अमृतपाल सिंह और उसके साथियों के ऊपर जो कार्रवाई हुई, वो जरूरी थी. इस कार्रवाई में समय लग रहा था तो लोगों में बेचैनी बढ़ रही थी. अजनाला पुलिस थाने में जो घटना हुई थी, उसके बाद अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई होना आवश्यक था. चूंकि हमला पुलिस पर किया गया था. उसमें कई पुलिस वाले घायल हुए थे और उसमें एक पुलिसकर्मी तो काफी गंभीर रूप से घायल हुआ था. कोई भी व्यक्ति या संगठन इस तरह से मनमानी नहीं कर सकता है. पुलिस के मनोबल को बनाए रखने और पंजाब में कानून का शासन है, ये संदेश देने के लिए कार्रवाई बहुत जरूरी थी.


ये तो पक्का है कि पुलिस कार्रवाई में देरी तो हुई और इसे लेकर अलग-अलग बातें कहीं जा सकती हैं. चूंकि पंजाब सरकार और वहां की पुलिस अमृतपाल के ऊपर कार्रवाई करके स्थिति को और बिगड़ने नहीं देना चाहती थी. ये भी हो सकता है कि पंजाब में जी 20 को लेकर कुछ बैठकें होनी थीं. उसे देखते हुए कार्रवाई को टाल दिया गया.


एक वजह ये भी हो सकती है कि पुलिस ने पुख्ता कार्रवाई करने के लिए पहले सारे सबूत इकट्ठा करना जरूरी समझा हो. एक कारण ये भी हो सकता है कि पंजाब सरकार की कार्रवाई और ढिलाई पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई हो. अभी हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच दिल्ली में मुलाकात हुई थी. ऐसा माना जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद ही पंजाब सरकार ने अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई करने की दिशा में आगे बढ़ी. कारण चाहे कोई भी हो आखिरकार पंजाब सरकार और वहां की पुलिस ने ये दिखाया कि कोई भी कानून के शासन को अपने हाथ में नहीं ले सकता है और मनमानी नहीं कर सकता है.


नफरत  फैला रहा था अमृतपाल


ये बातें भी सामने आ रही हैं कि पाकिस्तान में बैठे कुछ खालिस्तानी नेताओं और अलगाववादियों का उसे समर्थन था. ये भी कहा जा रहा है कि उसका संबंध आईएसआई से था. इसके अलावा उसे बाहर से फंडिंग मिलने की बातें सामने आती रही हैं. उसके साथियों के पास कुछ अवैध हथियार भी थे.


अमृतपाल रहस्यमय तरीके से दुबई से पंजाब आया और उसने पंजाबी अभिनेता और कार्यकर्ता दीप सिद्धू  के संगठन को हथिया लिया. इतनी जल्दी उसने अपने आप को सिख धर्म के उपदेशक के रूप में ढ़ाल लिया. जाहिर सी बात है कि केंद्रीय एजेंसियां भी उस पर निगाह रखे हुए थीं और ये स्वाभाविक सी बात है कि जब उसकी गिरफ्तारी हो जाएगी तो केंद्रीय एजेंसियां उससे अवश्य पूछताछ करेंगी.


ये भी हम नहीं भूल सकते हैं कि उसके कुछ समर्थक पंजाब में गिरफ्तार हुए हैं लेकिन उसके कुछ दबे-छिपे समर्थक भी हैं. कहीं न कहीं ऐसे संगठन और ऐसे लोग हैं जोअमृतपाल सिंह की पीठ पर अपना हाथ रखे हुए हैं और इसलिए वो इतनी तेजी से उभरा है. इनमें वो ताकते हैं जो दबे स्वर में खालिस्तान के नैरेटिव को आगे बढ़ा रहे हैं.


दूसरी जो सबसे खतरनाक बात है वो हिंदुओं और सिखों के बीच दूरी और मनमुटाव बढ़ाने का काम है. अमृतपाल और उसके साथी ये काम बहुत जोर-शोर से कर रहे थे. वो एक साजिश कर करे थे हम हिंदू नहीं है और हमें हिंदुओं से लेना देना नहीं है, उनकी परंपराएं और मान्यताएं अलग हैं. वो सिर्फ़ खालिस्तानी एजेंडे को ही आगे नहीं बढ़ा रहे थे, बल्कि साथ-साथ हिंदुओं और सिखों के बीच वैमनस्य पैदा करने का भी काम कर रहे थे, जो बहुत ही खतरनाक पहलू था.


पाकिस्तान में खालिस्तान की पैरवी करने वाले और उसको समर्थन देने वाले लोग रहे हैं. भले ही उनकी संख्या कम रही है. अमृतपाल को भी अभी कोई बहुत ज्यादा समर्थन नहीं है, लेकिन जिस तरीके से खालिस्तान समर्थक विदेश में ख़ासकर कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका और पाकिस्तान में सक्रिय हैं, उनकी और अमृतपाल के साथ उसके साथियों की भाषा एक है. ये जो खालिस्तान के नाम पर मुहिम चल रहा है,  इस पर लगाम लगाना आवश्यक हो गया था. जहां तक पंजाब में कुछ लोगों और राजनीतिक स्तर से अमृतपाल का समर्थन करने की बात है तो ये सही बात है कि उसको समर्थन मिला है.


पंजाब सरकार के लिए सिर्फ ये जरूरी नहीं है कि अमृतपाल और उसके साथियों के ऊपर ही कार्रवाई करे. ये भी उतना ही जरूरी है कि जो लोग खालिस्तान का नैरेटिव गढ़ रहे हैं, उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए. पंजाब में खालिस्तान के मुद्दे के खिलाफ एक नैरेटिव खड़ा करने की जरूरत है, तभी सही मायने में पंजाब सरकार को सफलता मिलेगी.


भगवंत मान सरकार ने अपनी भूल सुधार की है


आम आदमी पार्टी जब पहली बार पंजाब विधानसभा में चुनाव लड़ने उतरी तो उसकी पराजय का एक कारण यह भी था कि लोगों के बीच ये बात फैल गई थी कि ये लोग खालिस्तानियों का साथ लेने में जुटे हुए हैं. उनके समर्थन से सक्रिय हैं और इस वजह से उसे अपेक्षा से कम सीटें मिली थीं. लेकिन दूसरी बार उन्होंने सावधानी बरती थी. इसके बावजूद जो खालिस्तानी तत्व थे, उन पर कार्रवाई करने में वैसी तेजी नहीं दिखाई जा रही थी, जितनी होनी चाहिए थी.


अब तेजी से अमृतपाल और उसके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई करके एक तरह से आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपनी भूल सुधारी है. चूंकि पंजाब में खालिस्तान समर्थक उतने नहीं हैं जितना इन लोगों के द्वारा दिखाया जा रहा था. ये एक छोटा सा तबका है क्योंकि जब खालिस्तानी उग्रवाद अपने चरम पर था और उस दौरान पंजाब में जो विनाश लीला हुई, जो खून-खराबा हुआ उसे लोग भूले नहीं हैं. इसलिए पंजाब सरकार के लिए जरूरी हो जाता है कि वो इस खालिस्तानी आंदोलन के नाम पर जो मुहिम जारी है उस पर लगाम लगाए. वो जितनी तेजी से उस पर लगाम लगाएगी, उसका उतना ही लाभ उसे मिलेगा. खालिस्तान को हवा देकर आम आदमी पार्टी की सरकार बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी. चूंकि वो जो दौर था 1980-90 के दशक का वो बहुत ही भयावह था. ये बात देर से ही सही लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार को ये बात समझ में आ गई है. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल राजीव सचान से बातचीत पर आधारित है.]