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स्वस्थ देश के लिए जरूरी है नागरिकों का स्वस्थ तन और मन, विभिन्न सेवाओं का सामंजस्य बढ़ाना जरूरी

देश में चुनावी माहौल है. चुनाव के कई मुद्दे उठते रहते हैं. भारत में स्वास्थ्य एक बड़ा मुद्दा है. देश की अधिक जनसंख्या के कारण एक तरह का दबाव चिकित्सकों और स्वास्थ्य सेवाओं और संसाधनों पर भी है. चुनाव का एक खास वक्त होता है जो पांच सालों पर आता है लेकिन स्वास्थ्य का चुनाव के लिए हर समय जरूरी है. स्वस्थ शरीर का चुनाव करना बहुत ही जरूरी है. भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है तो ऐसे में जरूरी है कि जनता अपने आप को स्वस्थ रखे ताकि स्वस्थ भारत का निर्माण किया जा सके. स्वस्थ का मतलब सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी स्वस्थ होना जरूरी है.

विकास की योजनाएं और स्वास्थ्य

सरकार के विकास की जो भी योजनाएं लोगों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करती है उनका भी एक कनेक्शन स्वास्थ्य से होता है. सिर्फ स्वास्थ्य विभाग का ही नहीं बल्कि बहुत सारे सरकार के ऐसे अंग होते हैं जिनका स्वास्थ्य से संबंध होता है और उसके लिए वो कार्य करते हैं, और ऐसा होना भी चाहिए. जब तक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क नहीं होगा तब तक स्वस्थ देश की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. अपने आप को स्वस्थ रखना भी सबकी जिम्मेदारी बनती है. सरकारी या प्राइवेट कई ऐसी एजेंसी हैं, जिसमें अगर कोई वैकेंसी भरी जाती है तो पहले स्वास्थ्य या फिटनेस का टेस्ट होता है, जिसमें सलेक्ट होना जरूरी होता है. सरकार की हर योजना स्वास्थ्य से कनेक्टेड है. स्वास्थ्य की लिए सरकार की ओर से भी कई योजनाएं चलाई जा रही है. सरकार के अलावा कई संस्थान है जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. जिससे कि जनता उनके साथ जुड़ सके. सरकार की ओर से आयुष्मान भारत, मातृत्व सुरक्षा योजना, शिशु सुरक्षा योजना या बालिका समृद्धि योजना आदि सीधे तौर पर स्वास्थ्य को फोकस में रखकर काम करती है. कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका सीधे तौर पर तो स्वास्थ्य से लगाव नहीं है लेकिन उनका असर कहीं न कहीं स्वास्थ्य पर पड़ता है.

विकास के लिए स्वास्थ्य आवश्यक

स्मार्ट सिटी की जो परिकल्पना की गई है उसमें सीटी स्मार्ट तभी होगी जब वहां के लोग स्वस्थ रहेंगे. एजुकेशन की जो भी योजनाएं है उनका भी स्वास्थ्य से कनेक्शन होता है. शिक्षा के माध्यम से ही तो स्वास्थ्य के बारे में जानने को मिलता है. उसी से तो अगली पीढ़ी को स्वास्थ्य के बारे में बताने में मदद मिलती है. अब स्कूल के शेड्यूल में तो पीटी, योगा, मलटिपल गेम आदि के कार्यक्रम निर्धारित किए गए हैं, जिनका सीधे तौर पर स्वास्थ्य से असर देखने को मिलता है. ऐसे खेल और कार्यक्रम शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य आदि से कनेक्टेड होते हैं. उज्ज्वला योजना भी सीधे तौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य को जोड़ता है. एक बंद कमरे में खाना बनाने से धुआं से जो बीमारी होती थी, फेफड़ा में कई तरह की समस्याएं होती थी, ऐसे बीमारियों को यह योजना दूर करती है. जन धन योजना का भी कनेक्शन स्वास्थ्य से हो सकता है. अगर खाते में पैसे रहते हैं तो अगर बीमारी या अन्य समस्याएं होती है तो उसके मदद से सरकारी या प्राइवेट में जाकर इलाज करा पाते हैं. 

स्वस्थ मस्तिष्क में देश का कल्याण

आज देश में 50 प्रतिशत आबादी 25 से कम आयुवर्ग की है. तो युवावर्ग के लिए आ रही योजनाएं और स्वास्थ्य से सामंजन की बहुत ही जरूरी है. आज के युवावर्ग में पीसीओएस काफी तेजी से बढ़ा है. ये उनके दिनचर्या और लाइफस्टाइल के कारण बढ़ा है. स्कूल की शिक्षा अगर इनसे कनेक्ट नहीं की जाएगी, तब तक ऐसे चीजों को भविष्य में दूर नहीं किया जा सकता. एजुकेशन को स्वास्थ्य से जोड़ने का काम होना चाहिए. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं या फिर प्राइवेट जो मेडिकल बीमा आदि की सुविधाएं देते हैं उसके पीछे कारण यही होता है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहे और मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के सही रखा जा सके. स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क ही देश के विकास के काम आएगा. सरकार स्तर पर कई ऐसे मंत्रालय है जिसके द्वारा अनुभव आपस में साझा किया जाता है रिसोर्सेज आदान प्रदान किए जाते हैं. सभी स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम कर सके इसके लिए ऐसा किया जाता है. देश में कोविड 19 के समय में देखा गया कि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने किस तरह से मिलकर कार्य किया, और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ. पूरी दुनिया ने भी देखा कि किस तरह भारत ने कोविड पर काबू पाया. चाइल्ड डेपलपमेंट, एजुकेशन टिपार्टमेंट, अर्बन डेपलपमेंट, वेलफेयर डिपार्टमेंट आदि का सीधे तौर पर स्वास्थ्य के साथ जुड़ाव है.

आधी आबादी बिन स्वस्थ भारत नहीं

महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य की बात करें तो एक ओर राष्ट्र तो विकास का काम कर ही रहा है लेकिन दूसरी ओर हमें अपने घर से भी इसकी शुरुआत करनी होगी. देश और धरती को भारतीय संस्कृति में मां की संज्ञा दी गई है. भारतीय नारी को भारत की संस्कृति से हमेशा से ही सर्वोच्च पर रखा है. इसको वापस लेकर आने की जरूरत है. रोजमर्रा की जीवन में उनके स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है. महिलाओं के सशक्तीकरण को स्वास्थ्य से जोड़ा जाएगा तभी सही रूप में महिलाएं सशक्त हो पाएंगी. घर पर महिलाओं में मां, बहन पत्नी आदि सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखती है चाहे वो व्यक्ति घर पर हो या कहीं वो बाहर गया हो, लेकिन ऐसा महिलाओं के प्रति लोगों में नहीं है. ये जबतक चेतना में नहीं आएगी तब तक आधी आबादी स्वास्थ्य के क्षेत्र में कैसे सशक्त होंगी. बिना आधी आबादी के स्वस्थ भारत की परिकल्पना कैसे की जा सकती है?

आधी आबादी सिर्फ अपने तक ही नहीं बल्कि पूरी आबादी को स्वस्थ रखने का काम करती है. अगर आधी आबादी ने स्वास्थ्य पर ध्यान दिया तो यकीनन पूरी आबादी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होगी. तकनीकी रूप से जो भी खामियां है उसे दूर किया जा रहा है. आने वाले समय में ये हम जरूर कह पाएंगे कि आधी आबादी को उसका पूरा हक इस समाज में मिल रहा है. समान काम के लिए समान पैसे और विकास में उनका सामान हक है ये हम कह सकेंगे. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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