अज़ान की आवाज़ पर ही आखिर क्यों हो रही है इतनी सियासत?
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साम्प्रदायिक सद्भाव के लिहाज से दक्षिणी राज्य कर्नाटक बेहद संवेदनशील बनता जा रहा है. पहले वहां हिजाब को लेकर विवाद हुआ, जो कि अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. फिर वहां मुस्लिम व्यापारियों द्वारा हलाल मीट बेचने के खिलाफ अभियान छेड़ा गया और अब वहां हर सुबह मस्जिदों से गूंजने वाली अज़ान के खिलाफ जबरदस्त अभियान शुरू हो गया है. कुछ कट्टरपंथी हिंदुत्व संगठनों ने धमकी दी है कि मस्जिदों से अगर लाउड स्पीकर नहीं उतारे गए, तो वे अपने आंदोलन की धार और तेज कर देंगे. जाहिर है कि इससे दो धर्मों के बीच मनमुटाव और बढ़ेगा, जो प्रदेश की साम्प्रदायिक फ़िज़ा में जहर घोलने का ही काम करेगा.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मस्जिदों से लाउड स्पीकर के जरिये अज़ान की गूंज तो लोग पिछले कई दशकों से सुनते आ रहे हैं, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि अब कुछ कट्टरपंथी संगठनों को ये आवाज़ खलने लगी है? श्रीराम सेना के प्रमुख प्रमोद मुथालिक ने कर्नाटक की बीजेपी सरकार से मांग की है कि मस्जिदों से लाउड स्पीकर तुरंत हटाए जाएं, वरना वे अपना आंदोलन तेज कर देंगे. इसका मतलब यही निकलता है कि अगर सरकार ने ऐसा नहीं किया, तो हिंदुत्ववादी संगठन के सदस्य खुद ही ऐसा करने की शुरुआत कर सकते हैं. उनकी दलील है कि लाउड स्पीकर से ध्वनि प्रदूषण होता है, लिहाज़ा इस पर रोक लगाई जाए.
सियासी जानकर कहते हैं कि पिछले इतने बरसों से अज़ान की आवाज से किसी को कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन इधर पिछले कुछ दिनों से अचानक इसके खिलाफ सुनियोजित तरीके से माहौल तैयार किया जा रहा है. दरअसल, ध्वनि प्रदूषण तो सिर्फ बहाना है, असली मकसद मुसलमानों को निशाना बनाना है. इस तरह के अभियानों के जरिए उन्हें ये अहसास कराना है कि इस मुल्क में उनकी हैसियत दोयम दर्जे के नागरिक की है और उन्हें उसके दायरे में ही रहते हुए ही यहां जीना होगा. लेकिन भारत जैसे सेक्युलर देश के लिए ये सोच बेहद खतरनाक है, जो दो वर्गों के बीच नफरत की खाई को और गहरा ही करेगी.
बताया गया है कि अज़ान की मुखालफत करने वाले संगठन ने सभी मंदिरों से कहा है कि वे प्रतिदिन सुबह पांच बजे अपने यहां जोरशोर से भजन-कीर्तन का आयोजन करें, जिसकी आवाज़ पूरे इलाके में सुनाई दे. इसे अज़ान का जवाब माना जा रहा है. हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार ने इस मामले पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन बेंगलुरू के पुलिस कमिश्नर कमल पंत ने कहा है कि ध्वनि प्रदूषण को लेकर हाइकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का सभी धार्मिक स्थलों को सख्ती से पालन करना होगा और जो कोई भी इसका उल्लंघन करते हुए पाया गया, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि उन्होंने माना कि अगर किसी मंदिर में भी ये नियम तोड़ा जाता है, तो संबंधित मंदिर प्रबंधन के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी. ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून के मुताबिक रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउड स्पीकर के इस्तेमाल करने पर रोक है और कानून तोड़ने पर जुर्माने व सजा का प्रावधान है. लेकिन अक्सर देखा जाता है कि धार्मिक समारोह या चुनावी रैलियों में इस कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं, पर, प्रशासन कार्रवाई करने से बचता है.
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने हिंदुत्व संगठन के इस अभियान पर बोम्मई सरकार की खामोशी को लेकर उसे आड़े हाथों लिया है. उनके मुताबिक पूरे प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द को खराब करने की कोशिश की जा रही है लेकिन सीएम बोम्मई ऐसा मौन व्रत धारण किए हुए हैं, मानों कुछ हुआ ही नहीं है.
गौरतलब है कि अगले साल कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हैं और उससे पहले ऐसे अभियानों को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है. कुमारस्वामी के मुताबिक "पिछले डेढ़ महीने से प्रदेश के शांति और भाईचारे वाले माहौल को बिगाड़ने के लिए नए-नए तरीके निकाले जा रहे हैं. लेकिन यह उत्तर प्रदेश नहीं है और बीजेपी भूल जाए कि वो इन तरीकों से अगला चुनाव जीत लेगी. ये रणनीति उसे यहां उल्टी पड़ने वाली है."
सोचने वाली बात ये है कि मंदिर से निकलने वाली भजनों की स्वर लहरियां और गुरुद्वारे में गूंजने वाली गुरबाणी के शबद कभी राजनीति के औजार नहीं बनते, तो फिर अज़ान पर ही सियासत क्यों हो रही है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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