राजनीति में एक कहावत है कि जिसने देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तरप्रदेश फतह कर लिया, वही दिल्ली के सिंहासन पर बैठने का हकदार भी बन जाता है. हालांकि मुलायम सिंह यादव और मायावती से लेकर अखिलेश यादव तक यूपी का सरताज़ तो बन गए लेकिन दिल्ली की गद्दी पाना उनका बस एक ख्वाब ही बनकर रह गया. लिहाज़ा, वो कहावत भी पिछले कई सालों से गलत ही साबित होती आ रही है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अगले तीन महीने के भीतर होने वाले यूपी के चुनावों में बाज़ी किसके हाथ लगने वाली है? यूपी के विधानसभा चुनाव को एक तरह से 2024 में होने वाले लोकसभा के 'मिनी चुनाव' के नजरिये से ही देखा जाना चाहिए क्योंकि इसके नतीजे ही दो साल बाद के सियासी मौसम का हाल बताएंगे.
वैसे तो कोई भी ये दावा नहीं कर सकता कि चुनाव से पहले होने वाले किसी भी सर्वे के नतीजे सौ फीसदी सही ही साबित होंगे लेकिन इसका मकसद लोगों का मूड भांपकर ये पता लगाना ही होता है कि उनकी पसंद और नापसंद में कौन-सी पार्टी पहले नंबर पर है. पिछले तकरीबन महीने भर से एबीपी न्यूज़ सी-वोटर के साथ मिलकर पांच चुनावी राज्यों की जनता के साथ बातचीत करके ये पता लगा रहा है कि आखिर वो चाहती क्या है. लोगों की राय जानकर काफी हद तक इन चुनावी राज्यों की तस्वीर साफ होती दिख भी रही है, इसीलिये हर राजनीतिक दल की उत्सुकता भी इस सर्वे के नतीजों पर लगी हुई है.
चूंकि यूपी सबसे बड़ा प्रदेश है, इसलिये हर कोई ये जानना चाहता है कि एक संन्यासी का सिंहासन अखिलेश यादव छीनेंगे या लखीमपुर खीरी कांड के जरिये रातोंरात मीडिया की सुर्खी बनने वाली प्रियंका गांधी का 'हाथ: इसे हिला पायेगा या फिर बेहद खामोश व अनुशासित होकर चलने वाला मायावती का 'हाथी' अपनी सूंड से कोई करतब दिखाने की हिम्मत जुटा पायेगा. हालांकि सर्वे के नतीजों के मुताबिक योगी का सिंहासन हिला पाना, फिलहाल तो इन तीनों के बूते से बाहर ही दिखाई दे रहा है लेकिन चुनाव वाले दिन क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी तो कोई बड़ा ज्योतिषी भी नहीं कर सकता.
अगर पिछले महीने हुए सर्वे और 9 दिसम्बर तक हुए इस ताजा सर्वे के नतीजों की तुलना करें, तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने वोट प्रतिशत के लिहाज से मामूली 3 प्रतिशत की बढ़त हासिल की है. लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि इसे मामूली इसलिये नहीं समझना चाहिए कि चुनावी-इतिहास बताता है कि कई बार दो-तीन फीसदी वोटों की बढ़त ने ही एक पार्टी की झोली में सीटों का ऐसा इज़ाफ़ा किया है, जिसके बारे में विरोधियों ने सोचा तक नहीं होगा. लिहाज़ा, सपा के वोटों में हुई इस तीन फीसदी की बढ़ोतरी को बीजेपी को हवा में उड़ाने की बजाय इसे अपने लिए खतरे का संकेत समझना चाहिये. हालांकि चुनाव होने में अभी तकरीबन तीन महीने का वक़्त बाकी है और तब तक सियासी तस्वीर भी हर दिन बदलती रहेगी. लेकिन अखिलेश यादव पांच साल बाद दोबारा सत्ता में वापसी के लिए जिस तरह की ताकत झोंक रहे हैं, उसे कमतर आंकना योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेतृत्व के लिए एक बड़ी नादानी ही समझा जाएगा.
यूपी की विधानसभा में 403 सीट हैं, यानी बहुमत के लिए 202 सीट चाहिए. इस सर्वे के मुताबिक फिलहाल तो बीजेपी आसानी से सरकार बनाती दिख रही है क्योंकि उसे 212 से 224 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है. लेकिन बीजेपी के लिए ये सीना चौड़ा करने की बात इसलिये नहीं है कि पिछली बार की तुलना में उसकी सीधे 100 सीटें कम होती दिख रही हैं. इसलिये पार्टी के लिए बड़ी चिंता का विषय तो ये होना चाहिये कि इन पांच सालों में तमाम विकास कार्य कराने और जनहित से जुड़ी ढेरों योजनाएं शुरु करने के बावजूद ऐसा क्या हो गया कि लोग उसकी झोली में से सौ सीटें छीनने का मन बनाये बैठे हैं. पार्टी को ये भी सोचना होगा कि हिंदुत्व के फायर ब्रांड चेहरे योगी आदित्यनाथ का जनाधार आखिर इतनी जल्द और इतनी तेजी से आखिर कम क्यों हुआ और इसकी असल वजह क्या है. हालांकि हम ये दावा कतई नहीं कर रहे कि चुनावी-नतीजे भी इस सर्वे के मुताबिक ही होंगे लेकिन चुनाव-पूर्व किये गए किसी भी सर्वे के नतीजे तमाम राजनीतिक दलों को जागरुक भी करते हैं कि वे अपनी खामियां टटोलें और उन्हें दुरुस्त करने की कोशिश करें.
सर्वे के नतीजों के मुताबिक सपा के वोट प्रतिशत में भले ही तीन फीसदी का इजाफा होता दिख रहा है लेकिन उसकी सीटों में फिलहाल कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिखता. उसे 151 से 163 तक सीटें मिलने का अनुमान है, यानी वो अभी भी बीजेपी से काफी पीछे है. चुनाव आते-आते सपा की लाल टोपी 'रेड अलर्ट' में बदलेगी या वो बीजेपी के लिए बड़ा खतरा बनेगी, इसका अंदाजा लगा पाना किसी भी सियासी नजूमी के बस की बात नहीं है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपने विश्वस्त सहयोगी सतीश मिश्र के जरिये पहले ब्राह्मण कार्ड खेलकर उन्हें साधने की कोशिश की और जब उसमें कामयाबी नहीं मिली, तो फिर उन्हें वही अपना दलित-पिछड़ा वर्ग याद आया. हालांकि वेस्ट यूपी में सपा-आरएलडी गठबंधन की काट में उन्होंने उन दोनों वर्गों के साथ ही जाट-मुस्लिम गठबंधन बनाने का भी ऐलान किया है. लेकिन सी वोटर के इस सर्वे में उनकी बीएसपी अभी भी तीसरे नंबर पर ही है और उसे 12 से 24 सीट मिलने का अनुमान बताया गया है.
लेकिन राजनीति में अपनी दादी इंदिरा गांधी की हूबहू कॉपी करते हुए यूपी में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने में जुटी प्रियंका गांधी का करिश्मा भी कामयाब होता नहीं दिखता. इस चुनाव में महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने का ऐलान और तमाम तरह के लोक-लुभावन वादे करने के बावजूद वे कांग्रेस को चौथी पायदान से ऊपर लाने में नाकामयाब होती दिख रही हैं. सर्वे के मुताबिक कांग्रेस की झोली में महज 2 से 10 सीट आ सकती हैं, जिसे पार्टी के साथ ही व्यक्तिगत रुप से प्रियंका के लिए भी एक बड़ा 'सेटबैक' समझा जायेगा. हालांकि चुनाव-पूर्व किया गया हर सर्वे सियासी हवा की एक मोटी तस्वीर ही पेश कर पाता है क्योंकि जनता बेहद समझदार है, वो बोलती कुछ है और करती कुछ और ही है.
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