चीन के साथ तीन साल पहले गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद भारत ने लगभग 3500 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक ढांचे, नियंत्रण और सामरिक ढांचे में काफी निवेश किया है. चीन के किसी भी विस्तारवादी कदम का जवाब देने के लिए भारत खुद को तैयार रख रहा है. चीन का विस्तारवादी रवैया किसी से छिपा नहीं है और वह भारत के साथ सीमारेखा का सम्मान करना तो दूर, एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. 


गलवान के तीन साल 


गलवान को तीन साल हो गए. इन तीन वर्षों में पहली बात तो यह साफ हो गयी है कि चीन बॉर्डर के इलाके में भारत के साथ किसी भी तरह के समझौते का न तो सम्मान करेगा, न ही किसी तरह के समझौते को सम्मान देगा. जैसे, एक समझौता हुआ था कि एलएसी के पास उनके कितने सैनिक रहेंगे, हमारे कितने रहेंगे, उनके राउंड्स की क्या शर्तें होंगी, और उन शर्तों के टूटने पर ही तो गलवान की घटना हुई थी. हमारे जो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की बात हुई थी, तकरीबन वो चीजें तय थीं, बॉर्डर फाइनल नहीं थी. वहां तय था कि एलएसी में लड़ाई नहीं होगी.


गलवान वाली घटना में ये सारी चीजें टूट गयीं. वैसी ही घटना और भी कई जगह हुई हैं. आक्रमण तो नहीं हुआ, लेकिन ऐसी घटनाएं बहुत हुई हैं. भारत सरकार की तरफ से फौज को काफी छूट दी गयी है. चीन की तरफ से किसी भी आक्रमण का जवाब दिया जाएगा, यह तय है. फौज की तैयारी में और एलएसी से सटे इलाकों को काफी मजबूत किया गया है. सेना को भी उपकरणों और सैन्य साजोसामान से लैस किया गया है. 



चौतरफा घेर रहा है चीन


हालात ठीक नहीं हैं. एग्रीमेंट नहीं है और एग्रीमेंट न होने की वजह से कभी भी गलवान की तरह की घटना कभी भी रिपीट हो सकती है. अगर समझौता हुआ रहता तो हम मानसिक तौर पर निश्चिंत रह सकते थे, और अभी भी हम उम्मीद यही करेंगे कि दोनों देश ठीक से रहेंगे, अपनी सीमाओं का सम्मान करेंगे, लेकिन हमें किसी भी तरह की घटना के लिए तैयार भी रहना चाहिए. कभी भी गलवान जैसी घटना हो सकती है. चीन की तरफ से काफी बंदोबस्त हो चुका है. हमारे एलएसी की तरफ उनकी हरकतें काफी बढ़ चुकी हैं, तनाव अभी पहले से भी अधिक है. दिक्कत यही है कि भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) को लेकर समझौता नहीं है. इसी वजह से भूटान में, नेपाल में और लद्दाख के इलाके में, सिक्किम में यानी चुनिंदा जगहों पर ये तनाव बढ़ा रहे हैं. जहां-जहां भी ये पीछे थे, वहां से ये आगे की ओर आ रहे हैं और पश्चिम से लेकर पूर्व तक इसीलिए पूरे इलाके में तनाव काफी बढ़ा हुआ है. 


समझौता नहीं, तो कड़वाहट बनी रहेगी


जब तक हमारे बीच एलएसी को लेकर समझौता नहीं होता, तब तक भारत और चीन के रिश्तों के बीच कड़वाहट बनी रहेगी, तनाव बना रहेगा और वास्तविक शांति दूर की कौड़ी ही होगी. सबसे बड़ी बात है कि दोनों ही पक्षों के बीच पहली शर्त तो यही हो कि एलएसी पर कोई हमला नहीं हो, झगड़ा या झड़प नहीं हो. दूसरे, इस बीच बातचीत लगातार चलती रहनी चाहिए. लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से बातचीत को बॉर्डर की तरफ ले जाना चाहिए. हमारे प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक ने यह साफ कर दिया है कि जब तक एलएसी पर शांति नहीं होगी, तब तक भारत और चीन के बीच शांति संभव नहीं है और यही वास्तविकता है. भारत और चीन के बीच हालांकि आज नहीं तो कल समझौता होकर रहेगा.


अभी दोनों ही पक्षों को यह कोशिश करनी होगी कि वह समझौता जल्द हो जाए. रास्ता तो एक ही है कि शांति और सौहार्द्र से मामलों को हल किया जाए. अगर शांति और सद्भाव से मामला नहीं सुलझा तो लड़ाई से बात होकर रहेगी. चीन का विस्तारवादी रवैया जगजाहिर है. उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बात किए बिना दक्षिण चीन सागर पर केवल नौसैनिक हमलों और ऑपरेशन के जरिए कब्जा कर लिया है. ताइवान पर उसके तेवर हम देख ही रहे हैं. भारत को भी वह आंखें दिखा रहा है. फिलीपीन और इंडोनेशिया के नजदीकी आइलैंड्स पर उसने कब्जा कर लिया है. इसको देखते हुए हमें एलएसी पर तो सावधान रहना ही पड़ेगा, उसके साथ ही इसके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा कि चीन कभी भी हमला कर सकता है. 


भारत को बॉर्डर के इलाकों में काम और भी करना पड़ेगा. चीन ने हैलीपैड से लेकर गांव तक बसा दिए हैं, बहुत कुछ एलएसी के पास किया है. भारत को भी इसी के मुताबिक काम करना पड़ेगा. हमारे सैन्य बलों को उपयुक्त तौर पर तैयार करना होगा. हमारी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना पड़ेगा, इसमें हमारी कमजोरी नहीं होनी चाहिए और तैयारी कस कर और भरपूर होनी चाहिए. 



[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]