सिख धर्म के प्रवर्तक लेकिन अपनी पूरी जिंदगी एक फकीर की माफिक जीने वाले श्री गुरुनानक देव ने कहा था कि "सच्चा धार्मिक वही है जो सभी लोगो का एक समान रूप से सम्मान करता है और जो नीचों में भी सबसे नीचे रहने वाले के लिए अपनी मदद करने के लिए हर वक़्त तैयार रहता है." लेकिन कल अमृतसर में श्री हरमिंदर साहिब में हुई घटना अनोखी इसलिये है क्योंकि इससे पहले आज तक किसी ने भी ऐसा नज़ारा न तो देखा और न ही कोई ऐसा सोच सकता था कि ऐसा भी कभी हो सकता है. पर,पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उस घटना का वीडियो देखकर हम सबका हैरान होना वाज़िब बनता है. लेकिन लोग ये भी पूछ रहे हैं कि उस शख्स को ऐसी बेअदबी करने के लिए किन लोगों ने उकसाया और उस हरकत के बाद उसे पीट-पीट कर मार देने की इजाज़त देश का कौन-सा कानून देता है?


यूनान के सबसे मशहूर चिंतक ख़लील जिब्रान ने कहा था, "इस संसार में इंसानों और भेड़ों की भीड़ में फर्क करना इसलिये मुश्किल है क्योंकि आप भेड़ों के झुंड को आगे ले जाने वाली भेड़ को तो देख सकते हैं लेकिन धर्म की अफीम के नशे में डूबे हुए लोगों की भीड़ देखकर ये नहीं बता सकते कि इनका रहनुमा आखिर कौन है." जाहिर है कि किसी भी धर्म स्थल का अपमान करना या उसे अपवित्र करने की हरकत को उस समुदाय का बहुसंख्यक समुदाय कभी बर्दाश्त नहीं करेगा. लेकिन बड़ा सवाल ये उठता है कि ऐसी किसी भी बेअदबी करने वाले कि ख़िलाफ़ हमारे देश के कानून में उचित कार्रवाई का प्रावधान है. ऐसी सूरत में  बेअदबी करने वाले एक शख्स को पीट-पीटकर उसकी जान लेने की ये घटना सिर्फ दर्दनाक ही नहीं है, बल्कि ये मज़हबी जुनून में डूबे उन तमाम लोगों को अपनी आंखे खोलने पर भी मजबूर करती है कि फिर आप लोगों में और अफगानिस्तान में बैठे उस तालिबान में क्या फर्क है.


दरअसल, ये घटना जितनी हैरान करने वाली है,उससे भी ज्यादा हैवानियत का सबूत देने वाली भी है कि आखिर हम आज भी किस अमानुषिक माहौल में जी रहे हैं, जहां एक इंसान की गलती की सज़ा उसे मौत के घाट उतारकर दी जा रही है. इस बेदर्दी भरी घटना के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अगर ये अंदेशा जताया है कि इसके पीछे कोई बड़ी साजिश भी हो सकती ह तो उनके इस अनुमान को गलत इसलिये भी ठहरा नहीं सकते कि पंजाब में विधानसभा के चुनाव की घोषणा अगले कुछ दिनों में होने वाली है. लिहाज़ा चुनाव से ऐन पहले इस घटना के जरिये वहां के साम्प्रदायिक सदभाव व भाईचारे में दरार डालने की एक कोशिश के नजरिये से भी इसे देखा जाना चाहिए. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी की कोशिश करने वाले उस अनजान शख्स को पीटकर मारने की बजाय अगर उसे जिंदा रखा जाता,तो कानून अपने हिसाब से ये पता लगाता कि उस शख्स की दिमागी हालत ठीक थी या नहीं और अगर उसने अपने पूरे होशोहवास में इसे अंज़ाम दिया तो किसके कहने पर और क्यों उसने ऐसा किया था. लिहाज़ा,उसकी हत्या ने ही इस घटना के पीछे छुपे सारे सबूतों को मिटा दिया है और अब पुलिस भी इसी पहलू से अपनी जांच में जुटेगी कि उसे जान से मारने के पीछे आखिर क्या साजिश थी.


हालांकि किसी भी राज्य की पुलिस चुनाव से ऐन पहले इस पचड़े में पड़ने से बचना ही चाहती है कि ऐसी घटना का सियासी फायदा किस राजनीतिक दल को हो सकता है लेकिन अहम सवाल ये खड़ा होता है कि क्या ये घटना पंजाब को उसी अस्सी के दशक में ले जाने के सुनियोजित प्लान का ही एक हिस्सा थी, जब वहां आतंकवाद अपने चरम पर था और हिंदू व सिखों के बीच जानलेवा खाई पैदा कर दी गई थी? ये सवाल इसलिये मायने रखता है कि शनिवार को हुई घटना को अंजाम देने वाला शख्स एक सिख नहीं बल्कि सहजधारी यानी हिंदू था, जिसने गुरुद्वारे में प्रवेश के लिए जरुरी मर्यादा के मुताबिक अपने सिर पर रुमाला बांध रखा था.


बेशक सिख धर्म की मर्यादा के लिहाज़ से उसकी ग़लती को मामूली नहीं कहा जा सकता है लेकिन उसकी इतनी बड़ी सजा देने के पीछे कहीं न कहीं सियासी साज़िश की बू आती है. हरिमंदिर साहिब दुनिया में स्वर्ण मंदिर के नाम से मशहूर है लेकिन वो सबके लिए एक ऐसा पवित्र स्थान है जहां न जाति-मज़हब का भेदभाव है और न ही किसी तरह की ऊंचनीच का. सिखों के चौथे गुरु श्री रामदास जी ने जब हरि के इस मंदिर को बनाने का संकल्प लिया तो दिसंबर 1588 में उन्होंने लाहौर के सूफी सन्त मियां मीर से  इस गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी.


संसार को समानता,भाईचारे व मजलूमों की रक्षा करने का उपदेश देने वाले गुरुनानक देव जी की महिमा का बखान करते हुए किसी शायर ने लिखा था-


"न हिन्दू हूँ न मुसलमान,न भीड़ में हूँ,न


ही कोई शोर हूँ,इसीलिये मैं कोई और हूं !"



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