भाजपा की चुनाव से काफी पहले मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के पीछे है शाह का दिमाग, समझिए पूरा मामला
![भाजपा की चुनाव से काफी पहले मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के पीछे है शाह का दिमाग, समझिए पूरा मामला Amit Shah is now taking all measures from ticket distribution to heal the activists to reclaim Bhopal भाजपा की चुनाव से काफी पहले मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के पीछे है शाह का दिमाग, समझिए पूरा मामला](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/08/18/d259e1dc8aeb65c410fd49a68c958adb1692354393830120_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
तकरीबन चौंकाने के अंदाज में विधानसभा चुनाव के तीन महीने पहले ही मध्यप्रदेश बीजेपी ने 39 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. ऐसा पहली बार हुआ है कि चुनाव की तारीखें आयी नहीं है और बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों को सामने ला दिया है. हालांकि, ये सारे नाम उन सीटों के उम्मीदवारों के हैं जहां से बीजेपी दो बार से लगातार हार रहीं है या फिर हाल के सर्वे में इन सीटों पर बीजेपी की हालत अच्छी नहीं है. 2018 के विधानसभा चुनाव में जिन 103 सीटों पर हारी हैं उन सीटों को पार्टी ने आकांक्षी सीटों का नाम देकर नयी रणनीति बनायी थी. इसका पहला कदम प्रत्याशी का चयन पहले कर उसका नाम चुनाव के दो-तीन महीने पहले घोषित करना. मकसद ये रहा कि प्रत्याशी को प्रचार और मतदाताओं में पहचान बनाने के लिये लंबा वक्त मिल जाये, साथ ही पार्टी के कैडर को संदेश दे दिया जाये कि नाराजगी छोड़ जुट जाओ जीत को लाने में.
मध्यप्रदेश के लिए बीजेपी का अलग है दांव
आमतौर पर बीजेपी ऐसा करती नहीं है मगर मध्यप्रदेश के लिये बीजेपी के आलाकमान ने कुछ अलग ही सोच रखा है. ये बदलाव हुआ है गृह मंत्री अमित शाह के चुनाव की कमान संभालने के साथ ही. कई सारे प्रभारियों की मनमर्जी से चल रहे मध्यप्रदेश बीजेपी संगठन को कसने के लिये अमित शाह ने कोई कसर नही छोड़ी है. लगातार बैठकें दिल्ली से लेकर भोपाल तक बुलाईं और जमीनी स्तर के फीडबैक को आधार बनाकर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. अब तक जो होता था चाहे मुख्यमंत्री की रोज की यात्राएं, भारी सरकारी प्रचार और हितग्राही सम्मेलन उनको नहीं रोका मगर जमीनी स्तर की हवा को पहचानना और उसके मुताबिक तैयारियों को बल दिया. प्रदेश के सारे बडे नेताओं को एक साथ बैठाया और बताया गया कि प्रदेश में सरकार में वापसी करनी है तो पहली जरूरत रूठे कार्यकर्ता को मनाने की है. इसके लिये पार्टी के पुराने नाराज नेताओं को ही काम पर लगाया. कल तक नाराज नेता अब जिलों संभागों की खाक छान रहे हैं और कार्यकर्ता सम्मेलन करते नजर आ रहे हैं. कार्यकर्ता मान जायेंगे, उनमें जीत का विश्वास आ जायेगा तभी चुनाव जीता जा सकता है. इंदौर में हुये संभागीय सम्मेलन में अमित शाह ने मंच पर बैठे नेताओ की ओर इशारा कर कहा था कि चुनाव मंच पर बैठे नेता नहीं, आप जैसा कार्यकर्ता जिताता है. ये संदेश दूर तक गया. एक दूसरे से दूर-दूर छिटक रहे संगठन के नेताओं को एकजुटता का संदेश दिया और सबको काम बांट कर उस काम की प्रगति पर नजर रखने लगे अमित शाह.
अमित शाह खुद संभाल रहे कमान
शाह की मध्यप्रदेश चुनाव में हुई एंट्री को पार्टी के बडे नेताओं ने ही केंद्र शासित राज्यादेश माना और समझ गये कि अब सारे फैसले केंद्र ही करेगा और सख्त फैसले होने लगे. अमित शाह ने सबसे पहले तो पुराने प्रभारियों को उनका दायरा दिखाया. कुछ को बिना काम के तो कुछ को प्रदेश के बाहर नया काम सौंप दिया. पुराने की जगह नए प्रभारियों की प्रदेश में प्रवेश दिया. विधानसभा सीटों से आ रहे नकारात्मक फीडबैक को समझा और फैसले लेने शुरू कर दिये. बीजेपी आलाकमान की तरफ से आने वाले दिनों में कुछ और चौंकाने वाले निर्णय सामने आयेगे मगर पहले फैसले ने ही बता दिया है कि पार्टी मध्यप्रदेश के चुनाव को आसानी से कांग्रेस के हाथ में जाने नहीं देगी. ये पहली सूची उसी रणनीति का पहला कदम है. अब बात इस सूची की, जिसमें हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी तय कर दिये हैं। इस सूची में अधिकतर पुराने लोगां को ही दोहराया गया है. नये प्रत्याशियों की बात करें तो वो सिर्फ 11 हैं. इसमें चालीस साल से कम उमर वाले सिर्फ सात हैं. पार्टी ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है और कांग्रेस के जीते उम्मीदवारों के सामने पार्टी का मजबूत उम्मीदवार उतारा है बिना किसी खास सोच के मकसद सीट निकालना ही रहा है. उम्मीद थी कि पार्टी ज्यादा से ज्यादा नये चेहरों को जगह देकर चौंकाती मगर अधिकतर सीटों पर वही प्रत्याशी एक दूसरे के खिलाफ लडते नजर आ रहे है जो पिछले चुनाव में आमने-सामने थे.
सबको साथ होने का संदेश है 'सूची"
बीजेपी ने इस सूची में संदेश दिया है कि कददावर नेता की चलती रहेगी. उनकी नाराजगी से बचा गया है. लाल सिहं आर्य, ध्रुव नारायण सिंह, ओमप्रकाश धुर्वे, राजेश सोनकर, अंचल सोनकर, निर्मला भूरिया और प्रीतम सिंह लोधी ये सारे वो पुराने नाम हैं, जिन पर पार्टी ने हार के बाद भरोसा जताया है। कुछ उम्मीदवार को सीट देने के पहले भरोसे में नहीं लिया गया. आलोक शर्मा भोपाल उत्तर से नहीं लड़ना चाहते थे. ओमप्रकाश धुर्वे शाहपुरा से नहीं डिंडोरी से लडना चाहते थे. बिछिया सूची में नाम आने के बाद डा विजय आनंद ने मंडला जिला कार्यालय में जाकर सदस्यता ली. वैसे ज्यादा पहले नाम घोषित करने के अपने नफे नुकसान दोनों हैं और पार्टी ने अच्छी तरह सोचने के बाद ही ये जुआ चला है. अब देखना ये है कि इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है. वैसे पिछले चुनाव में बीजेपी 103 सीटें हारी थी और बाकी की हारी सीटों के लिये पार्टी क्या करने जा रही है इसका इंतजार रहेग.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
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