वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह की तलाश में एक तरफ जहां पुलिस की तरफ से उसके कई ठिकानों पर लगातार दबिश दी जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास ने नेपाल से कहा कि अमृतपाल नेपाल में ही कहीं छिपा है और वह हुलिया बदलकर दूसरे देश भाग सकता है. इसके बाद नेपाल में हॉटल, लॉज के अंदर उसके फोटो सर्कुलेट किए जा रहे हैं. साथ ही, नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी चौकसी बढ़ा दी गई है. लेकिन अमृतपाल सिंह का भारत से नेपाल भाग जाना... मैं, समझता हूं कि ये बड़ा ही निराशा का विषय है और अमृतपाल को पंजाब पुलिस नहीं पकड़ पाई. ये उनके लिए कोई गर्व की बात नहीं है. पंजाब पुलिस का बड़ा ही शानदार इतिहास रहा है. लेकिन एक क्रिमिनल को पकड़ने में उन्हें इतनी दिक्कत हुई और ये कहा जा रहा है कि अब वो हिंदुस्तान से भागकर नेपाल चला गया है और वो वहां से भी कहीं और जाने की फिराक में है. ये बड़े शर्म की बात है. मैं समझता हूं कि न केवल पंजाब पुलिस के लिए बल्कि हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी ये बहुत बड़ी चुनौती है.
अमृतपाल को पकड़ने के लिए पहले पंजाब पुलिस का टकराव जालंधर में हुआ और कहा ये जाता है कि तीन गाड़ियां थी जिसमें से दो को तो पुलिस ने पकड़ लिया और उसमें सवार सात से आठ लोगों को पकड़ लिया. उनसे कुछ हथियार और सामान बरामद हुआ लेकिन तीसरी गाड़ी जिसमें कि अमृतपाल सवार था वो भाग निकला लेकिन मुझे ये नहीं समझ आता कि आपके नजर के सामने से, पुलिस चौकी व नाके के सामने से अमृतपाल भागा है. उसके बावजूद वह क्यों नहीं पकड़ा गया. चूंकि जब कोई भाग रहा होता है तो वो जिस रास्ते से भागता है उसे और उसमें मिलने वाले सभी रास्तों को चौकन्ना कर दिया जाता है कि इस तरह की गाड़ी है और ये आदमी भागा हुआ है और हर जगह नाकेबंदी कर के उसे पकड़ लेना चाहिए था. लेकिन वो मौका पंजाब पुलिस चूक गई और हो सकता है कि उन्होंने उसे भागने दिया ये मैं नहीं जानता हूं और मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं.
अमृतपाल का भागना सुरक्षा एजेंसियों के लिए विफलता
इतना जरूर है कि उसे पकड़ने में कहीं न कहीं कोई भयंकर कोताही बरती गई है, गफलत की गई है पंजाब पुलिस द्वारा चूंकि जालंधर में वो आपकी नजरों के सामने भागा और उसके बाद आप सिर्फ अटकलें लगाते रहें कि उसे पटियाला में देखा गया है, हिमाचल में देखा गया है. कभी किसी ने कहा कि उसे महाराष्ट्र में देखा गया है पुणे के पास यानी जहां जिसे उसके हुलिया की तस्वीरें दिखी तो कह दिया गया कि वह अमृतपाल है और ये हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है कुछ कहा नहीं जा सकता है और अब ये कहना कि वह नेपाल चला गया है तो ये तो बड़ा ही शर्म का विषय है. चूंकि नेपाल बॉर्डर पर भी हमारे सुरक्षा कर्मी हैं ऐसे में कहां से और कैसे वो निकल गया और ये इंटेलिजेंस ब्यूरो का भी फेल्योर है और पंजाब पुलिस का तो है ही कि आखिर उसको पकड़ा क्यों नहीं गया.
अगर वो नेपाल चला गया है तो सवाल ये भी है कि वहां की पुलिस हमें कितना सहयोग करेगी मैं इसे लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हूं क्योंकि नेपाल जाने के बाद वहां से कहीं और जाना बहुत ही आसान है और अगर वह वहां से भी कहीं फरार हो जाता है तो समझ लीजिए की वह हमारी गिरफ्त से भी चला गया और फिर वह बाहर जाकर तरह-तरह की बयानबाजी करेगा और फिर खालिस्तान समर्थक जो भी लोग हैं उनके लिए एक केंद्र बिंदु बन जाएगा कि अमृतपाल का समर्थन करो और फिर उसने ये कहा और वो कहा का दौर चलेगा. वो आसानी से भारत सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा करता रहेगा और जहर उगलता रहेगा.
खालिस्तान समर्थकों को मिलेगा बल
केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका तो यही होती है कि जो एजेंसी जहां होती है वहीं, सतर्क हो जाए और भागने वाले जितने भी संभावित रास्ते हैं उनको चिन्हित करे. उन रास्तों में फिर चेक नाका लगाकर जांच करें कि कौन आ रहा है, कौन जा रहा है. ऐसे तो दिल्ली में आप पाएंगे की जब नाके लगे रहते हैं तो लोगों को असुविधा होती है और कभी किसी बड़े अपराधी को पकड़े हुए तो मैंने नहीं सुना है. नाका लगाने से केवल ट्रैफिक स्लोडाउन हो जाती है और जहां असली नाका लगाकर पकड़ने की बात है तो हम वहां चूक जाते हैं. मैंने कहा न कि इसमें कोई बहुत बड़ी गफलत हुई है और इंटेलिजेंस ब्यूरो, पंजाब पुलिस और नेपाल बॉर्डर पर जो फोर्सेज हैं सबके लिए बड़ी शर्म की बात है. मैंने कहा न कि सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो पंजाब पुलिस की है लेकिन जब कोई वांक्षित अपराधी होता है तो केंद्रीय इंटेलिजेंस ब्यूरो की भी ये जिम्मेदारी होती है कि उसे ट्रैक करें और नजदीकी पुलिस थाने को इसकी सूचना दें और उसकी गिरफ्तारी को सुनिश्चित करें. चूंकि ये एक राष्ट्रीय मुद्दा था, ये पंजाब पुलिस का कोई घरेलू मुद्दा नहीं था.
भारत के लिए ये आदमी और मुश्किलें बढ़ाएगा. चूंकि इसे खालिस्तान समर्थकों का और बल मिल जाएगा और ये तो कहा जाएगा कि देखिए भारत सरकार इसे पकड़ने में नाकाम रही है. विदेशों में बहुत सारे खालिस्तान समर्थक बैठै हुए हैं और आप देख ही रहे हैं कि भारतीय दूतावास लंदन में कभी वाशिंगटन में तो कभी न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर में यानी जगह-जगह ये तमाशा हो गया है. कनाडा में, ऑस्ट्रेलिया में मंदिर पर हमला और ये हर दूसरे या तीसरे दिन हो रही है. भारत सरकार को कुछ ऐसे तरीके अपनाने पड़ेंगे की इन लोगों पर अंकुश लगाया जा सके.
पाकिस्तान ने नेपाल का रास्ता हमेशा आतंकवादियों को समर्थन देने के लिए खुला रखा है और ये आज की बात नहीं है. जब से पंजाब में आतंकवाद शुरू हुआ है तब से नेपाल और काठमांडू का रास्ता आतंकवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों ने इसका इस्तेमाल किया है. नेपाल की पुलिस या तो इसके लिए छूट देती है या फिर वहां की सरकार की तरफ से सख्त निर्देश नहीं रहते हैं. नेपाल एक ऐसी जमीन है कि वहां भारत विरोधी तत्व भारत से निकलकर वहां जाते हैं और वहां से फिर विदेश चले जाते हैं. नेपाल से हमें जिस स्तर का सहयोग चाहिए होता है वो नहीं मिल पाता है. बिल्कुल मुझे लगता है कि अमृतपाल के मामले पर पुलिस को सख्ती, सतर्कता और सावधानी दिखानी चाहिए थी.
(ये आर्टिकल पूरी तरह निजी विचार पर आधारित है.)