अमेरिका के नामी बैंक के डूबने की खबर ने कैसे हिला दिया दुनिया का शेयर बाजार?
अमेरिका को दुनिया की सबसे ताकतवर इकॉनामी माना जाता है लेकिन वहां के एक मशहूर बैंक में हुई तालाबंदी ने भारत समेत कई देशों को हिलाकर रख दिया है. अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) में तालाबंदी की खबरों ने सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनियाभर के शेयर मार्केट में ऐसा हड़कंप मचाया है कि शुक्रवार को उसने सबको औंधे मुंह नीचे गिरने पर मजबूर कर दिया. यह बैंक सिर्फ बंद ही नहीं हुआ है, बल्कि इसने दुनिया में आर्थिक मंदी लाने का एक बड़ा अलार्म भी बजा दिया है.
वह इसलिये कि इसी बैंक ने भारत समेत कई देशों में स्टार्टअप व्यापार में बेतहाशा निवेश कर रखा था. भारत में तकरीबन 21 ऐसे बड़े स्टार्टअप वाले उद्योग हैं जहां इस बैंक ने खुलकर निवेश तो कर दिया लेकिन अब आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता. वैसे इस नामी-गिरामी बैंक के बंद होने से 15 साल पहले आई उस आर्थिक मंदी की भी याद दिला दी है जिसने अमेरिका समेत बहुत सारे देशों की अर्थव्यवस्था को लड़खड़ा कर रख दिया था. दरअसल, साल 2008 में अमेरिका की नामी फाइनेंस कंपनी लिहमन ब्रदर्स ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया जिसका झटका अमेरिकी शेयर बाजार ने शायद पहली बार झेला था.
तब सितंबर महीने के आखिरी एक ही दिन में निवेशकों के करीब 1लाख 20 हजार करोड़ डॉलर स्वाहा हो गए थे. वह नुकसान कितना गंभीर था इसे समझने के लिये इतना ही काफी है कि तब वह रकम भारत की कुल GDP के बराबर थी. उस दौरान अमेरिका में तेजी से बढ़ते प्रॉपर्टी बाजार को देखते हुए लिहमन ने कर्ज़ देने वाली 5 कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया था लेकिन बढ़ी हुई ब्याज दरों के कारण बाजार में रियल एस्टेट की मांग घट गई. नतीजा यह हुआ कि जिन्होंने उन कंपनियों से लोन लिया था, वे उसे चुका ही नहीं पाये. नतीजा ये हुआ कि लिहमन के शेयर 48 फीसदी तक टूट गए और उसके बाद 15 सिंतबर 2008 को लीहमन ने खुद को दीवालिया घोषित करने की गुहार लगाई.
ये खबर अमेरिकी बाजार के लिए किसी एतिहासिक झटके से कम नहीं थी.यही वजह है कि SVB में तालेबंदी खबर ने 2008 में लीहमन ब्रदर्स की कंगाली की याद दिला दी है.इसीलिये दुनियाभर के बाजार यह सोचकर सहम गए हैं कि क्या ये ग्लोबल मंदी की शुरुआत है? हालांकि ये खबर जब शुक्रवार को सामने आई, तब तक भारतीय बाजार में कारोबार का ज्यादा वक्त नहीं बचा था. लेकिन अमेरिकी बाजारों में इसने पूरा असर दिखाया. शुक्रवार को सभी प्रमुख अमेरिकी बाजारों के सेंसेक्स भारी नुकसान में बंद हुए,जो एक चौंकाने वाली घटना थी. शायद इसीलिये विश्लेषकों को ये डर सता रहा है कि कहीं इसका असर अगले सप्ताह यानी सोमवार को भारतीय बाजार पर भी देखने को न मिल जाए.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इतने नामी बैंक के डूबने की नौबत आई ही क्यों? वहां के वित्तीय जानकारों के मुताबिक सेंटा क्लारा स्थित SVB की परेशानी तब शुरू हुई जब उसकी मूल कंपनी एसवीबी फाइनेंशियल ग्रुप ने अपने पोर्टफोलियो से करीब सवा दो अरब डॉलर के शेयर बेचने का ऐलान कर दिया. कंपनी ने दावा किया कि उसकी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने के लिए 2.25 अरब डॉलर के शेयरों की बिक्री की जा रही है. विश्लेषकों का कहना है कि स्टार्टअप उद्योग में व्यापक मंदी के कारण बैंक में उच्च जमा निकासी की स्थिति बनी जिसके कारण यह कदम उठाया गया.
हालांकि फेड की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद एसवीबी ने ब्याज से होने वाली आमदनी में बड़ी गिरावट की आशंका जताई थी लेकिन फेड की ओर से ब्याज दरें बढ़ने से भी एसवीबी बैंक का गणित गड़बड़ हो गया. लेकिन सच तो ये है कि SVB के बंद होने का सबसे बड़ा कारण ये है कि अधिकांश निवेशकों ने एक साथ ही बैंक से अपना पैसा निकाल लिया. माना जा रहा है कि निवेशकों को बैंक के डूबने का डर था,लिहाजा उन्होंने एक साथ ही बड़ी बिकवाली कर दी थी.
अब एक सवाल ये भी कि इस अमेरिकी बैंक के बंद होने से क्या भारतीय स्टार्टअप्स उद्योग पर भी कोई असर पड़ेगा? जानकार कहते हैं कि इससे इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका सबसे बड़ा निवेश ही इस सेक्टर में रहा है. स्टार्टअप पर आंकड़े जुटाने वाली ट्रैक्सन डाटा के अनुसार, SVB ने भारत में करीब 21 स्टार्टअप में निवेश कर रखा है. हालांकि, इनमें निवेश की गई रकम कितनी है,इसकी कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नही है. लेकिन माना जाता है कि एसवीबी का भारत में सबसे अहम निवेश एसएएएस-यूनिकॉर्न आईसर्टिस में है.
जानकारी के मुताबिक ये स्टार्टअप कंपनी पिछले साल अक्तूबर में इस अमेरिकी बैंक से करीब 150 मिलियन डॉलर की पूंजी जुटाने में सफल रही थी. इसके अलावा ब्ल्यूस्टोन, पेटीएम, वन97 कम्युनिकेशन्स, पेटीएम मॉल, नापतोल, कारवाले, शादी, इनमोबि और लॉयल्टी रिवार्ड्ज में भी पैसे लगे हैं. वेंचर कैपिटल कंपनी एस्सेल पार्टनर्स का भी इस बैंक से कुछ समझौता है. हालांकि SVB ने दलील दी थी कि एस्सेल के संस्थापकों ने भी बैंक का इस्तेमाल कंपनी की तेजी से बढ़ोतरी करने के लिए ही किया है. लेकिन इस हकीकत का पता शायद ही कभी लग पाये कि दुनिया के सबसे ताकतवर देश का एक नामी बैंक अगर डूबा भी तो क्यों और किस लिये?
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