पंजाब पुलिस ने23 अप्रैल को खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह को मोगा जिले से गिरफ्तार कर लिया. वह एक महीने से ज्यादा समय से फरार था. उस पर रासुका लगा हुआ है और उसे डिब्रूगढ़ ले जाया गया है. अमृतपाल सिंह ने बीते कुछ महीनों से पंजाब में काफी अशांति फैलाई हुई थी. उसकी गिरफ्तारी के बाद अब कई राज खुलने की उम्मीद है.
अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी एक अच्छा डेवलपमेंट है. देर आयद, दुरुस्त आए. हालांकि, लगभग 35 दिन इसमें लगे, लेकिन इसके पकड़े जाने से जो पाकिस्तानी इस्टैब्लिशमेंट की साजिश थी, वह अब पूरी नहीं हो पाएगी. किस तरह से इसको ट्रेन किया गया, दुबई से इसको भेजा गया, किस तरह इसने प्राइवेट आर्मी रेज करनी शुरू की, किस तरह ये भिंडरावाले की नकल करता था, किस तरह यह देश को तोड़ने की साजिश का हिस्सा था, पाकिस्तानी निजाम की जो साजिश है- खालिस्तान की, अब इन सब बातों का पता चल सकेगा, ये राहत की बात है.
दुबई से आते ही यह जिस तरह पूरे जोश-खरोश से पंजाब की राजनीति पर हावी हुआ, यह जिस तरह गाड़ियों का काफिला लेकर निकलता था, अपने साथ युवकों को रखता था, उन्हें हथियारबंद बनाता था, ये सब एक लार्जर कांस्पिरैसी का हिस्सा है. इसका अब पर्दाफाश हो सकेगा. इसके खर्चों का, फाइनेंसर का पता चल सकेगा और ये राहत की बात है. हालांकि, इसमें इतने दिन लग गए तो ये पंजाब पुलिस के इंटेलिजेंस फेल्योर को भी बताता है.
पंजाब में जब आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार कर रही थी, तो उन्होंने खालिस्तानी एलिमेंट्स का इस्तेमाल किया, उनकी तरफ सहानुभूति दिखाई, उनको प्रमोट भी किया. मेरे खयाल से तो AAP की जीत में भी इन तत्वों का हाथ था. यह पॉलिटिकल मसला भी है. अमृतपाल को लेकर भी शुरू में पंजाब सरकार का रुख हल्का ही था. हालांकि, मुझे लगता है कि जब इसकी गतिविधियां बढ़ने लगीं तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पंजाब के सीएम को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया और तब जाकर इस पर कार्रवाई हुई. अमृतपाल सिंह ने जिस तरह पुलिस स्टेशन पर हमला कर अपराधी को छुड़ाया, मेरे खयाल से वह भी इसकी ताबूत की एक कील साबित हुआ. पुलिस पर हमला दरअसल उसके पूरे आत्मसम्मान और स्वाभिमान पर हमला है. फिर तो ये होना ही था.
मेरी समझ से शुरू में तो इसको जरूर ही पॉलिटिकल संरक्षण मिलता रहा, जिसकी वजह से यह अपना कद बढ़ाता चला गया. इसने खालिस्तानी एलिमेंट्स को एक्टिवेट किया और सरकार को चुनौती देता है. एक आदमी जो दुबई में ड्राइवर था, वह अचानक पंजाब आता है, 'वारिस पंजाब दे' का चीफ बनता है, भिंडरावाले की तरह ड्रेस-अप करता है और अपनी इतनी फॉलोइंग बना लेता है, एक पूरी सेना ही खड़ी कर लेता है. आगे-पीछे राइफलधारी युवकों को रखने लगता है. तो, यह सोचिए कि ये सब कुछ अगर आर्केस्ट्रेटेड नहीं है तो और क्या है? जाहिर तौर पर यह गहरी साजिश है और केवल इसके वश की बात तो नहीं है. इसके पीछे कौन है, इसका फाइनांसर कौन है, किस देश ने क्या सोचकर इसे स्पांसर किया, इन सारी साजिशों का पता राज्य और केंद्र की एजेंसियों को मिलकर लगाना चाहिए.
आप जानते हैं कि खालिस्तान आंदोलन से संबंधित जितनी गतिविधियां हैं, चाहे वह यूके में हों, या ऑस्ट्रेलिया में, कैनेडा में हो या कहीं और. वह पाकिस्तान के K2 यानी खालिस्तान प्लान का हिस्सा है. इसकी प्रॉपर इनवेस्टिगेशन हो, सेंट्रल एजेन्सी और पंजाब पुलिस इससे पूरी तरह पूछताछ करे और तभी इसके पूरे रहस्य का पर्दाफाश होगा. यूरोप हो या अमेरिका, जहां कहीं भी खालिस्तान के नाम पर कुछ भी हो रहा है, वह तो आईएसआई की ही साजिश है, तो उसे तो समझना ही पड़ेगा. हिंदू और सिखों का तो नाभिनाल संबंध है. ये दो सगे भाइयों की बात है. इनको कैसे अलग कर सकते हैं आप...ये तो पाकिस्तान की साजिश है. इस साजिश को समझना होगा, पंजाब के लोगों को.
पंजाब की पूरी समस्या राजनीतिक साजिशों की देन है. आप देखिए हरेक हिंदू घर में बड़ा भाई सिख बनता था. सिखों के गुरुओं की कुर्बानी देखिए. हिंदुओं को उनको नमन करना चाहिए, उनकी कहानियां बांटनी चाहिए. गुरुओं के बच्चों को किस तरह जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया, किस तरह गुरु महाराज को तपते तवे पर बिठाकर उनकी जान ले ली गई, यह तो हरेक हिंदू को याद करना चाहिए, श्रद्धा-सुमन देने चाहिए. अब वही बात सिखों को भी समझनी चाहिए, चाहे वो अमेरिका में रह रहे हों, या कैनेडा में या कहीं भी. खालिस्तानी आंदोलम को जो समर्थन दे रहे हैं, वह तो उनके गुरुओं की तौहीन है. उनको शर्म आनी चाहिए और ऐसा करके वे पाकिस्तान की साजिश में आ रहे हैं.
जो भी लोग खालिस्तान-खालिस्तान कर रहे हैं, तो जो अफगानिस्तान में गुरुग्रंथ साहिब का अपमान हुआ, जो पाकिस्तान में सिख लड़कियों को जबरन कनवर्ट किया जाता है, उस पर जाकर क्यों नहीं काम करते हैं? शर्म आनी चाहिए, जो भारत में खालिस्तान-खालिस्तान का गाना गाते हैं. सिखों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं, यह तो याद कीजिए. गुरुद्वारे और मंदिर में कोई फर्क ही नहीं किया जाता है. गुरुग्रंथ साहिब में राम और कृष्ण की स्तुति है, मां काली की आरती है. अगर हम पाकिस्तानियों की चाल में आ जाएं तो वह बहुत शर्म की बात होगी.
सिखों के देश के प्रति प्रेम को आंका नहीं जा सकता. उन्होंने देश के लिए, सनातन के लिए न जाने कितनी कुर्बानियां दी हैं. गलतियां तो पॉलिटिकल एस्टैब्लिशमेंट से हुई हैं. अब नाम लेने से कोई फायदा नहीं है, लेकिन इंदिरा गांधी हों या बूटा सिंह हों, पॉलिटिकल लेवल पर तो गलतियां हुईं, जिनसे दरार पड़ी है. गोल्डन टेंपल पर आर्मी का जाना कोई भी हिंदू या सिख अप्रूव नहीं करेगा. मैं तो कहता हूं कि ऊपर से जब हमारे गुरु लोग देखते होंगे, तो हंसते होंगे कि हमलोग कहां की सोचकर सिख और हिंदू धर्म को लेकर चले थे, लेकिन आज किस तरह इन लोगों ने मजाक बना कर रख दिया है.
फिलहाल, तो यही रास्ता दिखता है कि अमृतपाल को गिरफ्तार कर ही सरकार बस न करे. सिखों की 99.99 फीसदी आबादी इसके साथ नहीं है. कुछ भटके हुए लोग हैं जो पैसे से लेकर ड्रग्स तक के चक्कर में इसके साथ चले हैं. सरकार को इनको पूरी तरह एक्सपोज करना चाहिए. यह गोल्डन मौका है. पाकिस्तान की डीप स्टेट आईएसआई को नंगा कर आम आदमी को उसके बारे में बताने का वक्त मेरे ख्याल से आ गया है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)