अमरनाथ यात्रा त्रासदी: एक इंसान की जान से ज्यादा कीमती आखिर क्यों हो जाती है धार्मिक आस्था ?
अमरनाथ में प्राकृतिक रूप से बनने वाले शिवलिंग के दर्शन अपनी आंखों से करना कमोबेश इस देश के हर हिंदू परिवार का ठीक वैसा ही सपना होता है, जो हर मुसलमान मक्का-मदीना में जाकर अपने किये अनजाने गुनाहों को माफ़ करने की अक़ीदत करता है. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसीलिये आज भी यहां गंगा-जमुनी तहज़ीब को मानने वालों की संख्या उनसे बहुत ज्यादा है, जो धर्म या मज़हब के नाम पर दो समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.
इस सच को हम भला कैसे झुठला सकते हैं कि कोई भी धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है और हमारा संविधान इतना उदार है कि वो किसी को भी अपनी मर्जी के मुताबिक उसे अपनाने से कहीं भी कभी नहीं रोकता. लेकिन शुक्रवार की शाम अमरनाथ गुफ़ा के दर्शन के लिए जा रहे श्रद्धालुओं ने प्राकृतिक तबाही का जो मंजर देखा है, वो दिल दहलाने वाला है. जो बच गए, वे तो अपने भोलेनाथ का आशीर्वाद मान रहे हैं लेकिन बादल फटने के बाद आये सैलाब में जो बह गए और जिनका अब तक कुछ पता ही नहीं, जरा सोचिए कि उनके परिवारों पर क्या बीत रही होगी!
लोगों की जिंदगी से ज्यादा जरूरी क्या?
इस प्राकृतिक तबाही ने हमारी सरकार के सामने एक बार फिर से ये सवाल खड़ा कर दिया है कि लोगों की जिंदगी से ज्यादा बड़ा है क्या ऐसी धार्मिक यात्रा का आयोजन जिसमें हजारों लोग शामिल हों? सरकार अपने तमाम पुख्ता सुरक्षा इंतज़ामों के साथ यात्रियों को किसी आतंकी हमले से तो बचा सकती है लेकिन दुनिया में फिलहाल ऐसा कोई अलार्म नहीं बना है, जो हमें चेता सके कि दुर्गम पहाड़ी इलाकों में कोई बादल, कब और किस वक्त पर फटने वाला है. हालांकि सरकार के बनाये नियमों के मुताबिक देश के विभिन्न राज्यों के चंद हजार लोगों को ही अमरनाथ यात्रा पर जाने की अनुमति मिलती है. बाकी सब बेबस होकर न्यूज़ चैनलों पर दिखाई देने वाली हिम शिवलिंग की वो तस्वीर देखकर ही खुद को धन्य समझते हैं, जब आने वाली पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन वाले दिन वो अपने आराध्य देव को बर्फ़ के इतने विशालकाय रूप में देखते हैं.
लेकिन महज़ नौ साल पहले हुई तबाही से सबक लेने के लिए हमें धर्म के चश्मे को हटाना होगा और इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि धर्म बड़ा है या फ़िर एक इंसान की जान. कुछ लोग इस पर बहस भी कर सकते हैं कि नहीं, धर्म ही बड़ा है. तो उन्हें इस सवाल का जवाब भी देना चाहिए कि जब संसार में इंसान ही नहीं रहेगा, तो उस धर्म को भला कौन धारण करेगा? साल 2013 में केदारनाथ धाम में इसी तरह के बादल फटने की घटना हुई थी लेकिन उसका रूप बेहद विकराल था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तब उस प्राकृतिक तबाही में पांच हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. हालांकि उस आंकड़े के सच को आज भी कोई नहीं मानता और कई नेता तो उसके तिगुना या दोगुना होने के दावे आज भी करते हैं.
क्या यात्रियों की संख्या सीमित नहीं हो सकती?
अमरनाथ के प्राकृतिक शिवलिंग की विधिवत पूजा-अर्चना के लिए जम्मू से छड़ी मुबारक यात्रा निकाली जाती है और उसके बाद ही उस गुफ़ा तक पहुंचने के लिये आम श्रद्धालुओं को वहां पहुंचने की अनुमति मिलती है. अब सवाल ये उठता है कि ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए हमारी सरकार क्या ये फैसला नहीं ले सकती कि इस यात्रा के लिए लोगों की संख्या को बेहद सीमित कर दिया जाये? बेशक ये आस्था से जुड़ा मामला है, जिसे लेकर शायद सरकार भी पसोपेश में रहती है लेकिन तमाम धर्म ग्रंथ ये अहसास दिलाते हैं कि हर आस्था से बड़ी है, एक इंसान की जिंदगी बचाना.
सृष्टि के संहारक कहे जाने वाले भगवान शिव के वैसे तो द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं लेकिन अमरनाथ गुफा को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्योंकि जनश्रुति है कि यहीं पर भगवान शिव ने मां पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था. यहां की खासियत भी यही है कि पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होता है. वैसे प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे कई श्रद्धालु स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं. हालांकि कुछ इतिहासकार कहते हैं कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है. अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं, जो सभी बर्फ से ढकी हैं.
लेकिन नफरत के इस माहौल में सबको ये जानकार हैरान होने के साथ थोड़ा खुश भी होना चाहिये कि अमरनाथ की गुफा को सबसे पहले एक मुसलमान गडरिये ने ही तलाशा था. इतिहास के मुताबिक सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को ही सबसे पहले इस गुफ़ा का पता चला था. गुफ़ा में पूरे साल भर में जितना चढ़ावा आता है, उसका एक
चौथाई हिस्सा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को आज भी मिलता है. अब आप इसे क्या कहेंगे? मज़हब के आगे हारती नफ़रत की आस्था या पांच सदियों से चली आ रही वो परंपरा जो हर धर्म में सिर्फ इंसानियत को ही आज भी सबसे ऊंचा साबित कर रही है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)