नई दिल्लीः जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठा लिया है. ऐसे फैसलों के परिणाम दूरगामी होते हैं, लिहाजा उन्हें लेकर तत्काल कोई सटीक अंदाजा लगा लेना मुश्किल होता है. फिर भी यह तय है कि इससे देश की राजनीति में बड़े बदलाव आने वाले हैं. सबसे बड़ी बात तो इस फैसले के पक्ष में यही जा रही है कि देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन कर दिया है. पहले से कमजोर विपक्ष खासतौर से कांग्रेस के लिए अब अजीब सी स्थिति पैदा हो गई है.


एक तरफ वह गंभीर किस्म के आंतरिक संकट से जूझ रही है, वहीं उसके सामने अब यह बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि पार्टी इस तरह के कदम पर क्या रणनीति अपनाए? इसका विरोध करे तो किन आधारों पर करे? उसके लिए बहुत ठोस आधार होना जरूरी है, क्योंकि मुल्क में जिस तरह इस फैसले का स्वागत किया जा रहा है, उसे देखते हुए तथ्यहीन विरोध कांग्रेस की प्रतिष्ठा को और कम कर देगा.


इसका एक उपाय तो यह हो सकता है कि फिलहाल औपचारिक सा विरोध कर के अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर विमर्श के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन बुला लिया जाए. इससे कांग्रेस को चिंतन का समय भी मिल जाएगा और आम जनमानस भांपने का भी. क्योंकि वर्तमान बीजेपी सरकार के कामकाज को देख कर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि उसने पूरे देश की न सही लेकिन एक बड़े वर्ग की नब्ज पर हाथ रख दिया है.


सो तीन तलाक पर कानून बनाने वाला कदम हो या अनुच्छेद 370 हटाने का मामला, उसे जमीनी स्तर पर भी एक पक्ष का सहयोग जरूर मिल रहा है. हालांकि यह बहुसंख्यकवाद की और बढ़ता जनतंत्र भी हो सकता है. पहले कभी लगता था कि हमारे देश का एक जनतांत्रिक ढांचा है, जिसमें सुदृढ़ विपक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. अब स्थिति पहले जैसी नजर नहीं आती.


ऐसे में अगर राम मंदिर पर बहुसंख्यकों के हक में कोई फैसला आ गया तो कांग्रेस सहित विपक्ष की दूसरी पार्टियों को भी गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है. विपक्ष को इस पर भी सोचने की जरूरत है.


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जहां तक अनुच्छेद 370 को हटाए जाने या कमजोर करने का सवाल है, फिलहाल के सारे समीकरण सरकार व सत्ताधारी दल बजेपी के पक्ष में जाते दिख रहे हैं. इससे पहले की राजनीति में कांग्रेस ने, बीजेपी के कार्यकर्ताओं के शब्दों में कहें तो एक विशेष परिवार ने वहां की राजनीति का सुख उठाया. वह ऐसे कि जम्मू क्षेत्र पर अक्सर कांग्रेस का कब्जा रहता था, तो घाटी में ज्यादातर नेशनल कॉन्फ्रेंस या किसी अन्य स्थानीय पार्टी का. इनकी भूमिका अक्सर कांग्रेस के सहयोगी दल की सी रही है.


फिलहाल वहां से पार्टी आधारित राजनीति समाप्त होती दिख रही है, सो इसका असर भी कांग्रेस पर पड़ना है. इसके अलावा निकट भविष्य में महाराष्ट्र, झारखंड व हरियाणा विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं.


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