(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
21 जुलाई: दो महिलाओं के जरिये रचा जा रहा है आधुनकि राजनीति का नया इतिहास !
हो सकता है कि आपको थोड़ा अज़ीब लगे लेकिन आज की तारीख़ को जरा याद रखियेगा, इसलिए कि मौजूदा दौर के देश का राजनीतिक इतिहास जब कभी लिखा जायेगा तो साल 2022 की 21 जुलाई का जिक्र किये बगैर वो अधूरा ही रहेगा. आज़ादी मिलने के 75 सालों बाद ऐसा हम पहली बार ही देखेंगे कि पहली बार एक आदिवासी महिला चुनावी मतगणना में बहुमत प्राप्त करते हुए राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने का सपना साकार कर रही होंगी, तो वहीं ठीक उसी वक़्त पर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी की कमान संभालने वाली एक महिला नेता सरकार की एक ताकतवर एजेंसी के सामने एक आरोपी के बतौर उनके हर सवाल का जवाब देने को मजबूर होंगी.
ये घटना सिर्फ हमारे देश के लिए नहीं बल्कि समूची दुनिया के लिए एक मिसाल शायद इसलिए भी बन सकती है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले भारत में एक ही वक़्त पर दो महिलाएं राजनीति की विपरीत धुरी पर जाती हुई दिखाई देंगी. अक्सर ये नजारा हमें अंतरिक्ष की आकाशगंगा पर देखने को मिलता है, जब दो ग्रह राहु व केतु एक दूसरे की विपरीत दिशा में रहते हुए अपने तांडव से लोगों को हैरान-परेशान किये रहते हैं, लेकिन देश की सियासत में ऐसा नजारा उन सभी को शायद पहली बार ही देखने को मिल रहा होगा, जो आजादी मिलने के बाद पैदा हुए हैं.
आज यानी गुरुवार की सुबह 11 बजे से संसद भवन में राष्ट्रपति चुनाव की काउंटिंग शुरु हो जाएगी, जिसमें एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है. लेकिन ठीक उसी वक़्त पर केंद्र सरकार की ताकतवर कही जाने वाली एजेंसी प्रवर्त्तन निदेशालय यानी ईडी ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपने दफ़्तर में पेश होने का फरमान दे रखा है. इससे पहले भी जांच एजेंसी ने सोनिया को समन भेजा था लेकिन कोरोना से संक्रमित होने के कारण इससे छूट दी गई और आखिरकार उन्हें 21 जुलाई को पूछताछ के लिए पेश होने का समन भेजा गया, जिसे सोनिया ने मंजूर कर लिया कि चूंकि अब वे स्वस्थ हैं, लिहाजा उन्हें कोई दिक्कत नहीं है.
सरकार की ताकतवर एजेंसी के मुखिया ने अगर अपना जरा-सा भी दिमाग चलाया होता, तो वे कभी भी सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए उस दिन नहीं बुलाते, जिस दिन राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना हो रही है. वे चाहते तो इस तारीख़ को आगे-पीछे भी कर सकते थे. हो सकता है कि उन्हें इस खतरे का अहसास ही न हो, जो कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हमारी सरकार विदेशी मीडिया में हुई बेवज़ह वाली बदनामी झेल चुकी है.
इस पहलू की तरफ गौर दिलाना इसलिए जरूरी है कि आज आने वाले राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे देश के मीडिया की सुर्खी बनेंगे, इसमें कोई शक नहीं है. जाहिर है कि विदेशी मीडिया भी भारत की इस बड़ी खबर को इग्नोर नहीं करेगा, लेकिन मोटे तौर कयास यहीं लगाए जा रहे हैं कि वो सोनिया गांधी से होने वाली पूछताछ को भी उतनी ही प्रमुखता से छापकर मोदी सरकार को निशाने पर लेने में शायद ही कोई कोताही बरतेगा.
इसके लिए हमें थोड़ा पीछे जाकर उन खबरों पर गौर करना होगा, जब विदेशी मीडिया ने भारत को बदनाम करने की भरपूर कोशिश की है. राजनीति का निष्पक्ष तरीके से विश्लेषण करने वाले कुछ जानकार मानते हैं कि आखिर हम इस सच से भी कैसे इनकार कर सकते हैं कि पिछले कुछ सालों में विदेशी मीडिया के एक ख़ास हिस्से की ये फितरत बन चुकी है कि आखिर भारत को कैसे बदनाम किया जाये और इसके लिए वो मौका तलाशता रहता है.
आपको याद होगा कि पिछले साल हमारे देश में जब कोरोना लहर की दूसरी सुनामी आई थी, तब देश में इस महामारी से मरने वालों की अधिकतम संख्या प्रतिदिन 3600 तक छू पाई थी और वह भी 135 करोड़ आबादी वाले देश के लिहाज़ से, तब WHO भी इसे कोई बेहद गंभीर स्थिति नहीं मान रहा था. इसके उलट इटली, फ्रांस, ब्रिटेन व अमेरिका जैसे हमसे बेहद कम आबादी वाले मुल्कों में हर रोज होने वाली मौत का आंकड़ा तकरीबन हमसे दोगुना था, लेकिन तब दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित कही जाने वाली TIME मैगज़ीन ने भारत के एक श्मशान घाट पर जलती हुई दर्जनों चिताओं की तस्वीर अपने कवर पेज पर छापकर दुनिया को ये बताने की कोशिश की थी कि, देखिये, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में कोरोना से हर दिन कितनी मौतें हो रही हैं और वह कोरोना महामारी से लड़ने में नाकाम हो रहा है.
तब बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता व सांसद अनिल बलूनी ने मेरे इसी कॉलम में ये कहा था कि "ये मोदी सरकार के बहाने भारत को बदनाम करने की विदेशी मीडिया के एक हिस्से सुनियोजित साजिश है, जिसे एक्सपोज किया जाना चाहिए, ताकि पता लग सके कि हमारे घर में बैठी कौन-सी ताकतें इसमें मदद कर रही हैं."
लेकिन तब कांग्रेस की मुखर प्रवक्ता रागिनी नायक ने बीजेपी के इस आरोप को ठुकराते हुए कहा था कि "चूंकि मोदी सरकार ने घरेलू यानी देश के मीडिया पर जबरदस्त शिकंजा कस रखा है. ऐसे हालात में अगर विदेशी मीडिया सच को उज़ागर कर रहा है, तो फिर उससे सरकार को डरना क्यों चाहिए. और, सत्तारुढ़ पार्टी के नेता अगर इसका विरोध कर रहे हैं, तो जाहिर है कि वे देश की जनता से एक बड़ा सच छुपा रहे हैं." इन दोनों बयानों को पढ़ने के बाद आपको लगता नहीं कि विदेशी मीडिया के लिए भारत के नए राष्ट्रपति का चुनाव नतीजा ज्यादा महत्वपूर्ण होगा या फिर सोनिया गांधी से होने वाली पूछताछ?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.