BLOG: 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज स्वागत योग्य है...
यह विशाल पैकेज अगर गांव पहुंच रहे मजदूरों को वहीं रोजगार दिलाने में सहायक बन जाए, तो सोने पे सुहागा जैसी बात होगी.
लॉकडाउन के तीसरे चरण में कल शाम जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना संकट से उबरने की जद्दोजहद में 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का एलान किया तो अधिकतर लोगों की शिकायत यह रही कि उन्हें यह पैकेज समझ में ही नहीं आया. हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि यह कोरोना का कंपलीट पैकेज नहीं है, लेकिन इसमें स्थानीय लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की गहरी प्रतिबद्धता दर्शाई गई है, जो बड़ा उत्साहित करती है, क्योंकि गांव-गिरांव और गरीब तबके के उज्जवल भविष्य का रास्ता इसी में से होकर निकलेगा- कोरोना के समय भी, कोरोना के बाद भी.
यह विशाल पैकेज अगर गांव पहुंच रहे मजदूरों को वहीं रोजगार दिलाने में सहायक बन जाए, तो सोने पे सुहागा जैसी बात होगी. शहरों और महानगरों के आसपास की स्थानीय आबादी को बुनियादी ढांचे के विकास में भागीदार बना लिया जाए, तो क्या कहने! एक पंक्ति में कहूं तो यह पैकेज आर्थिक गतिविधियों के विकेंद्रीकरण का सुनहरी मौका उपलब्ध करा सकता है. हालांकि इस पैकेज में आरबीआई द्वारा पहले से ही दिया गया लिक्विडिटी पैकेज और दूसरी कई मदें शामिल हैं, इसलिए खेती, किसान, खेतिहर मजदूर, छोटे उद्यमियों, लघु एवं कुटीर उद्योगों को पैकेज में कितना हिस्सा मिल सकेगा यह कहा नहीं जा सकता. मोदी जी ने पिछले पौने दो लाख करोड़ रुपए वाले पैकेज की ही भांति इस पैकेज को भी विस्तार से समझाने की जिम्मेदारी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कंधों पर डाल दी है.
सीतारमण ने पिछली बार 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए के राहत पैकेज को जिस तरह से विखंडित किया था, उसमें विभिन्न मदों के बजट आवंटन का हिस्सा भी शामिल कर लिया गया था. इस बार लोगों के हाथ में छह-सात लाख करोड़ रुपए की वास्तविक रकम आ सकती है. सरकार वर्ष 2020-21 के स्वीकृत बजट से एकदम अलग 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज नहीं दे सकती क्योंकि वित्तीय घाटे को लेकर उसकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के साथ एक प्रतिबद्धता है. इसलिए पैकेज का जोड़ पूरा करने के लिए उक्त राशि में उद्योग-धंधों को दी जाने वाली कर रियायतें और बैंकों दे दिए जाने वाले अंधाधुंध कर्ज की रकम भी शामिल करनी पड़ेगी. इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए सरकार को अतिरिक्त नोट भी छापने पड़ने सकते हैं. लेकिन इस कदम से डॉलर के मुकाबले रुपए की दर कितनी गिरेगी, इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है!
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय की वेबसाइट बताती है कि वर्ष 2020-21 के लिए कुल बजट का अनुमान 30 लाख करोड़ रुपए है. इसमें मनरेगा, ग्रामीण विकास एवं पेयजल संबंधी योजनाओं के बजट प्रावधान शामिल हैं. ऐसे में भारी-भरकम दिखने वाले इस पैकेज के लिए वास्तविक रकम कहां से आएगी? हल्के-फुल्के अंदाज में बात करें तो मोदी जी के पैकेज को 2 व 8 अंक के संयोग और शब्दों की तुक भिड़ाने से भी डिकोड किया जा सकता है. हमेशा की तरह शाम 8 बजे उन्होंने ऐलान किया कि 20 लाख करोड़ रुपए का यह पैकेज 2020 में देश की विकास यात्रा को नई गति देगा. लोकल और वोकल जैसी बातें भी हुईं. कल्पना कीजिए कि 20 लाख करोड़ रुपए वाला पैकेज सुन कर उन लाखों मेहनतकशों के दिल पर क्या गुजरी होगी जो भूख-प्यास से बेहाल हैं और खाली जेब पलायन करने को मजबूर हैं.
सच्चाई यह है कि विश्व व्यापार संगठन वाले समझौते के तहत सरकार लोकल को एक हद से आगे संरक्षण नहीं दे पाएगी. जाहिर है कि पैकेज का पैसा घूम फिर कर बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों की जेब में ही पहुंचना है. आयात-निर्यात केंद्रित हमारे लघु और मझोले उद्योगों के पास नकदी है ही नहीं. होना यह चाहिए कि इस पैकेज में से लगभग 5 लाख करोड़ रुपए एसएमईज को शून्य ब्याज दर पर कर्ज के रूप में सीधे ट्रांसफर किया जाए, ताकि वे रोजगारपरक गतिविधियां शुरू कर सकें और पलायन करने को विवश वर्कफोर्स अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सके.
पीएम ने अपने संबोधन के दौरान कहा कि हमें आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा, बनना चाहिए, होना होगा.लेकिन मोदी जी ने यह नहीं बताया कि आत्मनिर्भर बनने का उनका रोडमैप और उसे अमल में लाने के लिए केंद्र का मास्टर प्लान क्या है. फिलहाल रोडमैप यह होना चाहिए कि केंद्र सरकार कमजोर वर्ग की महिलाओं को बेसिक इनकम दे और उन्हें छोटे रोजगारों के बारे में शिक्षित करे.
आर्थिक रूप से बदहाल श्रमिक वर्ग के खातों में सीधे नकदी ट्रांसफर करे. इससे वे स्थानीय रोजगार, जैसे कि छोटी डेयरी खोलना, देसी खान-पान को बढ़ावा देना, स्थानीय काष्ट एवं हस्तशिल्प का व्यापार, बकरी-मुर्गी पालन आदि शुरू कर सकेंगे और अपना परिवार पालते हुए लघु बचतें भी कर सकेंगे. लॉकडाउन के चलते गांव लौट रहे लाखों मजदूरों को यह पैकेज अगर तत्काल राहत दे सके, तो इसकी सार्थकता कई गुना बढ़ जाएगी. अगर वर्तमान पैकेज का ज्यादा से ज्यादा अंश किसानों, मजदूरों, एसएमईज के खाते में नहीं जाता, तो निश्चित है कि आने वाले दिनों में कमजोर वर्ग का जीना दुश्वार हो जाएगा.
(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)