'अतीक और अशरफ की हत्या साधारण नहीं, गहरी साजिश का हिस्सा, जांच में कई बड़े नाम हो सकते हैं बेपर्दा'
बाहुबली अतीक अहमद और अशरफ की हत्या को लेकर जो तथ्य सामने आए हैं वो तीन-चार तरह से हैं. पहला तथ्य बैकग्राउंड है. बैकग्राउंड ये कहता है कि साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में एक नए मुख्यमंत्री आते हैं और वे कहते हैं कि हम उन व्यक्तियों का नाम लेकर कि ये कर देंगे, वो कर देंगे वगैरह-वगैरह. फिर उसके बाद कार्रवाई भी बिल्कुल टारगेटेड. जिस तरह के फैक्टस आए हैं, उनसे ये माना जा सकता है कि अतीक हो या फिर मुख्तार ये खूंखार अपराधी है. इसमें किसी को कोई शक नहीं है. कोई भी आदमी जो संवेदनशील है और जो इन लोगों का पिछलग्गू नहीं है, वो इस ओपिनियन से जरूर इत्तेफाक रखेगा. ये लोग माफिया, क्रिमिनल्स और गैंगस्टर के रूप में सर्व-स्वीकार्य हैं.
आप इनके ऊपर कार्रवाई कर रहे हैं, इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन, एक स्पष्ट संदेश दिया गया कि टारगेटेड एक्शन होगा, तो वो टारगेट चलता रहा. लगातार उनको लेकर टारगेटेड एक्शंस हुए. ये पृष्ठभूमि नंबर-2 है. इसके बाद पृष्ठभूमि नंबर-3 है 24 फरवरी 2023, जब सब जानते हैं कि बीएसपी विधायक राजूपाल हत्याकांड केस में अहम गवाह उमेशपाल का मर्डर होता है. उसके बाद 25 फरवरी अगला महत्वपूर्ण दिन है जो मुख्यमंत्री विधानसभा के अंदर ये कहते हैं कि फलां को मिट्टी में मिला दूंगा, नाम लेकर.
अतीक का मर्डर, सवालों में यूपी सरकार
उसके बाद 27 तारीख को एक एनकाउंटर, फिर 1 तारीख को एक एनकाउंटर... फिर 5-6 तारीख को जमींदोज होना. फिर अतीक का साबरमति जेल से प्रयागराज लाना और फिर लेकर जाना. 13 अप्रैल को असद की मौत जो हत्या भी हो सकती है, क्योंकि वो एनकाउंटर बेहद संदेहास्पद है. उसके बाद 14 अप्रैल को अतीक अहमद की हत्या. ये पूरा सीक्वेंस एक ऑर्डिनरी क्राइम नहीं है.
पुलिस कस्टडी में जिस व्यक्ति को लेकर ये ढिंढोरे पीट रहे हैं कि हमारी कानून व्यवस्था ऐसी है, जैसे शोले फिल्म के डायलॉग देता था असरानी कि परिंदा भी पर नहीं मारेगा, तो ये भी 24 घंटा ये कहते हैं कि परिंदा भी पर नहीं मारेगा जबकि परिंदे और दरिंदे वहीं घूम रहे थे.
ये हो सकती है राज पोषित हत्या
अतीक का मर्डर राज पोषित हत्या हो सकती है. इसमें बड़े-बड़े लोग शामिल हो सकते हैं. पॉलिटिकल और एक्सट्रिमियस माइंडेड की पूर्ति के लिए ये हत्या कराई गई हो सकती है. इन तथ्यों के दृष्टिगत हम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है कि इन स्थिति में राज्य सरकार और राज्य की पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कराई जा सकती है. इसलिए इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट या फिर हाईकोर्ट के दिशा निर्देश में ही इसका जांच कराई जाए.
कॉमन सेंस ये कहता है कि पॉलिटिकल मोटिव बहुत स्ट्रॉन्ग हो सकता है. 2022 का चुनाव आपने देखा. 2022 के चुनाव में कंस्टेंट फैक्टर रहे और बताए गए. इनके नाम हर व्यक्ति ने लिए. यूनिवर्सल नाम हो गए थे ये. चूंकि पॉलिटिक्स में सिंबलिज्म की बहुत अहमियत है. वोट का बहुत महत्व है. वोट के लिए किसी भी तरह के डिविजन करने या फिर मैसेज देने की बहुत अधिक आवश्यकता है. इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि राजनीति इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है.
लोगों का उठ रहा भरोसा
उस व्यक्ति को जिसकी हत्या हुई, उस मामले में जो व्यक्ति पकड़े गए उनसे 12 घंटे तक पूछताछ की गई. इस दौरान जो भी उटपटांग उसने कहा हो या फिर पुलिस ने लिखा-लिखाया हो. एफआईआर आप पढिये. एफआईआर भी एक कहानी की तरह लग रही है. उसके बाद आपने जेल भेज दिया. इस आशंका से भी अब इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी ज्यूडिशियल कस्टडी में मौत हो जाए. इसलिए, इस मामले में षडयंत्र की गहरी जड़ें होने की स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता है. बाकी सच या फिर झूठ का पता जांच से चल पाएगा. लेकिन ये मात्र फैल्यर नहीं दिखता है. फैल्यर अगर होता और बिना किसी मोटिव के होता तो पुलिस कमिश्नर सस्पेंड हो चुके होते. एक दूसरा संदेश लोगों के बीच जाता. यहां पर आपने सबको बचा रखा है. ऐसे में एक अजीब स्थिति बनी हुई है.
जिस प्रकार से एनकाउंटर हो रहे हैं, नाम लिए जा रहे हैं, मारे जा रहे हैं, ऐसी स्थित में लगता है कि हम बनाना रिपब्लिक में जी रहे हैं. मुझे लगता है कि सामने वाला इतना कॉन्फिडेंट होगा कि वे रटा रटाया इस बारे में कोर्ट में जवाब देगा. राज्य सरकार के रटे रटाये जवाब से आगे चलकर इस बारे में सोचना होगा.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]