Akhilesh Yadav Vijay Yatra: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सत्ता पाने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी मंगलवार को विजय यात्रा के जरिये अपने चुनाव अभियान का बिगुल बजा दिया है. उनकी यात्रा लोगों का मिज़ाज बदलने में किस हद तक कामयाब होगी, ये तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन इतना तय है कि लखीमपुरी खीरी की घटना के बाद प्रियंका गांधी की सक्रियता ने जिस तरह से बाकी विपक्ष को पीछे धकेल दिया, उसने अखिलेश को भी फिक्रमंद कर दिया था. शायद यही कारण है कि उन्होंने सपा के चुनाव अभियान को शुरू करने में देर नहीं लगाई.


हालांकि यूपी की सियासी तस्वीर पांच साल पहले से बिल्कुल अलग है क्योंकि इस बार कांग्रेस का हाथ साइकिल के साथ नहीं है और दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. साल 2017 में सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और पूरे राज्य में राहुल गांधी व अखिलेश यादव की तस्वीर वाले होर्डिंग्स लगाकर नारा दिया गया था- "यूपी को यह साथ पसंद है." लेकिन जनता को उस जोड़ी का साथ पसंद नहीं आया और उसने बीजेपी को सत्ता में लाकर दोनों पार्टियों का लगभग सूपड़ा ही साफ कर दिया था. उस चुनाव में हिंदुत्व के रथ पर सवार योगी आदित्यनाथ के आक्रामक प्रचार के दम पर बीजेपी को 312 सीटें मिली थी और अपने बूते पर ही तीन चौथाई बहुमत हासिल किया था. तब सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और मायावती की बीएसपी को महज 19 सीटें ही मिल पाई थीं.


अखिलेश के लिए इस बार का सियासी मुकाबला ज्यादा कांटों भरा इसलिये भी है कि अब बीजेपी और बीएसपी के साथ कांग्रेस से भी उनकी टक्कर होनी है. हालांकि यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है क्योंकि उसे भी उन दोनों के अलावा इस बार सपा से भी दो-दो हाथ करने होंगे. हालांकि कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका के तीखे तेवरों ने पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नई जान फूंकने का काम किया है जिसके कारण पार्टी की हालत पहले से बहुत ज्यादा सुधरी है और चुनाव नजदीक आते-आते ये स्थिति और भी अधिक मजबूत होती जायेगी.


हालांकि अखिलेश को न तो राजनीति का कच्चा खिलाड़ी मान सकते हैं और न ही ये कह सकते हैं कि उन्हें अपने सियासी विरोधियों की ताकत का अहसास ही न हो. पिछले दस दिनों में कांग्रेस के बढ़ते हुए जनाधर का अंदाज़ा उन्हें लग चुका है और शायद इसीलिए अब उन्होंने योगी सरकार के अलावा कांग्रेस पर भी निशाना साधना शुरू कर दिया है. कानपुर से शुरु की गई अपनी विजय यात्रा के दौरान उन्होंने मीडिया के आगे साफ कर दिया कि प्रियंका गांधी के एक्टिव होने से सपा को कोई नुकसान नहीं होगा. उनका कहना था कि बीजेपी और कांग्रेस, दोनों में कोई खास फर्क है नहीं है और दोनों की ही नीतियां लगभग एक जैसी ही हैं.


अखिलेश को दूसरा बड़ा नुकसान अपने ही परिवार से होने की आशंका भी सता रही है क्योंकि चाचा शिवपाल यादव के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा अभी भी बना हुआ है और मुलायम सिंह यादव की तमाम कोशिशों के बावजूद दोनों के बीच अभी तक सुलह नहीं हो पाई है. अखिलेश के जवाब में ही चाचा शिवपाल यादव ने मंगलवार को वृंदावन से सामाजिक परिवर्तन यात्रा की शुरुआत कर दी है. अगर चुनाव से पहले कोई समझौता नहीं हुआ, तो चाचा-भतीजे के बीच आमने-सामने का मुकाबला होना तय है.


पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खुश होने का एक बड़ा कारण ये भी था कि मुलायम के कुनबे में जबरदस्त कलह मची हुई थी और इसका पार्टी को खासा नुकसान भी उठाना पड़ा था. भतीजे के अलावा रामगोपाल यादव से मतभेद के चलते शिवपाल यादव ने सपा से अलग होकर नई पार्टी बना ली थी. हालांकि उन्हें कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ. लेकिन परिवार के दो लोगों की लड़ाई का फायदा तो किसी तीसरे को मिलना ही था और वही हुआ भी. पिछले लोकसभा चुनाव में रामगोपाल यादव के बेटे के चुनाव हारने का मुख्य कारण भी शिवपाल यादव की ही पार्टी को माना जाता है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)