Opinion: NDA का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने गठबंधन का नाम रखा INDIA, यूपीए रखने से था ये बड़ा डर
![Opinion: NDA का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने गठबंधन का नाम रखा INDIA, यूपीए रखने से था ये बड़ा डर All opposition parties have lost their sheen and whatever name they give to their alliance it is not going to work Opinion: NDA का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों ने गठबंधन का नाम रखा INDIA, यूपीए रखने से था ये बड़ा डर](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/07/18/819eec7dbb7e1e53fa0ea35b65dd04c01689685721987702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
बेंगलुरू में दो दिनों तक विपक्षी दलों की बैठक चली. 17 जुलाई को 26 दलों के नेताओं ने गठबंधन का नया नाम INDIA (इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस) तय किया. इसके साथ ही 2024 की लड़ाई के लिए घोड़े खोल दिए गए हैं. आज ही एनडीए भी शाम में अपनी बैठक कर रहा है, जिसमें विपक्षी दलों के गठबंधन से निबटने की रणनीति पर बातचीत होगी. वैसे, दिलचस्प यह है कि नीतीश कुमार के संयोजक बनाने की घोषणा भी नहीं हुई है और बेंगलुरू में उनके खिलाफ पोस्टर भी चिपके मिले.
नाम बदलने से चरित्र नहीं बदलता
नामकरण पर अधिक सोचने की जरूरत नहीं है. बस, इन लोगों की चालाकी समझिए. पहले दिन से ही ये सभी जानते थे कि अगर ये यूपीए का नाम लेकर फिर से जनता के बीच गये तो इनको कोई भी भाव नहीं देगा, क्योंकि इनके सभी काले कारनामे जनता को याद आ जाएंगे. इसीलिए, जो पहली बैठक पटना में हुई थी, तभी से ही ये लोग नाम बदलने की कोशिश में थे. आखिरकार, इन्होंने आज एक नया नाम अपने गठबंधन का INDIA के तौर पर रख ही लिया. वैसे, नाम बदलने से होगा तो कुछ भी नहीं, क्योंकि जनता इनके सभी काले काम बखूबी जानती है, उसे याद है. भारत की जनता ने 2014 में जिन परिस्थितियों में, जिन कामों के लिए नरेंद्र मोदी जी को चुना था, उन्होंने तो बखूबी अपना काम किया. जो भी उनसे अपेक्षित था, वह किया. तो, फिर नाम बदलने से क्या फर्क पड़ेगा?
हां, ये लोग यह जरूर सोच रहे हैं कि भारत की जनता को जो ये ठगना चाह रहे हैं, उसमें ये सफल हो सकते हैं. हालांकि, ऐसा नहीं है. नाम बदलने से कोई अंगुलीमाल थोड़े न वाल्मीकि हो जाता है, संतत्व की प्रकृति जो है, वह तो इनसे कोसों दूर है. इन लोगों के नाम पर जो कुनबा है, हरेक राज्य में, वह भ्रष्टाचार और परिवारवाद में आकंठ डूबा है और उसी को बचाने की पूरी कवायद है. हालांकि, इनके बैठक का हाल यही जान लीजिए कि जो नीतीश जी खुद को पीएम पद का उम्मीदवार मान रहे थे, उन्हीं के नाम के पोस्टर कांग्रेस ने बेंगलुरू में चौतरफा चिपकवा दिए.
कांग्रेस ने लगवाए नीतीश विरोधी पोस्टर
मैं शत-प्रतिशत जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि नीतीश जी के बारे में जो 'अनस्टेबल पीएम कैंडिडेट' के पोस्टर लगे हैं, वह निश्चित तौर पर कांग्रेस का काम है. कांग्रेस भारत की राजनीति में खुद को मठाधीश समझती है. महागठबंधन में जो भी दल जा रहे हैं, उसमें कांग्रेस की मर्जी के बिना कुछ नहीं हो सकता. इनका दरअसल पूरा चाल-चरित्र एक्सपोज हो चुका है, इनके पास कुछ बचा नहीं है, इसलिए अब ये इस महान देश के नाम की आड़ में छिपना चाह रहे हैं. हां, इतना तय है कि जो भी व्यक्ति पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करेगा, कांग्रेस उसका यही हाल करेगी. अब यह सोचना तो नीतीश कुमार को है कि वह अपनी और बिहार की कितनी और बेइज्जती करवाना चाहते थे? हमारे चुप रहने की बात नहीं है. पूरे भारत को पता है कि यह ठगबंधन है, नाम तो आप कुछ भी रख लें. पूरे भारत के लोग तो इनको ठगबंधन के तौर पर ही याद करता है.
मोदीजी के नेतृत्व में पूरे देश में नए किस्म की राजनीति शुरू हुई है और बिहार उसकी एक बानगी भर है. अभी महागठबंधन की सरकार बिहार में बनने के तुरंत बाद यह कहा गया कि भाजपा अब 70 बनाम 30 की लड़ाई लड़ेगी, यानी बीजेपी के पास 30 प्रतिशत लोग हैं और बाकी 70 प्रतिशत उसके खिलाफ हैं. अभी तीन उपचुनाव हुए हैं- मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी. इसमें हम दो बड़े मार्जिन से जीते और तीसरा मोकामा वाला चुनाव हम अनंत सिंह से हारे. तब भी हमें 70 हजार वोट मिले. सामान्य जनता हमारे साथ खड़ी है क्योंकि जिस तरीके से मोदी काम करते हैं, जनता को जिस तरह की सहायता देनी चाहिए, वह मोदीजी ने किया है, फिर डरने की क्या बात है?
जनता हमारे साथ है
हम डरते तो तब, जब काम नहीं किया होता. जनता जब हमारे साथ तन-मन-धन से साथ है, तो फिर काहे का डरना, सोचना तो इन लोगों को चाहिए, जिनको जनता ने नकार दिया है. इसके साथ पुरानी कहावत हम सभी लोग जानते हैं- हाथी चले बाजार, कुत्ता भूंके हजार. भारत की जनता ने जो सम्मान मोदीजी और बीजेपी को दिया है, वह अभूतपूर्व है. अच्छा, ये जो इतना शोर मचा रहे हैं, ये बताएंगे क्या? सुबह से ये लोग डेमोक्रेसी-डेमोक्रेसी की रट लगाए हैं, कह रहे हैं कि लोकतंत्र को बचाना चाहते हैं, तो फिर ममता बनर्जी की जिस तरह की सरकार बंगाल में है, जिस तरह लोगों के साथ मारपीट हो रही है, हत्याएं और दंगा हो रहा है, क्या ये वैसे ही पूरे देश को बना देना चाहते हैं? कहते हैं कि इनको बोलने नहीं दिया जाता, उसी की रक्षा के लिए ये इकट्ठा हुए हैं. दिन भर टीवी चैनल्स पर, अखबारों में तो ये रोते ही रहते हैं, फिर अब और कितनी फ्रीडम चाहिए इन्हें? अब इनके पास मुद्दा है नहीं, तो ये ऐसी जमीनी और वायवीय बातें करते हैं, जिनका कोई आधार नहीं है.
NDA पहले से, BJP ने नहीं छोड़ा किसी का साथ
एनडीए तो पहले से बना हुआ गठबंधन है. महागठबंधन बनाने की सोचनेवाले विचार करें. जहां तक बीजेपी का सवाल है, तो हमने तो किसी को छोड़ा ही नहीं है. आप याद कीजिए तो नीतीश कुमार को 2005 में पहली बार सरकार बनाने का मौका भाजपा की वजह से मिला था, फिर जब 2010 में जनता ने इस गठबंधन पर आशीर्वाद बरसाया तो वह अभूतपूर्व मैंडेट था. वैसा मैंडेट शायद ही किसी को आय़ा हुआ हो. उसी में नीतीश जी की पार्टी को बहुमत से अधिक सीटें अपने दम पर मिल गयीं और यहीं से उनकी गलतफहमी शुरू हुई. उनको लगा कि यह उनके व्यक्तित्व का कमाल है, जबकि वह मैंडेट तो बीजेपी के साथ गठबंधन की वजह से मिला था. महाराष्ट्र में शिवसेना ने गठबंधन तोड़ा. आज उसका बड़ा धड़ा हमारे साथ है. एनसीपी का एक धड़ा हमारे साथ है. इन लोगों के पास है क्या? कुछ लोग जो भूतकाल में नेता थे, उनके नाम पर ये लोग सड़कों पर उतरकर वोट मांगने वाले हैं. भाजपा इससे भला क्यों डरेगी?
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
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