हम अक्सर अपनी चिंताओं में डूबे रहते हैं लेकिन ये नहीं सोचते कि दुनिया में हो रही उथल-पुथल का आने वाले दिनों में भारत पर इसका कितना जबरदस्त असर होने वाला है. दुनिया में दो बड़े इस्लामिक मुल्कों-सऊदी अरब और ईरान में पिछले सात साल से कुत्ते-बिल्ली वाला बैर चल रहा था. पर, चीन ने अब उन्हें साथ लाकर अमेरिका को एक बड़ा संदेश दे दिया है. लेकिन ये संदेश भारत के लिए भी थोड़ा चिंता पैदा करने वाला है.


इसलिए कि वह खाड़ी का ऐसा मुल्क है जो परमाणु समझौते पर शामिल होने के लिए आज भी तैयार नहीं है. और, पुरानी कहावत है कि आप किसी इंसान को समझाने की कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन अगर वो राष्ट्रप्रमुख होने के नाते भी उसे कोई तवज्जो नहीं देता तो समझ लीजिए कि उसकी अनगाइडेड मिसाइल दुनिया में तबाही मचा सकती है. लेकिन दुनिया भर के कूटनीतिक विश्लेषक इसलिए हैरान-परेशान हैं कि शिया और सुन्नी बहुल इन दोनों मुल्कों के बीच दोबारा दोस्ती कराने वाला चीन है और यही थोड़ा फिक्रमंद करने वाला भी है.


बीते सोमवार को चीन की राजधानी बीजिंग में इन दोनों देशों के आला नुमाइंदों की बैठक हुई थी. जाहिर है कि चीन ने ही दोनों देशों को एक टेबल पर लाने की पहल की थी जिसमें वह कामयाब भी हो गया. उसमें दोनों मुस्लिम देशों ने अगले दो महीने के भीतर एक-दूसरे के देश में अपने दूतावास खोलने पर हामी भर दी है. समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट में ईरान और सऊदी अरब की मीडिया के हवाले से ये बताया गया है कि दोनों देशों ने चीन की राजधानी बीजिंग में बैठकर शांति वार्ता की थी जिसके बाद इस समझौता का ऐलान किया गया है. तो वहीं ईरान की न्यूज एजेंसी IRNA के मुताबिक, इस वार्ता के नतीजे के तहत ईरान और सऊदी अरब अगले दो महीने के अंदर कूटनीतिक रिश्ते शुरू करेंगे. साथ ही दोनों देश दूतावास खोलने पर भी राजी हो गए हैं. 


दोनों देश पारस्परिक सहयोग के अन्य समझौतों पर भी अमल करेंगे. ईरान और सऊदी द्विपक्षीय संबंधों को आने वाले दिनों में मजबूत करने की दिशा में भी काम करेंगे. इस बैठक और इसमें हुए समझौते की जानकारी को पुख्ता करने के लिए ईरान की शीर्ष नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की एजेंसी ने बीजिंग में हुई शांति वार्ता की तस्वीरें और वीडियो जारी किए हैं. इन तस्वीरों में काउंसिल के सेक्रेटरी अली शामखानी को सऊदी अरब के अधिकारी और चीनी अफसर के साथ देखा जा सकता है.


बता दें कि ये दोनों ही मुल्क इस्लामिक हैं लेकिन इनके बीच पैदा हुई कड़वाहट की बड़ी वजह धार्मिक मतभेद को ही माना जाता है. एक ही मज़हब के दो अलग-अलग पंथों को मानने की वजह से इनके बीच दूरियां बढ़ती गईं और साल 2016 में हुई एक घटना ने दोनों के सारे रिश्ते ही तोड़ दिए. ईरान को शिया मुसलमानों का मुल्क माना जाता है जबकि सऊदी अरब में सुन्नी मुस्लिमों का ही दबदबा है इसलिए वह दुनिया के मंच पर ख़ुद को एक सुन्नी मुस्लिम ताकत की तरह ही देखता है. हालांकि इस सच से भी इंकार नहीं कर सकते कि दोनों देश अब तक अपने  क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए ही लड़ रहे हैं.


दरअसल, दोनों देशों के बीच औपचारिक रिश्ते टूटने की नौबत साल 2016 में आई थी. उस दौरान सऊदी अरब में एक शिया मौलवी को मृत्युदंड की सजा दी गई थी. उसके विरोध में ईरान की राजधानी तेहरान में सऊदी दूतावास पर जबरदस्त हमला हुआ था जिसमें कई लीग मारे गए थे. उसके बाद ही सऊदी अरब ने ईरान के साथ अपने हर तरह के रिश्ते तोड़कर दुनिया को चौंका दिया था. उस वक़्त अमेरिका इससे खुश हुआ था और उसने ईरान से दोस्ती करते हुए उसे भरपूर इमदाद देने की पेशकश भी की थी. इसलिए अभी तक यही माना जा रहा था कि ईरान ने अमेरिका की गोदी को छोड़ा नहीं है और शायद आगे भी वो इसे नहीं छोड़ने वाला है लेकिन बीजिंग में हुए इस समझौते ने अमेरिका को भी चौंका कर रख दिया है.


दोनों देशों की कूटनीति को जानने वाले कहते हैं कि शिया-बहुसंख्यक ईरान और सुन्नी मुस्लिम सऊदी अरब मिडिल ईस्ट के कई संघर्ष क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वी पक्षों का समर्थन करते रहे हैं जिनमें यमन भी शामिल है. माना जाता है कि वहां हूती विद्रोहियों को तेहरान का समर्थन प्राप्त है. लिहाजा, पिछले सात साल में दोनों मुल्क आपस में एक-दूसरे के जानी-दुश्मन बनने के रास्ते पर आगे निकल रहे थे. लेकिन चीन ने दोनों को साथ बैठाकर और समझौता करवा के जो कूटनीतिक चाल चली है उसमें जीत इन दोनों मुल्कों की नहीं बल्कि चीन की ही हुई है. अब वह कच्चे तेल के मामले में इन दोनों मुल्कों के जरिये अमेरिका समेत यूरोप को आंखे तरेरने की हैसियत में आ चुका है और इसके जरिये उसने रुस को भी एक नई ताकत देने की रणनीति को अंजाम दिया है.


चीन में हुए इस समझौते का कितना महत्व है इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि दोनों देशों के आधिकारिक मीडिया ने इसे बेहद तवज्जो से प्रसारित किया है. ईरान की समाचार एजेंसी IRNA ने संयुक्त बयान का हवाला देते हुए कहा, "बातचीत के बाद इस्लामिक गणराज्य ईरान और सऊदी अरब के साम्राज्य ने दो महीने के भीतर राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल करने और दूतावासों, मिशनों को फिर से खोलने पर सहमति व्यक्त की है. तो वहीं आधिकारिक सऊदी प्रेस एजेंसी ने भी इस पर बयान जारी करते हुए कहा कि इस घोषणा से ठीक पांच दिन पहले बीजिंग में बातचीत हुई थी. 


ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव अली शामखानी ने सोमवार को तेहरान और रियाद के बीच की समस्याओं को हल करने के लिए बीजिंग में अपने सऊदी समकक्ष के साथ गहन बातचीत की थी. वैसे हैरानी की बात ये भी है कि ईरान और सऊदी अरब के पड़ोसी इराक ने अप्रैल 2021 से ईरान और सऊदी अरब के बीच कई दौर की वार्ता की मेजबानी की थी लेकिन फिर भी वो उसमें कामयाब नहीं हो पाया, जो चीन ने एक झटके में ही अपना कमाल कर दिखाया.



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