अपनी जमीन पर आतंक को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान ने भारत का न्योता ठुकराकर रिश्तों को बेहतर बनाने के मौके का उपयोग करने की बजाय उसे और अधिक खराब करने की शुरुआत कर दी है. लिहाज़ा, सियासी व कूटनीतिक हलकों में ये सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान ने ये हेकड़ी दिखाने की जुर्रत आखिर किसके इशारे पर की है? अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत के कहने पर या फिर अपने आका चीन से हुक्म मिलने के बाद उसने ऐसी हिमाकत की है.
सामरिक रणनीति से जुड़े विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान भले ही तालिबान का खैरख्वाह है लेकिन तालिबान उसे ऐसी सलाह नहीं दे सकता क्योंकि उसके लिए आर्थिक तौर पर पाक के मुकाबले चीन व भारत ही ज्यादा मददगार साबित हो सकते हैं. फिर चाहे व्यापार की बात हो या अफगानिस्तान में नया निवेश करने की. तालिबानी सरकार इस हक़ीक़त से वाकिफ़ है कि जो पाकिस्तान खुद के लिए ही मदद का कटोरा लेकर घूम रहा हो, वह उसे माली तौर पर भला कैसे मजबूत कर सकता है. वैसे भी तालिबानी सरकार के नुमाइंदे ये कह चुके हैं कि वे भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने के पक्षधर हैं और कश्मीर का मसला उसका आंतरिक मामला है, इसलिये वे इसमें दखल नहीं देंगे.
हालांकि तालिबान के पुराने अनुभव को देखते हुए उसके दावों पर आसानी से यकीन करना भी बेहद मुश्किल है क्योंकि उसकी कथनी और करनी में बहुत फर्क होता रहा है. लेकिन ताजा मामले में विश्लेषकों को लगता है कि चीन के इशारे पर ही उसने भारत को अपनी झूठी अकड़ दिखाने का साहस किया है. इसकी बड़ी वजह ये है कि अब उसने भारत को तंग करने के लिए पाकिस्तान को एक बड़े टूल के रुप में इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई है. चीन न तो ये चाहता है कि अफगान संकट हल करने का सेहरा भारत के सिर पर बंधे और न ही वो ये चाहता है कि कश्मीर घाटी से आतंकवाद का खात्मा हो.
दरअसल, अफगानिस्तान संकट को सुलझाने और वहां के लोगों को मानवीय सहायता देने के मकसद से भारत ने 10 नवंबर को नयी दिल्ली में एक सम्मेलन आयोजित किया है. इसमें पाकिस्तान के अलावा चीन, रुस, ईरान,उज़्बेकिस्तान और तजाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA)को हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया है. चीन ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया है और उसके नक्शे कदम पर चलते हुए अब पाकिस्तान ने भी इस न्योते को ठुकरा दिया है.
जबकि कूटनीति के जानकारों की निगाह में पाकिस्तान के लिए ये एक बेहतरीन मौका था, जहां वह अफगान संकट के अलावा दोनों देशों के रिश्ते सामान्य बनाने की पहल का प्रस्ताव दे सकता था. चीन का दबाव अपनी जगह है लेकिन 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद से लेकर अब तक उसकी नीयत में जो खोट है, उसमें कोई फर्क नहीं आया है और वो वैसे ही बरकरार है. पाकिस्तान अगर अपने एनएसए को इसमें भेज देता, तो दोनों देशों के बीच रिश्तों की कड़वाहट को कुछ कम करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए ये पहला कदम साबित हो सकता था. लेकिन उसने दूरदर्शी सोच वाली नीति को अपनाने की बजाय उल्टे भारत पर ही तोहमतें लगाकर आग में घी डालने का काम किया है.
पाकिस्तान के NSA मोइद यूसुफ ने कहा कि वह भारत के न्योते पर इस मीटिंग में शामिल नहीं होंगे. एक पत्रकार द्वारा पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, “मैं नहीं जाऊंगा. एक स्पॉयलर (काम बिगाड़नेवाला) पीस मेकर (शांति स्थापित करने वाला) बनने की कोशिश नहीं कर सकता है.” मोईद यूसुफ़ के इस वीडियो को पाकिस्तान सरकार के डिजिटल मीडिया विंग के जनरल मैनेजर इमरान ग़ज़ाली ने ट्वीट किया है. उनके इस बयान पर थोड़ी हैरानी इसलिये भी जताई रही है कि दोनों मुल्कों के नेता आरोप-प्रत्यारोप की सियासत में भले ही उलझे रहें लेकिन आमतौर पर देश के सुरक्षा सलाहकार के ओहदे पर बैठा व्यक्ति इस तरह की कठोर शब्दावली का इस्तेमाल करने से बचता है.
गौरतलब है कि इससे पहले 21 अक्टूबर को रुस ने इसी तरह की बैठक मॉस्को में आयोजित की थी जिसमें अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत शामिल हुए थे. उस बैठक में भारत ने अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता देने की बात कही थी. उसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए भारत इस बैठक की मेजबानी कर रहा है,ताकि अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ चर्चा करके इस सहायता का खाका तैयार किया जा सके.
भारत ने अपनी इस बैठक के लिए संबंधित देशों को पिछले महीने ही न्योता दे दिया था. तब पाकिस्तान के विदेश मंत्री विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि पाकिस्तान को भारत से अफगानिस्तान पर सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्यौता मिला है और इस बारे में समय पर फैसला किया जाएगा. लेकिन साथ ही उन्होंने यह बात भी जोड़ दी थी, "फिलहाल भारत एवं पाकिस्तान के बीच संबंधों में गर्मजोशी नहीं है. हम परामर्श के बाद सम्मेलन में हिस्सा लेने के मुद्दे पर फैसला करेंगे." उनके इस बयान से ही इशारा मिल गया था कि उनकी नीयत साफ नहीं है और वे एन वक्त पर इसे ठुकराने की हेकड़ी दिखाने से बाज़ नहीं आने वाले.
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