हत्या के 75 साल बाद और बढ़ गई गांधी की प्रासंगिकता, अहिंसा-साम्प्रदायिक सौहार्द के हैं आदर्श
महात्मा गांधी को 30 जनवरी 1948 के दिन ही उस वक्त गोली मारी गई जब वे बिरला हाउस में रोजाना की तरफ प्रार्थना के लिए जा रहे थे. इस घटना के 75 साल हो गए. लेकिन, बदलती दुनिया और आज के परिवेश में उनकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है. जैसे-जैसे दुनिया एक तरह से टकराव की तरफ बढ़ रही है और वैश्विक स्तर पर जिस तरह के टकराव दिख रहे हैं, उसमें दिनों दिन गांधी और ज्यादा प्रासंगिक होते जा रहे हैं.
इसके साथ ही, उनके विचार हैं अहिंसा, शांति, प्रकृति, पर्यावरण के बारे में, वे एक तरह से वे पूरी दुनिया में अपनी प्रासंगिकता एक बार फिर से जाहिर कर रहे हैं. दुनिया में एक बार वे फिर से बड़े आकर्षण के केन्द्र बन गए हैं.
हम ये समझते थे कि 21वीं शताब्दी में युद्ध नहीं होंगे, लेकिन जिस यूरोप ने 2-2 विश्वयुद्ध देखें, वहां एक बार फिर से रूस-यूक्रेन के बीच जिस तरह की लड़ाई चल रही है और जिस तरह की गोलबंदियां हो रही है, देखिए एक तरफ नाटो है, एक तरफ रूस और चीन है. इसके साथ ही दुनिया के कई और देश हैं.
ये बताता है कि शांति दुनिया के अंदर कोई उपहार की चीज नहीं है बल्कि उसके लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है. उसके लिए सोचना पड़ता है, विचार के स्तर पर लड़ना पड़ता है.
गांधी की बढ़ गई प्रासंगिकता
जहां तक इंसाफ का सवाल है तो गांधी ने अफ्रीका में जो एक तरह से हाशिए पर गए लोगों और काले के न्याय के सवाल को बड़ा सवाल बना दिया. आपको याद होगा कि जब इराक पर अमेरिका ने हमला किया था या उसके बाद अफगानिस्तान का मसला आया, उस समय पूरी दुनिया में युद्ध विरोधी प्रदर्शन हुए. उस युद्ध विरोधी प्रदर्शन के अगर कोई नायक थे वो गांधी थे. ऐसे वक्त में जब आतंकवाद दुनियाभर में फैला हुआ है, उस समय अहिंसा का सवाल एक बहुत बड़ा सवाल बन जाता है.
जितने भी पीस मूवमेंट्स चल रहे हैं, जो पर्यावरण को लेकर नागरिक आंदोलन चल रहे हैं, वो अहिंसा पर खड़े हैं. आप देखिए एक छोटी सी लड़की ग्रेटाथनबर्ड जिस तरह के आंदोलन कर रही है, ये सब गांधी की ही सीख है. गांधी के ही अहिंसा और डेमोक्रेसी के नारे को लेकर ये लोग खड़े हो रहे हैं. मैं समझता हूं कि गांधी के विचार और ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं.
देश को गर्व होना चाहिए
मैं तो ये कहूंगा कि गांधी हमारे देश में हुए, इसका गर्व होना चाहिए. अल्बर्ट आंइस्टीन ने बिल्कुल ठीक कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को शायद यकीन नहीं होगा कि कोई इस तरह का व्यक्ति भी 20वीं शताब्दी में हुआ. एक भारतवासी होने के नाते गांधी के विचार, खासकर अहिंसा, शांति और पर्यावरण को लेकर जो विचार है, पर गर्व की अनुभूति करता हूं. उन्होंने एक बात कही थी आज वो इतने मुफीद हैं- उन्होंने कहा था कि इस धरती के बाद दुनिया के हर व्यक्ति के भूख मिटाने की ताकत है. लेकिन ये धरती एक आदमी का लालच नहीं पूरा कर सकता है.
तो जो लालच का सवाल है. दुनिया बर्बाद की तरफ क्यों बढ़ रही है? इसकी वजह लालच ही है. जो उपभोक्तावाद है, उसके कारण जिस तरह का हमारा उपभोग है, उसके कारण जो प्रकृति का नुकसान कर रहे हैं, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है. दुनिया में आज सबसे बड़ा सवाल जलवायु परिपर्तन का है. गांधी ने कहा था कि हमें अपने उपभोग को नियंत्रित करना होगा. मैं समझता हूं कि गांधी आज काफी प्रांसगिक हो गए हैं.
आज के नेताओं की सीख की जरूरत
गांधी कई बार मौन व्रत भी धारण करते थे. उनके शांतिपूर्ण अहिंसात्मक आंदोलन का एक रूप ये भी था कि वे कई बार मौन पर चले जाते थे. मैं समझता हूं कि आज के समय में हमारे नेताओं को मौन भी रखना चाहिए. मौन रखकर चीजों को गहराई से सोचना चाहिए. हर चीज पर तुरंत बयान देना ये सिर्फ प्रतिक्रिया है. इसका कोई नतीजा नहीं निकलता. ये सिर्फ लोगों को उकसाने और भरमाने की कोशिश बन जाता है.
गांधी से ये सीखने की जरूरत है कि बहुत सोच समझकर बोलिए, जितना जरूरी हो उतना बोलिए. ये बात सिर्फ नेताओं को ही नहीं बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को भी सोचना चाहिए. ये देश बुद्ध, कबीर और गांधी का है, जिन्होंने बिना सोचे अपने विचार कभी नहीं रखा. इसलिए आज के नेताओं कि लिए निश्चित तौर पर वे बहुत बड़ा संदेश हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]