इजरायल और ईरान के बीच अमेरिका का ढुलमुल रवैया उसके आंतरिक हालातों की वजह से, बाइडेन खोज रहे रास्ता
दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है. यूक्रेन और रुस का युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है.अक्टूबर महीने में हमास ने इजरायल पर काफी क्रूर हमला किया था.उसके बाद से इजरायल का पलटवार अभी तक चल रहा है. ईरान ने भी अब मोर्चा खोल दिया है. ईरान ने कहा है कि वह सीरिया के दमिश्क में उसके वाणिज्य-दूतावास पर हुए हमले का बदला ले रहा है. अभी दुनिया को जो स्थिति है वो काफी गंभीर है. इसमें ईरान की तरफ से इजरायल पर हुआ हमला एक नया मोर्चा खोल दे रहा है.
अमेरिका कर रहा है मदद
अमेरिका अभी कई सहयोगी देशों की मदद कर रहा है. रूस और यूक्रेन का युद्ध तीसरे साल में प्रवेश करने वाला है. यूएस की ओर से यूक्रेन को बिलियन डॉलर की सहायता दी गयी है. आर्म्स से भी यूक्रेन की मदद काफी हद तक की गई है. पिछले अक्टूबर से हमास के विरोध में इजरायल का युद्ध जारी है. इस हाल में अमेरिका थोड़ा असमंजस में हैं. अमेरिका में हाल में ही चुनाव भी होने वाले हैं. कहीं अमेरिका की ओर से चली गयी चाल वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन पर ना भारी पड़ जाए. अमेरिका को ये भी डर है कि ये सब चीजें कहीं तीसरे विश्व युद्ध की ओर ना लेकर चली जाएं, इसको ध्यान में रखते हुए यूएस की सरकार फूंक-फूंक कर अपने कदम रख रही है.
इजरायल के साथ अमेरिका खड़ा होने की बात तो कर रहा है, लेकिन वहां के कुछ डेमोक्रेट का कहना है कि अगर अमेरिका अंधा होकर इजरायल की मदद करता है तो कहीं ये कदम तीसरे विश्व युद्ध की ओर ना लेकर चला जाए. अमेरिका इसलिए इजरायल को समझाने की भी कोशिश कर रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अगर ईरान की टेरेटरी पर हमला हुआ है तो वो जवाबी कार्रवाई कर सकता है. इसमें अमेरिका कोई सैन्य कोई मदद नहीं करेगा. इसलिए थोड़ी ऊहापोह की स्थिति भी बनी है. इजरायल की मदद के लिए जी-7 समूह में अमेरिका, इटली, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और कनाडा प्रतिबद्ध है. इजरायल इसमें काफी सक्षम है और ईरान उसके आगे कभी भी नहीं टिक पाएगा.
यूएस की आर्थिक हालत भी मसला
यूएस की आर्थिक हालात की बात करें तो वहां की अर्थव्यवस्था थोड़ी खराब तो है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ यूएस का के साथ ऐसा है बल्कि पूरे विश्व के देशों के साथ ऐसा हाल बना हुआ है. आर्थिक हालातों से हटकर देखें तो आगामी नवंबर माह में यूएस में चुनाव है. कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिमों का काफी बोलबाला है. अभी हाल में डेमोक्रेट का एक प्राइमरी चुनाव हुआ था जिसमें काफी संख्या में जो बाइडेन के खिलाफ में वोट किए गए थे. डेमोक्रेट को ये लग रहा है कि अगर इजरायल को आंख मूंदकर मदद दी जाएगी तो आने वाले नवंबर माह के चुनाव में वर्तमान के अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के खिलाफ एक मुहिम बन सकती है और हो सकता है आने वाला चुनाव भारी पड़ जाए और उनको हार का सामना करना पड़े. इसी हालात को देखते हुए इजरायल के प्रति प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं और कभी ये कह रहे हैं कि वो इजरायल के साथ नहीं खड़े हैं. इजरायल को हर हाल में सीजफायर बनाना होगा. देखा जाए तो गाजा पर इजरायल के हमले से आतंकी तो मारे जा रहे हैं, लेकिन उसमें कई नागरिकों की भी मौत हो जा रही है.
हार का भी डर है जो बाइडेन को
अमेरिका के अंदरूनी मामलों को देखें तो कुछ ऐसे इलाके हैं जहां अल्पसंख्यकों का खूब बोलबाला है. उनका खेमा कभी रिपब्लिकन की ओर जाता है तो कभी डेमोक्रेट की ओर जाता है. अल्पसंख्यकों की संख्या बढ़ रही है और उन्होंने एक मोर्चा खोल कर रखा है कि इजरायल की ओर से अवांछित हमला किया जा रहा है. हालांकि, इसमें इजरायल ये कह रहा है कि उस पर 9/11 की तरह अटैक हुआ था. जो बाइडेन का कहना है कि युद्ध ना हो और सीजफायर किया जाए. वैसे, अंदरखाने की बात ये है कि इजरायल के साथ अमेरिका पूरी तरह से खड़ा है, लेकिन फिर भी फूंक-फूंक कर जो बाइडेन कदम रख रहे हैं. यूएस का जो जनमानस है वो किसी प्रकार का युद्ध नहीं चाहते.
9/11 के अटैक के बाद से वो लगातार युद्ध जैसे ही हालात झेल रहे हैं. अमेरिका के नागरिकों का ये मत है कि आखिरकार अमेरिका दूसरों के मुद्दे में क्यों हस्तक्षेप करें. रिपब्लिकन या डेमोक्रेट हो, सभी सोच-समझ कर बोल रहे है. उधर रूस अमेरिका को संयम रखने की बात कह रहा है. अगर रूस,चीन और ईरान एक साथ हो जाए तो ये खतरे की घंटी हो सकती है. हालांकि, अमेरिका काफी पावरफुल देश है. लेकिन अगर कहीं युद्ध होता है तो लोग नहीं चाहते कि उनकी आर्मी कहीं और युद्ध करने जाए. अंदर की ये पॉलिटिक्स भी है जो कि बाइडेन को किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में लाकर खड़ी करती है. ऐसा पहले कभी नहीं था,जो आज के समय में कुछ सालों में हो रहा है.
भारत की अमेरिका को जरूरत
पिछले दस साल से भारत काफी पावरफुल हुआ है. ये पूरे विश्व ने देखा है. पिछले दस सालों में अमेरिका पाकिस्तान को छोड़कर भारत के साथ हाथ मिला रहा है. इसके कई पहलू हैं. एक तो भारत अर्थव्यवस्था में काफी मजबूत हुआ है और राजनीतिक स्थिरता है. अमेरिका को ये लग रहा है कि अगर कोई फैसला होगा तो वो दीर्घकालिक होगा. दूसरी चीज ये है कि भारत वो एक मात्र देश है जो चीन को काउंटर कर सकता है, क्योंकि भारत की चीन से सीमा लगती है. अमेरिका की दूरी चीन से तो करीब 14 हजार किलोमीटर दूर की है. पश्चिमी मीडिया और थिंकटैंक को अब लगने लगा है कि भारत एक अच्छा सहयोगी देश है. इसकी शुरूआत ओबामा के साथ हुई जो ट्रंप के बाद जो बाइडेन तक चलती आ रही है.
अमेरिका को भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाने का दो मुख्य कारण हो सकता है जिसमें पहला चीन को काउंटर करने और दूसरा अगर रूस को कोई बात मनवानी हो तो वो भारत की मदद से हो सकता है. इसलिए वो भारत ही है जो अमेरिका के लिए सहयोगी हो सकता है. पहली बार ऐसा हुआ है कि अमेरिका और भारत ने आर्म्स टेक्नोलॉजी को शेयर किया गया है. रक्षा हथियार और रक्षा प्रणाली को साझा कर रहे हैं. फिलहाल भारत को अमेरिका का और अमेरिका को भारत की सहयोग की जरूरत है. भारत को अमेरिका की और अमेरिका को भारत की सहयोग की जरूरत है. दुनिया की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश अमेरिका और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत मिलकर काम करे तो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बनेंगे.
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