अगला लोकसभा चुनाव पीएम मोदी बनाम राहुल गांधी होगा या फिर मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष का चेहरा अरविंद केजरीवाल होंगे? इस सवाल का पुख्ता जवाब तो फिलहाल किसी के पास नहीं है लेकिन बीते कुछ दिनों से जिस तरह की सियासी तस्वीर बनती दिख रही है, उसके आधार पर कह सकते हैं कि मोदी को टक्कर देने के लिए विपक्ष के पास केजरीवाल से ज्यादा प्रभावी व मजबूत चेहरा शायद और कोई नहीं है. बीते हफ्ते शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और केजरीवाल के बीच हुई मुलाकात ने इस कयास को और भी ज्यादा मजबूत किया है. 2024 के लिए केजरीवाल ने उद्धव का साथ मांगा था,जिसके जवाब में ठाकरे ने कह दिया है केजरीवाल आगे बढ़ें, शिव सेना उनके साथ है.


इस बयान के सियासी मायने यही हैं कि उद्धव ठाकरे विपक्षी एकता की पिच पर केजरीवाल के लिए बेटिंग करने के लिए अब खुलकर सामने आ गये हैं. फिलहाल वे महा विकास अघाड़ी गठबंधन में एनसीपी और कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन इस बयान का मतलब यही निकाला जा रहा है कि उद्धव भी ये समझ चुके हैं कि मोदी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो केजरीवाल के मुकाबले ज्यादा मजबूत हो या फिर जिसकी जनता में उतनी गहरी पैठ हो. हालांकि विपक्षी एकता के लिए अग्रणी रहने वाले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार भी पहले कई बार कह चुके हैं कि ये जरुरी नहीं है कि विपक्ष से पीएम पद का उम्मीदवार कांग्रेस से ही कोई चेहरा होगा. यानी वे भी इस पक्ष में हैं कि अगर कोई गैर कांग्रेसी नेता ज्यादा प्रभावशाली है,तो सबको उस पर सहमति बनाते हुए बीजेपी सरकार को शिकस्त दी जा सकती है.


ठाकरे-केजरीवाल की मुलाकात के बाद सियासी गलियारों में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि अब उद्धव की कोशिश यही होगी कि शरद पवार को भी केजरीवाल के नाम पर राजी किया जाये. बीते कुछ सालों की सियासी हलचल पर गौर करें,तो शरद पवार ने केजरीवाल के ख़िलाफ़ कभी कोई बयान नहीं दिया है,इसलिये  ऐसा नहीं लगता कि किसी अहं को लेकर दोनों के बीच कोई टकराव रहा हो.हो सकता है कि बीएमसी चुनावों से पहले केजरीवाल की शरद पवार से मुलाकात हो,जिसके बाद तस्वीर कुछ और साफ होगी. वैसे इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस के बगैर कोई भी विपक्षी एकता अधूरी ही मानी जायेगी, इसलिये बड़ा सवाल ये है कि क्या कांग्रेस केजरीवाल के नाम पर  इतनी आसानी से मान जायेगी. 


हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बीते दिनों ही दोहराया है कि पार्टी ने कभी नहीं कहा कि चेहरा कौन होगा. हम चाहते हैं कि सारा विपक्ष पहले मिल-जुलकर चुनाव लड़े और फिर बाद में आम सहमति से तय हो कि पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा. वैसे भी विपक्षी दलों की एकमात्र प्राथमिकता तो यही होनी चाहिए वे आपस में वोटों का बंटवारा करने वाली राजनीति को परे रखकर पहले तो ये तय करें कि कौनसी पार्टी,किस सीट पर बीजेपी को हराने की ताकत रखती है,उसके मुताबिक ही उस दल को वहां से चुनाव लड़ने दिया जाये. आखिरकार पीएम पद के उम्मीदवार के लिए अंतिम फैसला तो तभी होगा,जब समूचा विपक्ष 272 सीटों के जादुई आंकड़े को छू लेगा. लिहाज़ा, कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को इस सच्चाई को समझना होगा कि फिलहाल पीएम पद के चेहरे से ज्यादा महत्वपूर्ण ये रणनीति बनाने की है कि 272 के लक्ष्य को आखिर कैसे हासिल किया जाये. 


उद्धव ठाकरे-केजरीवाल की मुलाकात के बाद पार्टी सांसद संजय राउत ने दावा किया था कि देश के प्रमुख नेता उद्धव ठाकरे के संपर्क में हैं,जिसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में  दिखाई देगा.उनके मुताबिक उद्धव ठाकरे, केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच राष्ट्रीय राजनीति को लेकर चर्चा हुई है और कुछ भूमिका तय की गई है.सब कुछ जल्द ही सामने आएगा.हालांकि आम आदमी पार्टी के साथ किसी तरह के गठबंधन की संभावना पर राउत ने कहा कि फिलहाल इस संबंध में कुछ नहीं बोला जा सकता, पर देश के सभी प्रमुख नेता उद्धव ठाकरे के संपर्क में हैं. केजरीवाल के तारीफ की पुल बांधते हुए उन्होंने ये भी कहा था कि वे एक लड़ाकू नेता हैं.केंद्र सरकार केजरीवाल को बहुत परेशान कर रही है लेकिन हम सब मिलकर केंद्र से संघर्ष करेंगे.


वैसे दोनों नेताओं की ये मुलाकात इसलिए भी अहम है कि केजरीवाल और ठाकरे के बीच कभी कोई नजदीकी नहीं रही और न ही दोनों कभी साथ नजर आए थे.कयास लगाए जा रहे हैं कि बीएमसी के इलेक्शन में AAP और उद्धव की अगुवाई वाली शिवसेना एक साथ उतर सकते हैं.हालांकि  अभी तक AAP यही कह रही है कि वह अकेले ही (BMC) की सभी 227 सीटों पर लड़ेगी.हालांकि मुलाकात के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी केजरीवाल ने अपने पत्ते नहीं खोले थे और चिर-परिचित मुस्कान  बिखेरते हुए सिर्फ यही कहा था,जब चुनाव आएंगे तो देखेंगे…


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