दोनों कंपनी के बीच कुछ ऐसा हुआ कि सालों की ये पार्टनरशिप खत्म हो गई. दोनों कंपनियों ने अपने रास्ते अलग कर लिए और आगे चलकर एक-दूसरे की टक्कर देने वाली की कंपनी बन गई. पहले हीरो-होंडा को लोहग एक ही कंपनी के तौर पर देखते थे. लेकिन, ये दोनों कंपनियां आपसी साझेदारी के साथ काम कर रही थीं. हीरो और होंडा की इस 26 साल की पार्टनरशिप का अंत साल 2010 में हुआ. चलिए जानते हैं कि इस मजबूत पार्टनरशिप के बीच दरार के पीछे की क्या वजह थी.


हीरो-होंडा की पार्टनरशिप की नींव


हीरो कंपनी की शुरुआत ब्रजमोहनलाल मुंजाल ने साल 1956 में की थी. हीरो की साइकिल्स को पूरे देश में काफी पसंद किया जाता था. हीरो ने 80 के दशक तक अपनी साइकिल को एक्सपोर्ट करना भी शुरू कर दिया. उस दौर में इंडियन मार्केट में मोटरसाइकिल की डिमांड दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई दिख रही थी. उस दौरान किफायती दाम में बाइक लॉन्च करने का प्लान हीरो ने बनाया. लेकिन भारतीय बाजार में बेहतर बाइक उतारने के लिए हीरो को एक पार्टनर की जरूरत थी, इसके लिए ब्रजमोहनलाल मुंजाल ने होंडा कंपनी को प्रपोजल भेजा.


ब्रजमोहनलाल मुंजाल के भेजे गए प्रपोजल के तहत हीरो बाइक के लिए मॉडल तैयार करने वाली थी. वहीं उसकी होंडा से डिमांड थी कि वो बाइक के लिए इंजन तैयार करके दे. होंडा ने हीरो के प्रपोजल को स्वीकार किया और साल 1984 में दोनों कंपनियों के बीच साझेदारी का एग्रीमेंट तैयार हो गया. इस एग्रीमेंट में ये भी तय किया गया कि दोनों कंपनियां अब अलग-अलग किसी राइवल प्रोडक्ट को लॉन्च नहीं करेंगी.


चल पड़ी हीरो-होंडा की गाड़ी


हीरो-होंडा की इस साझेदारी से आम लोगों की रेंज की बाइक बनकर तैयार हुई. साल 1985 में हीरो-होंडा ने CD100 को लॉन्च किया. इसी के साथ ये बाइक हर मिडिल क्लास व्यक्ति की पसंद बनती चली गई. हीरो-होंडा की इस बाइक की सक्सेस को देखते हुए और भी बाइक निर्माता कंपनियों ने इस तरह की बाइक बनाने का काम शुरू किया.


ऐसे पड़ी हीरो-होंडा में दरार


हीरो-होंडा भारतीय बाजार में अपनी पकड़ बना चुकी थी. लेकिन दोनों कंपनियों के बीच दरार तब पड़ी, जब साल 2008 में हीरो-होंडा ने दूसरे देशों में अपनी बाइक को एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया. होंडा की दूसरे गई देशों में सब्सिडरी कंपनियां भी थीं. इस वजह से होंडा ने ये प्रस्ताव रखा कि बाहर के देशों में हमें अपनी अलग-अलग बाइक को लॉन्च करना चाहिए. इसके लिए होंडा ने चार बोर्ड मेंबर्स की टीम बनाई, जिसमें भारत और बैंकॉक के होंडा के हेड शामिल थे और दो मेंबर्स को होंडा ने नॉमिनेट किया था. इससे होंडा ग्रुप को अलग से स्ट्रेटजी और प्लान बनाने का एक्सेस मिला और हीरो-होंडा के पास होंडा के अलग से प्लान का कोई एक्सेस नहीं था.


दोनों कंपनियों के बीच इसी खींचतान के बीच होंडा ने दूसरी कंपनी के साथ मिलकर स्कूटर बनाना भी शुरू कर दिया. होंडा के अलग मॉडल हीरो-होंडा की बाइक्स को टक्कर दे रहे थे. ऐसा देखते हुए ब्रजमोहनलाल मुंजाल के बेटे पवन मुंजाल ने इसके विरोध में होंडा के सामने शर्त रखी कि या तो होंडा अपने अलग से मॉडल उतारना बाजार में बंद कर दे या इस 1984 में हुए एग्रीमेंट को खत्म कर दिया जाएगा. इस खींचतान का नतीजा ये निकला कि 16 दिसंबर, 2010 में ये पार्टनरशिप टूट गई.


26 साल की पार्टनरशिप का हुआ अंत


होंडा ने हीरो को साल 2014 तक पूरा टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट देने का वादा किया, क्योंकि हीरो-होंडा की पार्टनरशिप में होंडा बाइक्स के लिए इंजन बनाने का काम कर रहा था. इसके बाद मुंजल परिवार ने होंडा के 26 फीसदी स्टेक को खरीद लिया. साथ ही हीरो ने होंडा को उसकी सर्विस के लिए रॉयल्टी भी दी. इन सब बातों के साथ ही देश की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल पार्टनरशिप में से एक हीरो-होंडा की साझेदारी 26 साल बाद टूट गई.


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