पुलिस कस्टडी में अतीक अहमद जैसे हाई प्रोफाइल आरोपी का मीडिया के सामने हत्या कर दिया जाना, जंगल राज की हम सबके दिमाग में जो भी कल्पना थी, उसे बौना साबित कर देता है. यह सपा और बसपा के गुंडाराज से बहुत आगे का स्टेज है. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आम आदमी किस दहशत में जी रहा होगा.
योगी सरकार ने राज्य को पुलिस स्टेट में बदल दिया है. याद रखिये पुलिस स्टेट में सब कुछ पुलिस नहीं करती. पुलिस के सहयोग से गुंडे सब कुछ करते हैं. योगी सरकार में थोड़ी भी शर्म बची हो तो उसे इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
मीडिया डिस्कोर्स से पहले ही जनमत बनवा लिया गया
अतीक के गुजरात से लाए जाते समय मीडिया के डिस्कोर्स का मुद्दा ही यह था कि गाड़ी पलटेगी या नहीं. इससे अपने समर्थकों में इनकी हत्याओं के लिए जिज्ञासा पैदा किया गया. बीजेपी ने जो अपना मुस्लिम विरोधी जनमत बनाया है, उसे परपीड़क समुदाय में बदल दिया गया है. उसे इस खबर का इंतज़ार था. यह संयोग नहीं है कि प्रथम दृष्ट्या ही फर्ज़ी नज़र आने वाले असद के एनकाउंटर पर कई जगह आरएसएस ने विजय जुलूस निकाला. उस पर पुष्प वर्षा की गयी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लोग सीधे बधाई दे रहे थे और वो स्वीकार भी कर रहे थे. पिछली सरकारों में भी कथित मुठभेड़ होते थे लेकिन कभी कोई सीएम क्रेडिट नहीं लेता था. यह सब रक्त पिपासु जनमत को बांधे रखने के लिए ज़रूरी होता है कि उसके नायक के मुंह से भी खून टपकता दिखता रहे. रवांडा में भी ऐसा ही हुआ था. वहाँ के रेडियो ने ऐसे ही हिंसक और उत्तेजक भाषा में हूती लोगों को तुत्सियों के खिलाफ़ खड़ा किया था, जिसमें 8 लाख लोग मारे गए. हमारी हिंदुत्वादी मीडिया समाज को उसी तरफ ले जा रही है. अतीक को मारने वालों ने यूं ही 'जय श्री राम' के नारे नहीं लगाए. उन्हें इस सरकार और सरकार समर्थक समाज के हिस्से में इस नारे की प्रभाव का अंदाज़ा है. वो शुद्ध राजनीतिक हत्यारे थे.
अदालतों का रवैया चिंता का विषय है
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरह मिट्टी में मिला देने की धमकी सदन में देते रहे हैं उससे तो यही ज़ाहिर होता है कि उन्हें अदालत और कानून पर भरोसा नहीं है. उनकी भाषा फ़र्ज़ी मुठभेड़ों के लिए पुलिस को उकसाती है. इससे पुलिस का अपराधीकरण होता है. 2000 में कल्याण सिंह की ऐसी ही भाषा पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी. अगर अभी अदालत सक्रियता दिखाती तो ऐसा माहौल नहीं बनता. अब तो नन्यायपालिका को लोग गैर ज़रूरी समझने लगेंगे. यही बीजेपी की मंशा भी है. योगी आदित्यनाथ के खिलाफ़ दायर भड़काऊ भाषण के मामले अदालत की किस सुरंग में पड़े हैं, कोई नहीं जानता. इसलिए सिर्फ़ विधायिका और मीडिया को ही दोष नहीं दिया जा सकता.
जाति देखकर हो रही है कार्रवाई
योगी सरकार को अपराधियों और माफिया से दिक्कत नहीं है. इसीलिए उनकी जाति के अपराधियों से पुलिस को कोई दिक़्क़त नहीं है. माफिया बृजेश सिंह तो दाउद इब्राहिम के शूटर रहे हैं, जिन्होंने उसके कहने पर जेजे हॉस्पिटल शूट आउट को अंजाम दिया था. लेकिन जाति के कारण वो मुख्यमन्त्री का राजनीतिक संरक्षण पाए हैं. उदयभान सिंह, विनीत सिंह, बृजभूषण सिंह, सोनू सिंह, धनंजय सिंह जैसे लोग सीएम योगी की नज़र में संत हो गए हैं. शायद इस मनोवृत्ति की वजह मुख्यमंत्री की मनुवादी सोच हो जिसमें दबंगई का अधिकार सिर्फ़ एक जाति को थी. आप देख सकते हैं कि कमज़ोर तबकों की ज़मीनों पर सबसे ज़्यादा क़ब्ज़ा योगी सरकार में एक जाति के लोगों ने ही किया है. इसमें बाधा बन रही दलितों के पक्ष में बने कानून को भी बदला जा रहा है. जो भी हो रहा है उसका एक फासिस्ट दार्शनिक आधार भी देखा जा सकता है. यह सब बिना न्यायतंत्र को कमज़ोर किये, लोगों को हिंसक बनाये बिना नहीं हो सकता है. सीएम योगी यही कर रहे हैं.
स्वजातीय आग्रह की स्थिति तो यह हो गयी है कि आज अगर गब्बर सिंह वास्तव में होता तो उसके सरनेम के आधार पर उसे सीएम योगी एमएलसी बना देते. भले साम्भा और कालिया को पिछड़ा और दलित मान कर फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मरवा दिया जाता और रमेश सिप्पी को उनकी जाति की भावनाओं को आहत करने के आरोप में जेल भेज देते.
पिछली सपा सरकार भी ज़िम्मेदार
अखिलेश यादव सरकार ने अगर अपना राजधर्म निभाया होता तो आज कानून के राज को खत्म करने वाला मुख्यमंत्री शायद प्रदेश को नहीं देखना पड़ता. हाल ही में अखिलेश यादव ने स्वीकार किया था कि उनके पास भी योगी आदित्यनाथ की फाइल आई थी लेकिन उन्होंने छोड़ दिया था. ज़ाहिर है उन्होंने अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी से समझौता किया जिसका नतीजा आज प्रदेश जंगल राज के तौर पर झेल रहा है. ये इस सरकार के कानून व्यवस्था के मुद्दे पर पूरी तरह नाकामी का उदाहरण है.
हालांकि, यहीं से इसके अंत की शुरुआत भी होती दिख रही है. पिछड़ों, दलितों, मुसलमानों के साथ आम सवर्ण लोगों के बीच गुंडा राज के खिलाफ़ माहौल बन रहा है. लोगों को किसी भी वाद से ज़्यादा रोजमर्रा के जीवन में कानून-व्यवस्था की चाहत होती है. योगी सरकार यहीं विफल है. जंगल राज किसी का नहीं टिकता उसे जाना ही होता है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)