सब तो ठीक है, बस मन अंदर से अच्छा नहीं लागत...
मैं इस समय अपने गांव की एक बगिया में बैठा हूं. मेरे पास कोई काम नहीं है सिवाए रील्स देखने के. मैं पिछली 48 घंटे से एक ही रील्स बार-बार देख रहा हूं. मैं नरेंद्र दामोदार दास मोदी शपथ लेता हूं. तसल्ली मिलती है. सब तो ठीक है बस मन से अंदर से अच्छा नहीं लागत है. गांव जाता हूं लोग चिढ़ाते हैं, अबकी बार, बैसाखी सरकार...ऊंट पहाड़ के नीचे. ये तो सब मैं सह लेता हूं.
लेकिन अयोध्या...उफ्फ लगता है किसी ने सीने में सूई चुभो दी...बार-बार भूलने की कोशिश करता हूं... फिर मोदी जी की शपथ वाली रील देखता हूं. 400 पार वाला नारा दोबारा देख लेता हूं... लेकिन संसदीय दल की बैठक में सीएम योगी वाला चेहरा याद आ जाता है...लेकिन सरकार तो बन ही गई.सब तो ठीक है बस मन से अंदर से अच्छा नहीं लागत है.
गांव की पगडंडी से निकल रहा हूं...रील्स देख रहा हूं. कोशिश कर रहा हूं कि मेरी नजर किसी पर न मिले. तभी अचानक से आवाज लगाई नीतीश...मेरा दिल धक से हुआ...क्या हुआ कहीं..अंतरात्मा....ओह इतनी जल्दी...फिर एबीपी न्यूज खोलता हूं...ललन सिंह कुछ बोल रहे हैं...धुकधुकी बढ़ जाती है....आवाज तेज करता हूं...ललन सिंह कह रहे हैं...बिहार के लिए यशस्वी प्रधानमंत्री कुछ सोच रहे हैं...मन को तसल्ली हुई...सब ठीक है बस मन अंदर से अच्छा नहीं लागत...
घर से कुछ ही दूरी पर हूं...मन में तरह-तरह की शंकाएं बार-बार उठती हैं. प्रफुल्ल पटेल राज्यमंत्री ही बन जाते तो क्या बिगड़ जाएगा. कैबिनेट मंत्री बन ही जाएंगे तो क्या बदल देंगे. जेल जाने से बच गए हैं इतना काफी नहीं है...सब अवतारी पुरुष को ब्लैकमैल कर रहे हैं. हे राम दुबारा मत आना...अब यहां लखन हनुमान नहीं...
मन में सरकार बचाने की गणित बार-बार चलने लगती है...240 ही हैं...32 ही तो चाहिए...हमारे चाणक्य के लिए कौन सी बड़ी बात...टूटने के लिए सब तैयार हैं...कोई अटल जी थोड़े ही हैं...जो सरकार गिराकर रोएंगे....सब तो ठीक है बस मन अंदर से अच्छा नहीं लागत... चंद्रबाबू नायडू सबसे ज्यादा चुप हैं. ऐसा लग रहा है...खुश होने के लिए बैसाखी सरकार का ही इंतजार कर रहे थे...कभी उनको हंसते नहीं देखा...ये ठीक रहेंगे...
तभी याद आया...ये अभी जेल भी हो आए हैं. 53 दिन बाद वापस आए....अभी जीत के खुमार में हैं... कुछ दिन बाद कहीं जेल भेजे जाने वाली बात याद न आए जाए. 16 कम हो जाएंगे...कहां से आएंगे...निर्दलीय मिलाकर 17 हो रहे हैं...सरकार बन तो गई, कैसे चलेगी... सब तो ठीक है बस मन अंदर से अच्छा नहीं लागत...
(नोट: लेखक के अपने विचार हैं जो मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम पर व्यंग्य के तौर पर लिखा गया है)