आरबीआई ने 2000 के नोट को लेकर जो आदेश दिया है, उसको साफ समझने की जरूरत है. निर्देश बिल्कुल साफ है कि यह नोट 'लीगल टेंडर' है, यानी यह कानूनी तौर पर मान्य है, इसकी मान्यता निरस्त नहीं की गयी है. आरबीआई ने 2019 से ही 2000 के नोट छापने बंद कर दिए थे. नोट जो प्रचलन में हैं, वो कितने दिनों तक चलेंगे, वो तो अब खराब होंगे, लगातार हाथ बदलते हुए. इसलिए भी सरकार ने यह घोषणा की है कि 2000 का नोट सरकार सर्कुलेशन में नहीं भेजेगी. जिसके पास है, वो रखना चाहे तो रखे. अब इसमें पेंच क्या है?
लोगों को यह लगेगा, और यह लगना बिल्कुल अनुमान है, गेसवर्क है कि सरकार अगले किसी भी दिन घोषणा कर सकती है कि अब यह नोट 'लीगल टेंडर' नहीं रहेगा, इसलिए वे उसको बैंक में जमा करेंगे, लौटाएंगे. थोड़ी-बहुत अफरातफरी मचेगी, अधिक नहीं मचेगी क्योंकि 2000 के नोट चार साल से छपे नहीं हैं, बहुत सर्कुलेशन में भी नहीं है. लोगों को लेकिन यही लगता है कि वो जो भी नोट ले रहे हैं, आखिर में बैंक में ही जमा करना होगा, तो ये सरदर्दी कौन ले, इसलिए ये खींचतान होगी.
यह नोटबंदी से अलग है. हां, लोगों को अगर पैनिक करना होगा तो उसको कौन रोक सकता है. बैंक भी अपने सारे पत्ते खोलेगा नहीं. तो, उसने 20 हजार का जो कैप लगाया है, या फिर KYC (नो योर कस्टमर) करवाएगा, वो इसी के लिए है.
'नोटबंदी' और 'आउट ऑफ सर्कुलेशन' में है फर्क
नोटबंदी इसलिए हुई थी, क्योंकि नकली नोटों की संख्या यानी काउंटरफिटिंग बहुत अधिक हो गई थी. इससे आतंकी गतिविधियों में बेशुमार बढ़ोतरी हुई थी और इस पर कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था. काउंटरफिटिंग मुश्किल इसलिए नहीं थी, क्योंकि वर्षों से एक ही नोट चला आ रहा था, तो उसका नकली बनाना आसान हो गया था. अब जरा, नोट के खेल को समझा जाए. सारा खेल भरोसे का है.
सरकार जो 100 रुपये का नोट दे रही है, वह बेसिकली क्या है...एक कागज का टुकड़ा ही तो है. सरकार जो उसको 'लीगल टेंडर' बता रही है, नागरिक जो उसको ले रहे हैं, दे रहे हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि हमारी उसमें आस्था है, संविधान के चलते हम सभी लोग उसको 100 रुपये के बराबर मान रहे हैं. आखिर, हम संविधान में भी क्या कहते हैं, जरा प्रस्तावना याद कीजिए. हम कहते हैं कि संविधान को हम आत्म-समर्पित करते हैं. तो, सारे लोग यानी भारत की पूरी जनता उसकी साइनिंग अथॉरिटी है, पार्टी है.
अब, नकली नोट के खेल को समझिए. जब आपका पड़ोसी मुल्क आतंक को बढ़ावा दे रहा है, या उसकी इकोनॉमी कमजोर है, तो आपके नोट की वैल्यू बढ़ती है. ऐसे में दो नंबर का काम करने वाले नकली नोट बनाने पर उतारू हो जाते हैं. इसी वजह से जो बड़े वैल्यू के नोट थे, उनको सरकार ने अचानक 2016 में ही बंद कर दिया था. इस बार नोटबंदी नहीं हुई है, लीगल टेंडर जस का तस है. सरकार ने बस ये कहा है कि वह इनको और नहीं छापेगी, सर्कुलेशन में नहीं लाएगी और सरकार ने चार महीने का समय दिया है कि जिन लोगों को वे नोट बैंकों में जमा करने हैं या बदलने हैं, वे कर सकते हैं.
नोटबंदी का हासिल किन टर्म्स में देखना चाहते हैं, वह भी मार्के की बात है. अगर ये कहा जा रहा है कि जितने नोट सर्कुलेशन में थे और वापस आ गए, वे लीगल पैसे थे तो अच्छी बात है. जो यहां के नागरिक थे, उन्होंने वापस कर दिया. जो आपके काउंट में ही नहीं था, वह भला कहां से आएगा? तो, इस बिन्दु पर तो आलोचना ही अजीब है. इसके बाद जो नकली नोट मिलने की घटना थी, आतंकी वारदात थे, उनमें बहुत कमी आई. जम्मू-कश्मीर तो ख़ासकर इसका क्लासिक उदाहरण है. वहां पत्थरबाजी की घटनाएं शून्य हो गई. वैसे भी इसको क्वांटिफाई करना मुश्किल है. हम को-रिलेट कर सकते हैं. जैसे, नोटबंदी की घटना हुई, फिर आतंकी घटनाओं में कमी आई, तो इसको हम जोड़ सकते हैं.
नोटबंदी का हासिल जमाखोरों से पूछिए
अब 2016 की नोटबंदी क्यों हुई, 2000 के नोट क्यों लाए, फिर क्यों हटा रहे हैं, इन बातों को समझने के लिए थोड़ा इतिहास खंगालना पड़ेगा. उस समय जो किया गया, उसमें दो मसले थे. सबसे पहली बात ये कि हम तुरंत ही इस मुद्दे को रिवाइव नहीं कर सकते. अगर हम 1000 या 500 के नोट रातों-रात हटाते हैं, तो उतने हाई वैल्यू के नोट को रिवाइव तो करना पड़ेगा. इसलिए, 500 के साथ जो दूसरा हाई वैल्यू का नोट सरकार ने दिया, वह 2000 का था. इसलिए, उच्चतर डिनॉमिनेशन का नोट लाए. इसका तर्क ये था कि जो पैसा है, बड़ा अमाउंट है, वह इधर-उधर न हो.
दूसरा, सरकार का ज़ोर डिजिटलाइजेशन पर था. यही UPI आया और वह गेम-चेंजर था. जो भी विकसित देश होते हैं, वहां उच्चतर मूल्य के नोट नहीं होते. वहां तो ज्यादातर लेनदेन डिजिटल होता है. रोजाना ट्रांजैक्शन छोटे नोटों से होता है. अब लॉजिक ये बनता है कि 2000 के नोट अगर अभी भी चलाएं, तो वह ब्लैक मनी को फिर से बढ़ावा देगा. इसीलिए, धीरे-धीरे उन नोटों को कम छापते-छापते सरकार ने उनका छापना ही बंद कर दिया. इसके बाद लोगों का धीरे-धीरे भरोसा बढ़ा और डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ा. आज आप यूपीआई से लेनदेन देख ही रहे हैं. यहां तक कि सब्जी के ठेलेवाला या पानवाला तक उससे भुगतान ले रहा है. पांच-पांच रुपये तक का लेनदेन यूपीआई से ही हो रहा है.
सरकार का लक्ष्य इकोनॉमी को डिजिटल करना
अब ये जानना चाहिए कि इससे फायदा क्या होता है? मनी का सर्कुलेशन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी है, बल्कि अनिवार्य है. जैसे, आपने 500 रुपये लेकर गुल्लक में डाल लिए, तो कोई बिजनेस नहीं हुआ. वहीं वो 500 अगर आपने अपने ड्राइवर को दिए, उस ड्राइवर ने सिनेमा हॉल में टिकट खरीदा, टिकटवाले ने उससे मोबाइल रिचार्ज कराया और मोबाइल रिचार्ज करवाने वाले ने सब्जी खरीदी. तो, वह 500 रुपया 5 हाथों में घूमा और उसकी वैल्यू हो गयी पांच गुणा यानी, 2500 रुपये. जीडीपी का आकलन इसी आधार पर होता है, इसीलिए मुद्रा का वितरण में (यानी, मनी का सर्कुलेशन में) रहना ही फायदेमंद है.
इसी से समझिए कि जो बड़े नोट हैं, उनका ट्रांजैक्शन कहां होगा. उनका इस्तेमाल दिन-ब-दिन की गतिविधि में तो होगा नहीं. इसलिए, उनका रियल एस्टेट में या गैर-कानूनी गतिविधियों में इस्तेमाल होने या जमाखोरी का डर रहता है. शुरू में भी सरकार को हाई डिनॉमिनेशन यानी उच्चतर मूल्य वाले नोट तो लाने ही नहीं थे, लेकिन इन्होंने चूंकि अचानक से घोषणा की थी, तो उतना सारा पैसा वापस आ जाए, इसके लिए इनको 2000 के नोट चलाने पड़े. अब वह खत्म हो रहा है.
सरकार का लक्ष्य आखिरकार भारत में भी विकसित देशों की तर्ज पर लेनदेन को डिजिटल मोड में ले जाना है और कैश में जो नोट हैं, उनकी वैल्यू कम से कम रखने की है. इसके पीछे तर्क ये है कि अगर लोगों के पास हाई-डिनॉमिनेशन के नोट होते हैं, तो वो होर्डिंग और स्टोरेज शुरू कर देते हैं. सरकार का उद्देश्य है कि अधिक से अधिक पैसा सर्कुलेशन में रहे, जिससे इकोनॉमी बूस्ट हो. नोट जितने छोटे डिनॉमिनेशन का होगा, वो उन लोगों के भी इनक्लूसिव होगा, जिनके पास बहुत पैसा नहीं है. कल को अगर कोई गरीब रिक्शेवाला भी आपके इस आर्थिक-चक्र में आ जाता है, तो वह आपकी सफलता ही कही जाएगी.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)