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'असम में बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई है चुनावी स्टंट, CM हिमंत बिस्वा सरमा की मंशा सही नहीं'

इस देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून बहुत पुराना है. जब मैं सरकार में शामिल था, उस वक्त 2007 में इस कानून में संशोधन किया गया था और ये सुनिश्चित किया गया था कि कम उम्र के बच्चों की शादी नहीं हो. उस कानून में सज़ा और कार्रवाई के प्रावधान हैं.

असम में एक बार में तो बच्चों की इतनी शादियां नहीं हो गई. ये शादियां पहले से हो रही होंगी. हिमंत बिस्वा सरमा वहां 2021 से मुख्यमंत्री हैं. लेकिन उसके पहले भी 5 साल उन्हीं की पार्टी की सरकार थी. अचानक क्या हो गया कि असम की बीजेपी सरकार ने ये कार्रवाई शुरू की. जब हिमंत बिस्वा सरमा विपक्ष में थे या फिर जब सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री थे, उस वक्त भी उन्हें आवाज उठानी चाहिए थी.

राजनीतिक फायदा उठाने की कवायद

ये कहना कि 2026 तक लगातार कार्रवाई होते रहेगी, ये परेशान करने वाली बात है. 2026 में असम में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इसका मतलब आपकी मंशा ये नहीं है कि कम उम्र के बच्चों की शादी नहीं हो, उनके स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़े, बल्कि आपका इरादा सिर्फ राजनीतिक फायदा उठाने की है. हम लोगों को ऐसी जानकारी मिली है कि कुछ लोग ऐसे हैं कि जिनकी शादी कम उम्र में वर्षों पहले हो गई थी. अब वे लोग बालिग भी हो गए हैं. उस वक्त उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई और आज कार्रवाई करके बीजेपी सिर्फ एक माहौल बनाने का प्रयास कर रही है. कहीं-कहीं ये भी आरोप लग रहे हैं कि आप एक समुदाय के लोगों को परेशान कर रहे हैं.

कानून का राजनीतिक इस्तेमाल सही नहीं

कोई भी कानून राजनीति के लिए लागू नहीं होता है. कानून न्याय देने के लिए लागू होता है. कम उम्र में शादियां गैर-कानूनी हैं. हर रोज सैंकड़ों शादियां होती हैं. उनमें से एक-दो बाल विवाह का मामला होता है, तो पुलिस का काम है कि रूटीन की तरह वो उन मामलों में कानूनी कार्रवाई करे. असम में 7 सालों से बीजेपी की सरकार है और अब इस मसले पर राजनीति की जा रही है. कानून के पालन में कोई समझदार आदमी विरोध नहीं करेगा. लेकिन कानून का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है, इसलिए हम लोग इसकी निंदा कर रहे हैं. बाल विवाह को रोकने के लिए रूटीन तरीके से सालों भर काम होना चाहिए.

पीआर एवेंट के तौर पर इस्तेमाल

बीजेपी इसे पीआर एवेंट के तौर पर इस्तेमाल कर रही है. 8-9 साल पहले जिन बच्चों की शादी हो गई. अब वे बालिग भी हो चुके हैं. उनके बच्चे भी हो चुके हैं. ऐसे मामलों में अब कार्रवाई का क्या औचित्य है. इसमें उन बच्चों का क्या दोष है. असम में बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं, वहां अन्याय बढ़ रहा है. रोज नेशनल मीडिया में असम के बारे में नेगेटिव खबरें आती हैं. उन सब मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए असम सरकार ये सब कर रही है. राज्य सरकार का काम कानून व्यवस्था बनाए रखना है. पीआर इवेंट की बजाय असम सरकार को चाहिए था कि वो बाल विवाह से जुडे़ आंकड़े सामने रखती. वो बताती कि हमारे शासन काल में राज्य में बाल विवाह बढ़ा है, इसलिए कार्रवाई कर रहे हैं. लेकिन सरकार के पास न ही कोई आंकड़ा है और न ही सही नीयत. अगले विधानसभा चुनाव तक ये कार्रवाई जारी रहेगी, तो असम सरकार ये मानकर चल रही है कि उसके बाद राज्य में बाल विवाह होगा ही नहीं. जिस तरह से असम सरकार कार्रवाई कर रही है, उसका मकसद सिर्फ लोगों में भय का माहौल बनाना है.

कार्रवाई में भेदभाव सही नहीं

असम सरकार की इस तरह की कार्रवाई में भेदभाव की भी खबरें आ रही हैं. हिमंत बिस्वा सरमा जब कांग्रेस में थे तो बहुत धर्मनिरपेक्षता की बात करते थे. जब से बीजेपी में गए हैं, तब से वे समाज में नफरत फैलाने का काम करने लगे हैं. बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ और सिर्फ चुनावी नजरिए से लाभ लेने का स्टंट नज़र आ रहा है. बच्चियों की स्वास्थ्य और उनकी भलाई के लिए कोई भी अच्छा काम करेगा तो सब उसकी सराहना करेंगे. लेकिन सिर्फ चुनावी लाभ के मकसद से काम करना सही नहीं है. असम सरकार की ओर से ये पूरी कार्रवाई सोच समझकर की जा रही है. हिमंत बिस्वा सरमा को लगने लगा कि उनकी लोकप्रियता कम हो रही है, चुनाव में नुकसान होने की आशंका सताने लगी तो ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के हथकंडे का इस्तेमाल किया जा रहा है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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