तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के आंदोलन को आज सात महीने पूरे हो गये, लेकिन सरकार व आंदोलनकारी किसानों के बीच गतिरोध बरकरार है. किसान नए कानून वापस लेने की जिद पर अड़े हुए हैं, तो सरकार भी उनकी इस जिद के आगे झुकने को तैयार नहीं दिखती. अब तक सरकार व किसान संगठनों के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. सवाल यह है कि जो सरकार मुश्किल समस्या का हल भी चुटकियों में निकालना जानती हो, वह इस आंदोलन को खत्म करने का कोई रास्ता अभी तक क्यों नहीं निकाल पाई? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अब अंतिम विकल्प के रूप में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसान नेताओं को अपने यहां चाय पर बुलाएं और उनसे सीधी बात करके इसका हल तलाशें?
चूंकि सरकार किसी भी सूरत में कानून वापस लेने से इनकार कर चुकी है और बातचीत के जरिये इसका कोई हल निकलता नहीं दिखता, सो हो सकता है कि सरकार ने भी अब यही सोच रखा हो कि इन्हें आंदोलन करने दो. आखिर कितना लंबा खिंचेगा, थक-हारकर किसान भी वापस अपने घरों को लौट जाएंगे. लेकिन किसानों के तेवरों से लगता नहीं कि वे थकने वाले हैं या फिर हार मानने वाले हैं. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत तो ऐलानिया कह चुके हैं कि "अगर सरकार ने उनकी बातें नहीं मानीं, तो यह आंदोलन अगले तीन साल यानी जून 2024 तक ऐसे ही चलता रहेगा." इसलिये वक़्त का तकाजा है कि अब पीएम ही इस मामले को सुलझाने की पहल करें.
किसानों के आंदोलन को कमजोर करने के प्रयासों में भी कोई सफलता नहीं मिल पाई है. लिहाजा केंद्र सरकार ने गत 9 जून को धान समेत अन्य कई खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी बढ़ाकर किसानों को एक तरह से तोहफा दिया था कि शायद वे अब कुछ नरम पड़ जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, यह आंदोलन महज एमएसपी बढ़ा देने भर से खत्म नहीं होने वाला. सरकार और किसानों के बीच एक पेंच ऐसा फंसा हुआ है, जिस पर सरकार ने अभी तक कोई गारंटी नहीं दी है और किसान उस पर अड़े हुए हैं.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक़ उनकी अहम मांगों में से एक है कि "सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर ख़रीद को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी ख़रीद लागू रहे." अब सरकार ने एमएसपी बढ़ाकर यह तो साबित कर दिया कि सरकारी खरीद जारी रहेगी, लेकिन वह कम कीमत पर खरीद को अपराध घोषित नहीं करना चाहती. एमएसपी की गारंटी पर सरकार को नया कानून लाना होगा, जो कि वह लाना नहीं चाहती. यही वो पेंच है, जिसके कारण किसान डरे हुए हैं कि अपराध न होने की सूरत में बड़े पूंजीपति अपने हिसाब से औने-पौने दाम पर फसलों की खरीद करेंगे जिससे उन्हें खासा नुकसान होगा.
चूंकि अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश समेत छह राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं, लिहाजा विपक्षी दलों के लिए किसान आंदोलन एक अहम सियासी हथियार बनता जा रहा है. उन्हें लगता है कि आंदोलन का समर्थन करने से किसानों के वोट उनकी झोली में आसानी से आएंगे, जिसके जरिये वे बीजेपी की सत्ता-वापसी रोक सकते हैं. उसी को ध्यान में रखते हुए
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज अन्नदाताओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया. राहुल गांधी ने ट्वीट किया, "सीधी-सीधी बात है- हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ हैं." हालांकि इस सीधी-सी बात का सियासी मतलब आंदोलनकारी किसान भी बखूबी समझते हैं.
हालांकि किसानों की शंका दूर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार ट्वीट कर चुके हैं. एमएसपी पर प्रधानमंत्री ने पिछले साल 20 सितंबर को अपने ट्वीट में कहा था कि "मैं पहले भी कह चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं, MSP की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी ख़रीद जारी रहेगी. हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं. हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे."
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)