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ये चिट्ठी हर उन IIT-ians के लिए जिन्होंने कभी ना कभी अपनी जिंदगी में ऐसा महसूस किया होगा
इंटैलिजेंट IIT-ians,
मैं तुम्हारी वो दोस्त हूं जिसने कभी आईआईटी, आईआईएम, एम्स के क्लासरुम नहीं देखे, जिसे sin2(x) + cos2(x) = 1 के अलावा आज कोई और ट्रिग्नोमेट्री का फार्मूला सही-सही याद नहीं लेकिन आज मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूं. मुझे नहीं पता कि मेरी बात तुम्हारी जिंदगी के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना बदलेगी लेकिन फिर भी मैं ये बात तुमसे कहना चाहती हूं.
इस दुनिया, तुम्हारे मां-पिता या रिश्तेदारों के लिए शायद ये तुम्हारी सबसे बड़ी उपलब्धि हो कि तुम आईआईटी जैसे संस्थान में पढ़ते हो, लेकिन क्या तुम अपनी जिंदगी में ये पाकर खुश हो? अगर हो तो अच्छी बात है लेकिन नहीं तो इस मैथ, फिजिक्स या केमेस्ट्री में उलझकर जान मत दो बल्कि कोशिश करो वो खोजने कि जो तुम चाहते हो. ये हो सकता है कि अपने दोस्त या घरवालों से कहने में तुम डरो, हो सकता है आईआईटी छोड़ने की बात सुनते ही लोग तुम्हे पागल समझें , पापा डांट लगा कर कहें 'जो चल रहा है चलने दो' लेकिन तुम मजबूत बनो, एक बार फिर अपनी बात सबके सामने रखो और तब तक रखो जबतक ये लोग समझ ना जाएं कि तुम अपनी जिंदगी से कुछ और चाहते हो.
तुम्हें मैं अपनी कहानी बताती हूं, 10वीं में मेरे अच्छे नंबर आए, लोग चाहते थे कि मैं मैथ्स लूं, पहले तो मैंने ज्यादा सोचा नहीं लेकिन जुलाई के पहले ही हफ्ते में बड़ी बहन की किताबें देख के लगा ये मैं नहीं करना चाहती. मैंने घर वालों से बात कि तो उन्हें मेरी बात खटकी.. काफी बात-तकरार के बाद घर वालों ने बॉयोलॉजी पर 'एडजस्ट' किया. करना मैं बॉयोलॉजी भी नहीं चाहती थी ( यूपी में कॉमर्स और ह्यूमैनिटीज़ वालों को गदहा ही घोषितकर देते हैं) लेकिन मैंने भी बॉयो के साथ एडस्ट कर लिया. 12वीं के एक्जाम हो गए. फिजिक्स, बॉयो, इंग्लिश में अच्छे नंबर आए लेकिन केमेस्ट्री में अच्छा नहीं हुआ. हर मां-पापा की तरह मेरे मां-पापा भी चाहते थे कि मैं सीबीएसई या सीपीएमटी (तब NEET नहीं था) एंट्रेंस दूं. मैंने दिया लेकिन मुझे पता था कि मैं ये नहीं कर सकती और कर भी नहीं पाई क्योंकि मैं जर्नलिज्म करना चाहती थी. मैंने जर्नलिज्म किया और 19 साल की उम्र में देश के बड़े चैनल में मेरा सलेक्शन हुआ.
इस पूरी कहानी के जरिए मैं ये कतई नहीं कहना चाहती कि मैंने जिंदगी में बहुत बड़ा मुकाम हासिल कर लिया लेकिन मैं ये बताना चाहती हूं कि अगर मैं बॉयो-मैथ्स को ही चुनती तो शायद अब तक ये सोच रही होती कि मैं अपनी जिंदगी में चाहती क्या हूं? और यकीनन इससे ना सिर्फ मैं बल्कि मेरे चाहने वाले भी परेशान ही रहते. आज जो मैं ये जानती हूं कि मेरी जिंदगी में मुझे क्या चाहिए शायद तब मैं खुद को ही नहीं जान पाती.
तुम आईआईटी या आईआईएम में आए तो तुममें कुछ खास होगा. वैसे हर शख्स में कुछ खास होता है. लेकिन ये जरुरी नहीं कि ये कॉलेज तुम्हारे लिए खास है. हो सकता है आईआईटी वो चैलेंज हो जो दुनिया ने तुम्हे दिया है लेकिन क्या ये चैलेंज तुम लेना चाहते थे कभी या लोगों की खुशी की खातिर ले लिया. अपनी जिंदगी में तुम खुद को चैलेंज करो, उससे लड़ो और यकीन मानों दोस्त ये खुद को दिया हुआ चैलेंज जब हम जीतते हैं ना तो बड़ा सुकून मिलता है.
अपनी हॉस्टल की बालकनी से मत कूदो, पंखे से ना लटकों तुम इस दुनिया में नया ट्रेंड सेट करो, वो करेज दिखाओ जो शायदा तुम अब तक दिखा नहीं सके. जिसपर दुनिया अपनी राह बनाए.. और अगर 14-15 साल की पढ़ाई के बाद नहीं पढ़ना चाहते ये फिजिक्स, मैथ्स तो छोड़ दो, ये लोग जो तुम्हें आज आईआईटी छोड़ने पर कोसेंगे, बेवकूफ कहेंगे वो कल तुम्हारे इस फैसले की तारीफ करेंगे लेकिन अगर तुम मर गए तो ऐसा नहीं होगा. आने वाले तुम्हारे जूनियर्स भी तुम्हारे किस्से सुनेंगे और हो सकता है उनमें से कई ये करेज दिखाएं.
ह्यूमैनिटीज़ पढ़ने वाली तुम्हारी एक दोस्त
( गुरुवार की सुबह आईआईटी दिल्ली के 19 साल के एक स्टूटेंड ने अपनी बालकनी से कूद कर जान देने की कोशिश की. स्टूडेंट एम्स में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है. विंध्याचल हॉस्टल में रहने वाला नीतीश कुमार पुर्ति नाम का ये स्टूडेंट फिजिक्स से इंजीनियरिंग कर रहा है. आत्महत्या की कोशिश की वजह पढ़ाई को लेकर बढ़ता प्रेशर बताया जा रहा है. इसके अलावा कोटा से हर साल आईआईटी एंट्रेंस एक्जाम की तैयारी करने वालों की आत्महत्या की खबरें सामने आती रहती हैं. ये चिट्ठी इसी संदर्भ में लिखी गई है.) Follow on twitter: @Kirtidubey2 Facebook नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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