बाल विवाह रोकने के लिए असम सरकार का सख्त कानून, सही कदम
असम सरकार ने राज्य में बाल विवाह रोकने के लिए जो सख्त कानूनी कदम उठाया है, वह स्वागतयोग्य है. यह कदम एक ऐसे अपराध(बाल विवाह) के खिलाफ कानूनी हल देगा, जो कि बच्चों को अशक्त बनाता है और जिस अपराध की सामाजिक मान्यता भी है. सरकार ने अपने रुख से एक कठोर संदेश दिया है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए कानूनों का सख्ती से पालन किया जाएगा. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अभी तक राज्य में बाल विवाह के मामलों में 3,000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और चार हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई हैं. सरकार ने बाल विवाह के पीडि़तों के लिए पुनर्वास नीति लाने के लिए कैबिनेट की उपसमिति का भी गठन किया है, जो कि अपनी रिपोर्ट जल्द देगी.
असम सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए सभी 2,197 ग्राम पंचायत सचिवों को बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह रोकथाम अधिकारी के रूप में नामित किया है. ये अधिकारी ही बाल विवाह के मामलों में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत केस करवाएंगे. ये सभी सकारात्मक कदम सही दिशा में उठाए गए हैं, इनसे जवाबदेही तय होगी और कानून निवारक माहौल बनेगा, जिससे राज्य में बाल विवाह उन्मूलन में सहायता मिलेगी.
भारत सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 बनाया था. हालांकि किसी राज्य सरकार ने इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए पहल नहीं की. बाल विवाह एक अपराध है और यह कई दूसरे गंभीर अपराधों जैसे-बाल यौन शोषण, बाल दुर्व्यापार, घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न को भी जन्म देता है. इसके अतिरिक्त यह बच्चों को अशक्त बनाता है और उन्हें उनके मौलिक अधिकारों जैसे-जीने का अधिकार, व्यक्तिगत आजादी, शिक्षा का अधिकार और पसंद के अधिकार से भी वंचित करता है. इस तरह असम सरकार का यह कदम पूर्णत: उचित है. सरकार के इस रुख का अन्य राज्यों को भी अनुकरण करना चाहिए ताकि देशभर में कानून को लागू करने में एकरूपता आए और देश को बाल विवाह मुक्त बनाया जा सके.
असम सरकार को बाल विवाह जैसी विकराल समस्या को खत्म करने के लिए सख्त कदम क्यों उठाना पड़ा? इसे जानने के लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है. राज्य में बाल विवाह, मातृ मृत्यु दर और नाबालिग उम्र में गभर्वती होने की दर कहीं ज्यादा है. पिछले साल आई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के कुछ जिलों में बाल विवाह और मातृ मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी दोगुनी है. एनएफएचएस-5 के अनुसार राज्य के धुबरी जिले में 20-24 साल की 50.8 प्रतिशत लड़कियां ऐसी हैं, जिनका विवाह 18 साल की उम्र से पहले हो गया. दक्षिण शालमारा मानकाचर में 44.7 प्रतिशत, दरंग में 42.8 प्रतिशत, गोलपारा में 41.8 प्रतिशत और बरपेटा में 40.1 प्रतिशत लड़कियां हैं जिनका विवाह 18 साल की उम्र से पहले हो गया. अगर इसी मामले में देश की बात करें तो यह आंकड़ा 23.3 प्रतिशत है जबकि असम में यह 31.8 प्रतिशत है. यहां तक कि मातृ मृत्यु दर के मामले में भी असम की स्थिति दयनीय है. इस मामले में प्रति एक लाख पर देश में जहां 97 मौतें होती हैं, वहीं असम में यह आंकड़ा 195 है.
एनएफएचएस-5 सर्वे के अनुसार 15-19 साल की उम्र की लड़कियों के गर्भवती होने या मां बनने के मामले में भी राज्य का कछाड़ जिला शीर्ष पर है. यहां पर ऐसी लड़कियों की संख्या 29.9 प्रतिशत है, जबकि धुबरी में यह 22.4 प्रतिशत, दरंग में 16.1 प्रतिशत, कामरूप में यह 15.7 प्रतिशत है.
उपरोक्त आंकड़े अपने आप में स्थिति की भयावहता को दर्शाते हैं और इनके चलते ही राज्य सरकार को सख्त कदम उठाना पड़ा है. सरकार सख्त कानून के जरिए बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, जो कि सराहनीय है. इससे बच्चों के प्रति होने वाले अन्य अपराधों पर भी लगाम लगाई जा सकेगी. यह भी जरूरी है कि बाल विवाह के पीडि़तों के पुनर्वास के लिए कैबिनेट की उपसमिति समय से रिपोर्ट दे ताकि उनका पुनर्वास जल्द से जल्द सुनिश्चित किया जा सके. यह उनकी पीड़ा को कम करने का काम करेगा. बाल विवाह एकाकी अपराध नहीं है बल्कि उनके प्रति होने वाले कई गंभीर अपराधों का जन्मदाता है. ये अपराध बच्चों को शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक रूप से हानि पहुंचाते हैं और उनके सामाजिक विकास को भी रोकते हैं.
असम सरकार का यह सख्त कदम उसी श्रंखला की कड़ी है जब नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने पिछले साल ‘बाल विवाह मुक्त भारत’आंदोलन की शुरुआत 16 अक्टूबर को राजस्थान से की थी. बाल विवाह के खिलाफ दुनिया के सबसे बड़े इस जमीनी और देशव्यापी आंदोलन में देश के 10,000 से ज्यादा गांवों में 75,000 से अधिक महिलाओं और बच्चों ने मार्च निकाला था. आंदोलन से दो करोड़ से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे.
कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन असम सरकार के साथ मिलकर राज्य में बाल सुरक्षा तंत्र बनाने पर सक्रियता के साथ काम कर रही है. असम कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के केंद्र बिंदू में है. यह एक सकारात्मक संदेश है कि ‘बाल विवाह मुक्त भारत’अभियान के चंद महीनों बाद ही सरकार ने बच्चों के खिलाफ अपराध करने वालों को सजा दिलाने के लिए सख्त कानून का प्रावधान किया है.
सरकार के इस कदम से जवाबदेही तय होगी, कानून निवारक माहौल बनेगा और बाल विवाह के खिलाफ लड़ने वाले सभी साझेदारों को मजबूती मिलेगी. इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों में बाल विवाह के खिलाफ, इसके दुष्परिणामों और बाल विवाह रोकने के कानून को लेकर जागरूकता फैलानी होगी. साथ ही 18 साल की उम्र तक मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करवानी होगी ताकि बाल विवाह रूपी इस राक्षस का अंत किया जा सके.
लेखक- रविकांत, एडवोकेट, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के एक्सेस टू जस्टिस कार्यक्रम के कंट्री हेड हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)