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कहीं ये कबड्डी के हॉकी के रास्ते पर जाने की शुरूआत तो नहीं?

करीब तीन दशक में जो नहीं हुआ था वो 2018 में हो गया. भारतीय पुरूषों और महिलाओं की टीम पहली बार एशियन गेम्स के कबड्डी इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने से चूक गई. पुरूषों की टीम के हाथ से गोल्ड मेडल तो कल ही फिसल गया था.

करीब तीन दशक में जो नहीं हुआ था वो 2018 में हो गया. भारतीय पुरूषों और महिलाओं की टीम पहली बार एशियन गेम्स के कबड्डी इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने से चूक गई. पुरूषों की टीम के हाथ से गोल्ड मेडल तो कल ही फिसल गया था. आज महिलाओं की टीम से उम्मीद थी कि वो इस मायूसी को दूर करेंगी लेकिन उन्होंने भी निराश किया. ईरान के खिलाफ महिला टीम का मुकाबला एक वक्त पर रोचक हो गया था. स्कोर 27-24 का था. लेकिन इसी स्कोर पर मैच खत्म हो गया और ईरान ने भारतीय महिला टीम को हराकर गोल्ड मेडल जीता. इससे पहले ईरान के पुरूषों की टीम ने ही भारतीय टीम को हराकर उन्हें कांस्य पदक से संतोष करने के लिए मजबूर किया था. ईरान ने भारत को 27-18 से हराया था. ये पहला मौका है जब किसी भी टूर्नामेंट में ईरान ने भारत को हराया है.

एशियाई खेलों में 1990 में पहली बार कबड्डी को शामिल किया गया था. तब से लेकर अब तक इस खेल में भारत का वर्चस्व था. ऐसा लगता था कि भारतीय टीम को कबड्डी में हराना नामुमकिन सी बात है. कई बार मजाक में ये भी कहा जाता था कि अगर ओलंपिक में कबड्डी को शामिल कर लिया जाए तो ओलंपिक में भी भारत का एक गोल्ड मेडल पक्का हो जाएगा. लेकिन 2018 एशियन गेम्स के नतीजों ने इस भ्रम को तोड़ कर रख दिया. एशियन गेम्स में जिस तरह का प्रदर्शन रहा उसे देखकर इस बात का डर है कि कहीं कबड्डी भी आने वाले समय में हॉकी के रास्ते पर ना चल दे.

कभी हॉकी में भी होता था वर्चस्व भारतीय टीम का जो वर्चस्व कबड्डी के खेल में था कभी वैसी ही स्थिति हॉकी के खेल में भी थी. 1928 में भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लिया था. जहां उसने गोल्ड मेडल जीता था. इसके बाद 1956 तक भारतीय टीम ने लगातार लॉस एंजेलिस, बर्लिन, लंदन, हेलसिंकी और मेलबर्न ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था. 1960 रोम ओलंपिक में उसे पहली बार सिल्वर मेडल से संतोष करना पडा था. इसके बाद 1964 में टोकियो और फिर 1980 में मॉस्को ओलंपिक में भी भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीता. लेकिन 1980 के बाद जब भारतीय हॉकी टीम की दुर्दशा शुरू हुई तो उसे आज तक मेडल के लिए तरसना पड़ रहा है. करीब करीब चार दशक का समय हो गया है जब भारतीय टीम ने ओलंपिक में पोडियम फिनिश नहीं किया है. इस दौरान उसे 2012 लंदन ओलंपिक्स में बारहवें स्थान से भी संतोष करना पड़ा था. हॉकी के लिए वो शर्मनाक स्थिति थी. राहत की बात अब बस इतनी है कि पिछले कुछ समय से भारतीय टीम के प्रदर्शन में सुधार हुआ है और वो चैंपियंस ट्रॉफी जैसे बड़े टूर्नामेंट में सिल्वर मेडल जीती है. एशियन गेम्स में भी भारतीय टीम से गोल्ड मेडल की उम्मीद है क्योंकि मौजूदा चैंपियन वही है.

क्या कबड्डी लीग का है असर अभी कुछ महीने पहले ही इस बात की चर्चा हो रही थी कि कबड्डी के खेल में भी अब खिलाड़ी करोड़पति हो गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत तेजी से लोकप्रिय हुई कबड्डी लीग में करीब आधा दर्जन खिलाड़ियों की बोली एक करोड़ से ज्यादा की लगी थी. अब एशियन गेम्स में मिली हार के बाद इसी लीग को लेकर चर्चा हो रही है. आवाज उठ रही है कि ईरान की टीम के खिलाड़ियों को भारत में कबड्डी लीग खेलने का बहुत फायदा मिला है. देखा जाए तो ये बहस बेमानी है. अगर ईरान के खिलाड़ियों को यहां खेलने का फायदा हुआ तो हिंदुस्तानी खिलाड़ियों को नुकसान क्यों हुआ? पुरूष टीम की हार के बाद हुई बयानबाजी टीम के अंदर किसी विवाद की आशंका को भी पैदा कर रही है. आपको बता दें कि भारतीय टीम की हार के बाद कोच ने कहा था कि हार की वजह कप्तान का ओवर कॉन्फिडेंस है. मैच के दौरान कप्तान को चोट भी लग गई थी. हालांकि इन सारी बातों से अलग सबसे बड़ा अफसोस इसी बात का है कि उस खेल में बादशाहत पर खतरा मंडराया है जो भारत की मिट्टी का खेल है.

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