आशुतोष राना की बुंदेली बौछार में भीगते हम...
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श्यामला हिल्स के आदिवासी संग्रहालय में बुंदेली बौछार के बुंदेली समागम का था लेकिन लगातार बारिश हो रही थी. आयोजकों को लगा कि बारिश की वजह से अब कार्यक्रम नहीं हो पाएगा. लेकिन श्रोताओं का जोश अलग था. बारिश की वजह से कार्यक्रम में होने वाली देरी के बावजूद वो आये जा रहे थे. आने वाले लोगों का सिर्फ एक सवाल था, और सवाल ये कि क्या राणा जी का कार्यक्रम शुरू हो गया है?
अभी नहीं, इतना कहते ही उनके चेहरे पर संतोष का भाव आता और वो सभागार की तरफ भागते. अंदर हाल खचाखच भरता जा रहा था और आशुतोष राणा बारिश की वजह से लगातार लेट हो रहे थे. हममें हैरानी इस बात की थी कि राणा को सुनन वालों की चाह रखने वालों में बुजुर्ग, राना के अनेक हमउम्र साथी, महिलाएं और बडी संख्या में नई पीढ़ी के नौजवान भी थे जिन्होंने राना के सीरियल और फिल्में तो कम देखी होंगी मगर सोशल मीडिया पर उनके वीडियो देखकर दीवाने हो चुके थे.
आशुतोष राणा जब दरवाजे पर आये तो सभागार से लेकर मंच तक उनके साथ चलने वाले प्रशंसकों की भीड़ सेल्फी और ऑटोग्राफ लेने के लिए उमड़ पड़ी. राणा जब मंच पर आय़े तो मंच की औरचारिकता राणा और श्रोताओं को थोड़ी देर ही औपचारिक रख सकी थी. राणा मंच पर थे और थोड़ी देर बाद दोनों ही अनौपचारिक हो गए थे. उनके काले कुर्ता-पायजामा, सैंडिल और उस पर उनके हल्के रंग के चश्मे ने समा बांध दिया.
राना ने दर्शकों से संवाद सागर के तीन बत्ती से की जब वो पहली बार गाडरवारा से सागर यूनिवर्सिटी पढने गये और ज्ञानी गुरु से मिले. राना का अभिनय के साथ गुरू की कद काठी का वर्णन हंसा हंसा कर लोट पोट करने वाला रहा. गुरू की घुसी आंखें तो राना निकल कर भागती आंखों वाले. पिचके गाल वाले गुरू जब कहते हैं कि हमारी ये कद काठी पर मत जाओ चकरा घाट पर हमें नहाते देख औरतों की नजर लगी और ऐसे हो गये. वरना हम भी जबर पहलवान थे. गुरू ने राना को गुरू ज्ञान दिया खाओ पियो छको मत, खेलो कूदों थको मत और लडकियों को देखो भालो तको मत, राना इस बात पर अपनी हंसी नहीं रोक पाये और सामने बैठे दर्शकों के साथ ठहाके लगाकर हंस पडे.
राना की यही सहजता उनके और श्रोताओं के बीच बिजली की गति से संबंध बना देती है और जब वो छोटी सी कुर्सी पर ही आलथी पालथी मार कर बैठ गये तो लोग समझ गये कि राना की चौपाल अब लंबी चलेगी. अब बात बुंदेलखंडी की करनी थी तो राना ने अपने बुंदेली प्रेम के किस्से सुनाने शुरू कर दिये.
फिल्मों में बुंदेली तो नहीं, हां बिहारी या यूपी की खडी बोली डायलाग्स में चलती है. राना ने कहा कि हम तो अपनी बुंदेली के शब्द और लंबे वाक्य भी खडी बोली में मिक्स कर देते थे और लोग कहते क्या बिहारी बोली है मजा आ गया. मगर मजा तो सामने बैठे राना के चाहने वालों को तब आया जब राना ने बुंदेली में आल्हा अपने ही अंदाज में गाना शुरू किया. बाहर मूसलाधार पानी बरस रहा था और अंदर राना अपने अभिनय और भाव भंगिमा के साथ आल्हा गा रहे थे.
भुजा बहत्त्तर फडकन लागे, नाचन लगे मुच्छ के बाल,
कट कट बोटी गिरे खेत में, उठ उठ रूंड करे टकरार,
एक को मारे दुई मर जाये, तीसरा खौफ खाये मर जाये,
मरी के नीचे जिंदा लुक गयो, उपर लूथ लई लटकाय.
और संयोग देखिये बुंदेलखंड के गांवों में आल्हा बरसते पानी में ही गाया जाता है. जब खेत के काम नहीं रहते और लोग चौपालों पर आल्हा उदल के वीर रस के काव्य गाते हैं. मगर यहां तो वीर रस का काव्य राना गा रहे थे जो फिल्मों में विलेन नहीं उनके ही शब्दों में प्रति नायक बन कर पहचान बना चुके हैं. आल्हा से शुरू हुये राना ने फिर बुंदेली रेप और बुंदेली राई सुनाई.
जी के राज में रइये,
उकी उसी कहिये,
उंट बिलैया ले गयी,
सौ हांजू हांजू कइये,
गाय दुधारू चइये,
तो दो लातें भी सइये,
तनक चोट के बदले,
फिर घी की चुपरी खइये.
बस फिर क्या था राना का चुटीला अंदाज हंसती आंखे, बोलता चेहरा और मंजे हुये मंचीय अभिनेता ने इस हास्य कविता के साथ सामने बैठी जनता को हंसा हंसा कर दोहरा कर दिया. मगर ऐसे कैसे हो सकता था कि मंच पर राना हो और बात आध्यात्म की ना हो तो दर्शकों की फरमाइश पर उन्होंने अपनी किताब रामराज्य के कुछ प्रसंग पढे और जिनको सुनकर हम दंग रह गये कि थोडी देर पहले हंसा हंसा कर लोट पोट करने वाले इस अभिनेता के पास इतनी गहरी भाषा, शब्दों से दृश्य रचने की कला और बेजोड भाव भी है.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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