Blog: तो क्या कैप्टन के जरिये किसान आंदोलन खत्म कराने की तैयारी में है मोदी सरकार?
पंजाब की सियासत के दिग्गज माने जाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह की गृह मंत्री अमित शाह से हुई मुलाकात को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. हालांकि कैप्टन ने मुलाकात के बाद एक ट्वीट करके बताया है कि किसान आंदोलन को लेकर चर्चा हुई है. लेकिन उनके नजदीकियों की मानें तो अगले दो -तीन दिन में ही कैप्टन कोई ऐसा धमाका कर सकते हैं, जो पंजाब से लेकर देश की सियासी तस्वीर बदलने में निर्णायक मोड़ साबित होगा. हालांकि मुलाकात के फौरन बाद कैप्टन के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने सिर्फ इतना ही कहा था कि 'अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.'
इसका मतलब साफ है कि उन्होंने सियासी गलियारों में लगाई जा रही अटकलों को न तो सिरे से खारिज किया है और न ही उसकी पुष्टि की है. यानी सियासी आसमान में संभावना के जितने भी बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं, उनमें से किसी एक का बरसना हर हाल में तय है. अब देखने वाली बात ये होगी कि उसका असर सिर्फ पंजाब की सियासत पर ही पड़ेगा या फिर मोदी सरकार कैप्टन के जरिये देश की राजनीति में भी कोई भूचाल लाने की तैयारी में है.
शाह-कैप्टन के बीच दो-तीन संभावनाओं पर चर्चा
मोटे तौर पर ये कयास लगाए जा रहे हैं कि शाह-कैप्टन के बीच तकरीबन पौन घंटे की बातचीत में दो-तीन संभावनाओं पर चर्चा हुई है. पहली, ये कि कैप्टन कांग्रेस और अकाली दल से नाराज नेताओं को अपने साथ लेकर एक नया फ्रंट बनाएं, जिसके बैनर पर उनकी पार्टी विधानसभा का चुनाव लड़े. चुनाव के बाद बीजेपी उन्हें समर्थन देकर दोबारा मुख्यमंत्री पद पर उनकी ताजपोशी करवा दे. पंजाब के मौजूदा सूरते-हाल में ये संभावना दोनों के लिए ही मुफीद हो सकती हैं.
दूसरा, कयास ये है कि मोदी सरकार उन्हें बीजेपी में शामिल कर ले और राज्यसभा के जरिये उन्हें सरकार में कृषि मंत्री बनाकर किसान आंदोलन खत्म करने की कमान सौंप दे. हालांकि ये सरकार के लिए मास्टर स्ट्रोक बन सकता है लेकिन कैप्टन इसके लिए राजी होंगे या नहीं, कहना मुश्किल है. इसलिए कि वे अभी तक किसानों की मांगों का समर्थन करते आए हैं और उन्होंने पंजाब का सीएम रहते हुए भी किसानों के खिलाफ कोई सख्ती नहीं बरती. लिहाजा, अगर कैप्टन इसके लिए राजी होते हैं, तो ये उनके लिए यू टर्न लेने जैसा ही होगा. और फिर इस बात की क्या गारंटी है कि किसान नेता उनकी बात मान ही लेंगे क्योंकि वे तो तीनों कृषि कानूनों की वापसी की जिद पर ही अड़े हुए हैं.
वैसे सियासी गलियारों में चर्चा है कि ये संभावना इसलिए परवान चढ़ सकती है कि कैप्टन मोदी सरकार को इसके लिए राजी कर लें कि वो तीनों कृषि कानून वापस लेगी और अगले लोकसभा चुनाव तक इस विषय को छेड़ा नहीं जाएगा. चूंकि इस मुद्दे पर कोई बीच का रास्ता ही नहीं है, जो कैप्टन के जरिये सरकार निकाल सके. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं से कैप्टन के गहरे रिश्ते हैं लेकिन उसके बावजूद कृषि कानूनों को वापस लिए बगैर वे आंदोलन खत्म नहीं करेंगे. इसलिए, ये हो सकता है कि कैप्टन को कृषि मंत्री बनाकर उनके मुंह से ही सरकार इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान करवा दे, ताकि उसकी फेस सेविंग भी हो जाए और पंजाब, यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को उसका फायदा मिल सके.
फिलहाल तो ये सब संभावना ही हैं लेकिन कहते हैं कि राजनीति कोई गणित का सवाल नहीं है, जिसे हल करना पड़े, बल्कि वो संभावनाओं का खेल है जहां वह सब कुछ मुमकिन है जिसके बारे में हम-आप सोच भी नहीं पाते.
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