कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल: अनगिनत दाग से भरपूर है चीन की तरक्की
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीसी की स्थापना को आज सौ साल पूरे हो गए.रुस की क्रांति के बाद मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांत पर माओत्से तुंग ने साल 1921 में जिस पार्टी की नींव रखी थी,वह आज भारत समेत दुनिया के तमाम ताकतवर देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.दिसंबर 2019 में वुहान प्रांत की लैब से निकले या जानबूझकर निकाले गये जिस कोविड वायरस ने कोरोना जैसी महामारी फैलाकर समूची दुनिया को हिलाकर रख दिया, वही चीन आज जश्न मना रहा है.
लाखों बेगुनाह लोगों की मौत पर मातम मनाने की बजाय खुशी का इज़हार करने की यह मिसाल इतिहास के पन्नों मे स्याह इबारत में लिखी जायेगी, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ बेहद मायूसी के साथ पढ़कर सोचने पर मजबूर होंगी कि क्या दुनिया में ऐसा भी कभी हुआ था.
पिछले करीब दो दशकों में चीन ने बेशक बेहद तेजी के साथ तरक़्क़ी की है लेकिन उसके दामन में अनगिनत ऎसे दाग हैं,जिसे दूसरे मुल्क तो छोड़िए, खुद चीन के नागरिक ही नहीं भूल सकते.समाजवाद का राग अलापने वाले मुल्क पर एक सदी से राज कर रही इसी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने 32 बरस पहले अपने हक़ की आवाज़ उठाने वाले हजारों निहत्थे नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था जिसमें बड़ी संख्या में छात्र भी थे.जिस थ्यानमेन चौक पर उन्हें सेना के टैंकों के नीचे कुचला गया था,आज वहीं पर सौ साल का जलसा हो रहा है.
दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बनने की राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भूख ने आज अमेरिका,फ्रांस,ब्रिटेन, जापान जैसी लगभग सभी विकसित ताकतों के हुक्मरानों की नींद उड़ा रखी है कि आखिर इसकी नीतियों का इलाज कैसे किया जाए और भारत भी इससे अछूता नहीं है.अपने सबसे घटिया उत्पादों से भारत को पाटकर वह हमारे देश की अर्थव्यवस्था को हिलाने का काम तो एक दशक पहले ही कर चुका है जिससे आज भी उबर पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
साल 1962 की जंग के बाद से ही चीन हमेशा इसी ताक में रहता है कि किस तरह से भारत की जमीन को हथियाया जाये. अरुणाचल प्रदेशऔर लद्दाख में चीनी सेना से आये दिन होने वाली झड़पें उसका ही नतीजा है.
चीन ने भले ही 1948 में खुद को एक आजाद मुल्क घोषित कर दिया लेकिन कठोर कम्युनिस्ट विचारधारा को अपनाने वाली सरकार ने लोगों को आज भी उतनी आज़ादी नहीं दी है कि वे खुलकर विरोध में कुछ बोल सकें.मजदूरों का शोषण करने व अन्य धर्मों खासकर इस्लाम पर जुल्म ढाने के लिए भी वह कुख्यात रही है. तिब्बत में सांस्कृतिक क्रांति के जरिये लाखों लोगों को मारने व दलाई लामा को निर्वासित करने का तमगा भी उसके नाम है.
दुनिया में सबसे ज्यादा ब्राडबैंड कनेक्शन होने के बाद भी वहां लोगों को इंटरनेट फ्रीडम आज तक नहीं मिली है.चीन के लोग इंटरनेट पर वही देख सकते हैं जो सरकार उन्हें दिखाना चाहती है. इतना ही नहीं, वहां फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे कई लोकप्रिय ऐप भी प्रतिबंधित हैं.मौत की सजा देने के मामले में भी चीन अव्वल नम्बर पर है.वहां हर साल इतने लोगों को मौत की सजा दी जाती है कि बदनामी के डर से सरकार उसका आंकड़ा ही जारी नहीं करती.
भारत में जब कोरोना की दूसरी लहर अपने पीक पर थी,तब कम्युनिस्ट पार्टी के एक एकाउंट के जरिये सोशल मीडिया पर भारत का मजाक उड़ाने से भी चीन बाज़ नहीं आया.सोशल मीडिया साइट वीबो पर डाली गई इस पोस्ट में एक तस्वीर डाली गई थी जिसमें एक ओर चीन के रॉकेट को उड़ता दिखाया गया था और दूसरी ओर भारत में जलती चिताओं को दिखाया गया था.
तस्वीर के साथ लिखा था - "चीन में लगाई जा रही आग VS भारत में लगाई जा रही आग," इसमें चीन के नए अंतरिक्ष अभियान की तस्वीर डाली गई थी.हालांकि ऐतराज़ के बाद इसे अगले दिन हटा लिया गया था. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि चीन पहले भी भारत का दोस्त नहीं था और आज भी उसमें ऎसी कोई खूबी नहीं कि उस पर कोई भरोसा किया जाये.