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अतीक को उम्रकैद से कानून पर बढ़ा भरोसा, योगी सरकार ने राजनीतिक दलों से मिलने वाला संरक्षण का नेटवर्क तोड़ा

बीएसपी विधायक राजूपाल हत्याकांड केस के अहम गवाह रहे उमेशपाल किडनैपिंग केस में प्रयागराज के एमपी-एमएलए कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी और माफिया डॉन से राजनेता बने अतीक अहमद समेत 3 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा मुकर्रर की. जबकि, अतीक के भाई अशरफ समेत 7 आरोपियों को इस केस से बरी कर दिया. दरअसल, प्रयागराज की कोर्ट ने अतीक अहमद को आजीवन कारावास की सजा दी है उसे अगर आप पिछले छह सालों में उत्तर प्रदेश में देखें तो वो आपको एक निरंतरता में दिखाई देगी. चूंकि जो संगठित क्राइम है, जो माफिया था, जो राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहा था उसके खिलाफ योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लगातार कार्रवाई कर रही है. बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी गैर कानूनी तरीकों को अपनाए हुए और जो भी कार्रवाई हो रही वो बिल्कुल कानून सम्मत हो रही है. संविधान के मुताबिक हो रही है.

इसलिए आप देखिये कि पिछले 6 साल में एक भी ऐसा मामला नहीं हुआ है जिसमें कोर्ट ने दखल देने की जरूरत समझी हो या सरकार के खिलाफ कोई टिप्पणी करने की जरूरत समझी हो. उत्तर प्रदेश की स्थित को खराब करने में या खराब होने में चाहे वो आर्थिक हो या कानून व्यवस्था, सामाजिक सद्भाव की स्थिति इन सबको बिगाड़ने में माफिया और राजनीतिक गठजोड़ का बहुत बड़ा हाथ रहा है. इसमें पुलिस-शासन भी मददगार बन गया था और सामान्य प्रशासन भी. इन सबका जो गठजोड़ था, वो इतना ताकतवर हो गया था कि आम आदमी की तो कहीं कोई सुनवाई तक नहीं होती थी. लोगों ने यह मान लिया था कि ये हमारा भाग्य है और इसे हम बदल नहीं सकते हैं. 

कानून पर बढ़ा लोगों का भरोसा

लेकिन ये जो कार्रवाई शुरू हुई है तो इससे कई चीजें हुई हैं. पहली चीज तो ये कि लोगों का कानून के राज पर विश्वास बढ़ा है. उनको ये भरोसा हुआ है कि चाहे कितना भी ताकतवर माफिया हो और चाहे उसे कितना भी ताकतवर नेता का संरक्षण प्राप्त हो वो कानून से नहीं बच सकता है. तीसरी बात ये कि केवल माफिया के खिलाफ कार्रवाई उसको सिर्फ गिरफ्तार करने या मुकदमा दर्ज करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसकी जो रीढ़ की हड्डी है जैसे उसका आर्थिक साम्राज्य उसको भी तोड़ने की सफल कोशिश हो रही है. पिछले 5 से 6 सालों में माफिया की 3 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई है. ये अपने आप में एक ऐतिहासिक आंकड़ा है. आज तक उत्तर प्रदेश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है. अभी जो कुछ दिनों पहले बजट सेशन चल रहा था उस दौरान मुख्यमंत्री जी ने एक बात कही थी माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा...ऐसा होते हुए लोग देख रहे हैं. इसलिए लोगों का सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर विश्वास बढ़ा है कि वो इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई समझौता नहीं करने को तैयार है.

कोर्ट में तो मामला 40 सालों से था तो पहले से ये फैसला क्यों नहीं आया. फर्क ये है कि अब सरकार ने कोर्ट में पैरवी ठीक से करना शुरू कर दिया है. कोर्ट में जब सरकारी वकील होगा और केस को कायदे से पेश करेगा, गवाहों को सुरक्षा दी जाएगी और वो गवाही दे सकेंगे, सबूत पेश किये जाएंगे और जो पुख्ता सबूत है उसे दरकिनार नहीं किया जाएगा तो ये होता है सरकार का रोल. अदालत तो उस मुताबिक फैसला करती है कि जिसके खिलाफ आरोप है उसके लिए सबूत क्या है. अगर सबूत है कानून तोड़ने का तो सजा मिलेगी और नहीं है तो नहीं मिलेगी. कोर्ट को इससे कोई मतलब नहीं है कि किसे राजनीतिक संरक्षण है कि नहीं है, कौन बड़ा माफिया है और कौन छोटा है. वो सिर्फ सबूत के आधार पर चलती है और ये सबूत इकट्ठा करने का काम पुलिस का होता है, सरकार का होता है. इसलिए जब ये बात नीचे तक चली जाती है कि राज्य के सर्वोच्च पद पर बैठा हुआ मुख्यमंत्री इस तरह के मामलों में कोई समझौता नहीं करने को तैयार है तो इसका असर ये होता है कि पूरा सिस्टम जो है वो सक्रिय हो जाता है और काम करने लगता है.

रानजीतिक दलों से संरक्षण का नेटवर्क तोड़ा

इससे एक जो बड़ा मैसेज जाएगा कि कानून से सबको डरना चाहिए और ये डर आम आदमी में नहीं बल्कि जो माफिया है उसमें होना चाहिए, जो लोग अपराध कर रहे हैं, जो लोग लूट, हत्या, डकैती और अपहरण व अवैध कब्जे जैस क्राईम कर रहे हैं उनके मन में कानून का डर होना चाहिए. ये पता होना चाहिए कि सरकार उनके साथ किसी भी तरह की नरमी बरतने को तैयार नहीं है. इस पूरी कार्रवाई का सबसे बड़ा प्रभाव तो आम लोगों पर होगा और उसके अलावा जो इसका राजनीतिक असर होगा कि माफिया को संरक्षण देने वाले राजनीतिक दल और माफिया सिर्फ इनकी ताकत ही नहीं बढ़ाते थे बल्कि इनको चुनाव के समय में आर्थिक मदद भी देते थे तो ये जो पूरा एक कॉकस बना हुआ था कि हम तुम्हें फायदा पहुंचाएं और तुम हमें फायदा पहुंचाओ और दोनों फलें-फूलें उसको तोड़ दिया है. इसलिए आप देखिए कि विपक्षी दलों में या तो सन्नाटा है या बौखलाहट है.

बीएसपी में आपको सन्नाटा देखने को मिलेगा और सपा के अंदर इसे लेकर एक बौखलाहट है. आप बताइए कि जब एक अपराधी को एक जेल से दूसरे जेल में लाया जा रहा है तो इससे अखिलेश यादव को क्या मतलब होना चाहिए लेकिन वो रोज कमेंट्री कर रहे थे कि कहीं गाड़ी नहीं पलट जाएगी. मुख्यमंत्री ने आदेश दिया है, यहां वैसा होगा न जाने कैसा होगा. अगर गाड़ी पलट जाएगी तो माफिया के खिलाफ एक्शन हो रहा है तो ये तो खुशी की बात है. क्यों इस तरह की तकलीफ होनी चाहिए क्योंकि राजनीतिक दल और उसके नेता उस आर्थिक साम्राज्य का हिस्सा थे. वो टूट रहा है.

[ये आर्टिकल निजी विचार पर पूरी तरह से आधारित है]

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