Assam-Mizoram Border Dispute: किसी शायर ने बरसों पहले लिखा था--"तारीख़ों में कुछ ऐसे मंज़र भी हमने देखे हैं, कि लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई." कुछ यही हाल हमारे देश के दो पूर्वोत्तर राज्यों का है जहां पिछले कई बरसों से सीमा विवाद चला आ रहा है, जो आज तक नहीं सुलझ पाया. जमीन के कुछ हिस्से पर अपनी मिल्कियत जताने को लेकर असम और मिज़ोरम के बीच ऐसा संघर्ष पहली बार देखा गया, जब लोगों के अलावा दो राज्यों की पुलिस भी एक-दूसरे के खून की प्यासी हो गईं.


दरअसल, साल 1987 में जब मिजोरम को देश का 23 वां राज्य बनाया गया, तब असम व इस नवगठित राज्य के बीच सीमाओं का जो रेखांकन किया जाना था, वह ठीक से किया ही नहीं गया जिसका नतीजा आज सबके सामने है. देश के ही दो राज्यों के बीच शुरु हुए खूनी संघर्ष को अगर समय रहते नहीं थामा गया, तो हालात और ज्यादा विस्फोटक हो सकते हैं. वह इसलिये कि मिजोरम का लगभग सात सौ किलोमीटर क्षेत्र म्यांमार व बांग्लादेश की सीमा से भी लगता है, लिहाज़ा ये मुद्दा देश की सुरक्षा के लिहाज से भी काफी संवेदनशील माना जाना चाहिये.


वैसे भी म्यांमार में तख्तापलट होने के बाद से ही वहां से कई लोग आकर मिजोरम में शरण ले रहे हैं. इसलिये जानकारों का कहना है कि संघर्ष की इस आग पर काबू पाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में तत्काल एक नये सीमा आयोग का गठन करना चाहिए, जो एक तय वक़्त में इस विवाद को सुलझाने का स्थायी समाधान कर सके.


असम और मिजोरम दोनों पहाड़ी इलाके हैं जो अपने-अपने तीन जिलों की 164 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. वैसे इतिहास पर नजर डालें, तो दोनों के बीच सीमा विवाद औपनिवेशिक काल से रहा है. मिज़ोरम 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले तक असम का ही हिस्सा था. यह लुशाई हिल्स नाम से असम का एक ज़िला हुआ करता था जिसका मुख्यालय आइजोल था. ऐसा बताया जाता है कि असम-मिज़ोरम के बीच यह विवाद 1875 की एक अधिसूचना से उपजा है जो लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करता है.


तब मिज़ोरम भले ही असम के साथ ही था, लेकिन मिज़ो आबादी और लुशाई हिल्स का क्षेत्र निश्चित था. यह क्षेत्र 1875 में चिन्हित किया गया था. मिज़ोरम की राज्य सरकार इसी के मुताबिक अपनी सीमा का दावा करती है, लेकिन असम सरकार यह नहीं मानती है. असम सरकार 1933 में चिन्हित की गई सीमा के मुताबिक अपना दावा करती है. इन दोनों माप में काफ़ी अंतर है, तो विवाद की असली जड़ वही एक-दूसरे पर ओवरलैप करता हुआ जमीनी हिस्सा है जिस पर दोनों सरकारें अपना-अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं.


हालांकि साल 1875 का नोटिफ़िकेशन बंगाल ईस्टर्न फ़्रंटियर रेगुलेशन (बीइएफ़आर) एक्ट, 1873 के तहत आया था, जबकि 1933 में जो नोटिफ़िकेशन आया, उस वक़्त मिज़ो समुदाय के लोगों से सलाह मशविरा नहीं किया गया था, इसलिए समुदाय ने इस नोटिफ़िकेशन का विरोध किया था.


पूर्वोत्तर राज्यों की राजनीति पर नजर रखने वाली दुर्वा घोष के मुताबिक "मूल रूप से यह झगड़ा ज़मीन का है. आप इसे बढ़ती आबादी का ज़मीन पर पड़ने वाला दबाव भी कह सकते हैं. लोगों को मकान चाहिए, स्कूल, अस्पताल चाहिए तो इसके लिए ज़मीन चाहिए. दोनों राज्य एक-दूसरे की ज़मीन पर अतिक्रमण का आरोप लगा रहे हैं. दोनों राज्यों के अपने-अपने दावे हैं और उन दावों में कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ बोल रहा है, इसका पता लगाना अब बेहद मुश्किल हो चुका है.


विवाद की एक बड़ी वजह यह भी है कि सीमा चिन्हित करने के लिए अब तक कोई संयुक्त सर्वे नहीं हुआ. हालांकि कहा तो यही जाता है कि सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश 1955 से ही हो रही है लेकिन वे सब बेकार ही साबित हुईं. वह इसलिये कि जब भी किसी ज़मीन या सीमा पर हुए विवाद को निपटाने की कोशिश होती है तो सबसे पहले उसका दोनों पक्षों की निगरानी में सर्वे होता है,भले ही वो विवाद कितना ही पुराना क्यों न हो.लेकिन इसे सुलझाने के लिए किसी स्तर पर ज्वाइंट सर्वे कराने की कोशिश आज तक नहीं हुई है.