दुनिया का पहला जनरल पर्पज कंप्यूटर कैसा था, तब कंप्यूटर बनाते समय वैज्ञानिकों की क्या सोच थी
ENIAC की लागत उस समय लगभग 5 लाख डॉलर थी, जो आज के जमाने में 70 लाख डॉलर से ज्यादा की रकम है. इसका वजन था 27 टन, और इसको रखने के लिए 1800 वर्ग फ़ीट की जरूरत होती.
एलन ट्यूरिंग का नाम अधिकतर लोगों ने या तो नहीं सुना होता है और अगर सुना होता है तो या तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन कोडिंग मशीन एनिग्मा के कोड को तोड़ने के लिए, या तो उसके बाद समलैंगिक होने की वजह से उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार द्वारा चलाए गए मुकदमे की वजह से.
ये दोनों कहानियां भी अपने आप में बहुत दिलचस्प हैं और इन पर एक फिल्म The Imitation Game भी बन चुकी है. तो आज मैंने सोचा ट्यूरिंग के बारे में कुछ नया बताया जाए, जिसके बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं है, लेकिन जिसके बिना आधुनिक दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
एक खयाली पुलाव
असल में, जितने भी आधुनिक कम्प्यूटर्स हैं, उन सब को सैद्धांतिक तरीके से डिजाइन ट्यूरिंग ने ही किया था, जिसके बाद उससे असली कंप्यूटर बनाने में 20 साल लग गए. अब आप पूछेंगे, सैद्धांतिक रूप से डिजाइन करने के क्या मतलब हुआ तो उसको लिए आपको थोड़ा गणित के इतिहास की और लिए चलते हैं. ज्यादा पीछे नहीं, 20वीं सदी की शुरुआत में बहुत से गणितज्ञ, जिनमें डेविड हिल्बर्ट का नाम प्रमुख था, एक ऐसी मशीन की कल्पना कर रहे थे, जिसमें आप कोई भी वाक्य डालें, तो मशीन आपको बता दे कि जो बात कही जा रही है वो सही है या नहीं.
आप सोच के देखिए कि कितनी उपयोगी मशीन होती वो. उसमें डालिये "100 एक विषम संख्या है", वो बोल देगी "गलत". अब वो लोग तो ये मशीन गणितीय तथ्यों के बारे में बनाने की सोच रहे थे, लेकिन ऐसा सवाल भी पूछा ही जा सकता है कि क्या हम ऐसी एक मशीन बना सकते हैं, जिससे आप कहेंगे, "मनमोहन सिंह कभी प्रधानमंत्री नहीं बने" तो बोलेगी "गलत".
खैर, तो ये था एक खयाली पुलाव डेविड हिल्बर्ट और उनके साथियों का, जो कभी पका नहीं, बल्कि एक और गणितज्ञ, जिनका नाम गॉडल था, उन्होंने सिद्ध कर दिया कि ऐसी मशीन कभी बन ही नहीं सकती. लेकिन गॉडल के बारे में बात फिर कभी, आज की हमारी कहानी के नायक हैं ट्यूरिंग.
कम्प्यूटर आने से पहले वैज्ञानिकों की सोच... तो जब ट्यूरिंग ने ऐसी मशीन की कल्पना के बारे में सुना, तो उन्होंने एक अलग सवाल किया. उन्होंने सोचा कि किसी भी "मशीन" का मतलब क्या है जो चीजें "कंप्यूट" करेगी? या "ऑटोमेटेड कम्प्यूटेशन" का मतलब क्या है? बिना इसको समझे, हिल्बर्ट की मशीन को बनाने की कल्पना नहीं की जा सकती थी तो 1930 के दशक में, दुनिया में बहुत से गणितज्ञ इस काल्पनिक मशीन के बारे में सोच रहे थे, कि इसको गणितीय तरीके से कैसे समझा जाए.
इसमें ऑस्ट्रियन गणितज्ञ गॉडल और अमेरिकन गणितज्ञ चर्च ने अपनी अपनी थ्योरीज दीं ऑटोमेशन के बारे में. ये थ्योरी देने का मतलब था कि अगर कोई ऑटोमेटेड मशीन है, जो वाक्यों के सही गलत के बारे में बताएगी, वो इनके द्वारा दिए गए नियम पर ही चलेगी लेकिन इन दोनों की थ्योरीज बहुत क्लिष्ट थीं.
फिर आए ट्यूरिंग. उन्होंने कहा, कि किसी भी ऑटोमेटेड मशीन को एक इंसान, जो एक किताब और एक नोटबुक के साथ बैठा हुआ है, कि तरह देखा जा सकता है. अब इस इंसान से जब भी कोई सवाल पूछा जाता है, तो वो किताब में नियम देखता है, और उन नियमों को देख के नोटबुक में कुछ लिखता है, कुछ मिटाता है, और फिर आपको जवाब दे देता है. ट्यूरिंग ने बस इसी कॉन्सेप्ट को गणितीय भाषा में कह दिया. ये काम उन्होंने 1936 में किया.
यह थ्योरी आज तो सुनने में बहुत आसान और स्वाभाविक लगती है, क्यूंकि अधिकतर लोगों को इस बात का अंदाजा होता है कि कम्प्यूटर्स में मेमोरी होती है (नोटबुक) और कुछ प्रोग्राम्स होते हैं (किताब) जिसके हिसाब से कंप्यूटर काम करता है लेकिन सोचिये, जब कंप्यूटर बना भी नहीं था, तभी ट्यूरिंग ने किसी भी "कंप्यूटर" के बारे में ऐसा सोचा.
दुनिया का पहला जनरल पर्पज कंप्यूटर उन्होंने जो सैद्धांतिक मशीन बनायीं, उसको "यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन" कहते हैं जैसा कि मैंने ऊपर कहा, कोई भी मशीन सब कुछ तो नहीं बता सकती, लेकिन गणितज्ञ ये मानते हैं कि कोई भी कंप्यूटिंग मशीन जो काम कर सकती है, वो यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन भी कर सकती है.
सोचिये, एक बार फिर, किसी भी असली कंप्यूटर से 20 साल पहले, ट्यूरिंग ने दुनिया का कोई भी कंप्यूटर कैसा हो सकता है, बता दिया था. उसके बाद उनके सिद्धांतों को अमली जामा पहनाने की कवायद शुरू हुई, जो 1945 में ENIAC नाम के कंप्यूटर पर आके खत्म हुई. यह दुनिया का पहला जनरल पर्पज कंप्यूटर था, यानी की जिसने पहली बार यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन को असल में मॉडल किया था.
ENIAC की लागत उस समय लगभग 5 लाख डॉलर थी, जो आज के जमाने में 70 लाख डॉलर से ज्यादा की रकम है. इसका वजन था 27 टन, और इसको रखने के लिए 1800 वर्ग फ़ीट की जरूरत होती. इतना सब कुछ, और इसकी कुल मेमोरी थी 80 बाइट. 1 किलो बाइट में 1024 बाइट होते हैं और 1 मेगा बाइट (MB) में 1024 किलो बाइट.
अब आप समझिए कि इन 70 सालों में आपके हाथ में जो मोबाइल है, उसमें पहले कंप्यूटर से लाख गुना ज्यादा मेमोरी और कैलकुलेशन की पावर है. सारे आधुनिक कम्प्यूटर्स यूनिवर्सल ट्यूरिंग मशीन के मॉडल को फॉलो करते हैं, चाहे वो आपका लैपटॉप हो, या फ़ोन, या गूगल या फेसबुक के सर्वर्स. और ये सब इस वजह से हुआ क्यूंकि कुछ सनकी लोग एक सही-गलत पहचानने की मशीन बनाना चाहते थे.
तो ये थी आज की कहानी. अगर चीज़ें क्लिष्ट हुई हों तो माफ़ी, लेकिन गणित और अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल कम से कम करने की कोशिश की है. गलतियां रह गयी हों, या कुछ सवाल हों तो जरूर पूछिए. अच्छा लगेगा.