दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमले ने दिल्ली में ‘कानून के राज’ की पोल खोल दी है. यह हमला ऐसे समय में हुआ जब केजरीवाल दिल्ली में बिगड़ चुकी कानून व्यवस्था की स्थिति पर लगातार आक्रोश जता रहे हैं. आंकड़ों के आईने में बता रहे हैं कि दिल्ली अब महिलाओं, बच्चों और सीनियर सिटिजन तक के लिए सुरक्षित नहीं रह गयी है. विधानसभा में अपने भाषण में केजरीवाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि कानून व्यवस्था संभालने में केंद्र फेल रहा है. 


दिल्ली में जब पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षित नहीं हैं, पदयात्रा तक नहीं कर सकते तो दिल्ली में सुरक्षित कौन है? क्या दिल्‍ली में कानून का राज नहीं है? दिल्‍ली में लगातार हो रहीं हिंसक घटनाओं के बीच डर का माहौल है, इससे भी ज्‍यादा दुख की बात यह है कि क्राइम रोकने की दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही है. 


अब दिल्‍ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘दिल्ली में जंगलराज’ को चुनावी मुद्दा बनाया है. केजरीवाल खुद ही बिगड़ती कानून व्‍यवस्‍था का शिकार हैं. दिल्ली की कानून व्यवस्था का जिम्मा केंद्रीय गृह मंत्रालय संभालता है, लेकिन, जो इस वक्त स्थिति है, उसमें लगातार कानून-व्यवस्था पर सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि अपराधी बेलगाम हो चुके हैं. यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमले से ये साबित हो रही है कि राजनेता भी सुरक्षित नहीं तो फिर आम आदमी की कौन बात करे. 


दिल्ली में महिलाएं, बच्चे और आम आदमी डर के साए में जीने को मजबूर हैं. एक घटना पर चर्चा खत्म भी नहीं होती कि दूसरी शुरू हो जाती है. आम आदमी पार्टी का आरोप है कि एलजी का ज्यादातर समय दिल्ली सरकार के मंत्रियों के खिलाफ एजेंडा चलाने में बीत जाता है. 


19 अक्टूबर को उत्तर-पूर्वी दिल्ली की वेलकम कॉलोनी में राजा मार्केट की घटना ताजा उदाहरण है. यहां दिनदहाड़े पौने पांच बजे गोली चल जाती है. 22 साल की महिला गंभीर रूप से घायल होती है. रोहिणी ब्लास्ट 20 अक्टूबर 2024 को हुआ, जिसने प्रशांत विहार स्थित सीआरपीएफ स्कूल की दीवार गिरा दी, कार क्षतिग्रस्त हुई. यह ब्लास्ट सुबह सवेरे पौने आठ बजे के करीब हुआ.


कहीं भी गोली चल जाए, कहीं भी ब्लास्ट हो जाए! ऐसा लगता है जैसे दिल्ली न हो फिलीस्तीन हो. 


कुछ और आपराधिक घटनाओं पर नज़र डाल लेते हैं:


6 मई 2024: तिलनगर के कार शो रूम में गोलियां चलती हैं. तीन लोग घायल हो जाते हैं. फिरौती की चिट्ठी छोड़कर अपराधी भाग जाते हैं, जिसमें 5 करोड़ की डिमांड की जाती है. 


6 मई 2024: हत्या का अभियुक्त दिल्ली पुलिस थाने के बाथरूम से कूद कर फरार हो जाता है.


5 मई 2024: 35 साल के व्यक्ति की पूर्वी दिल्ली में नृशंस हत्या कर दी जाती है. उसके गले और पेट में चाकुओं से हमले किए जाते हैं.


5 मई 2024: 30 साल का युवक रिश्तेदार के यहां मृत पाया जाता है.


4 मई 2024: दो भाई-बहनों का शव उनके पिता की दुकान पर पाए जाते हैं.


4 मई 2024: फूड डिलीवरी एजेंट अरजोत मृत पाया जाता है.


गैंगवार का दंश झेल रही दिल्ली


दिल्ली में गैंगवॉर थमने का नाम ले रही है. जनवरी-फरवरी 2024 में अलग-अलग 6 घटनाएं घटीं. दिल्ली में हर दिन 23 बच्चे, 40 महिलाएं और तीन वरिष्ठ नागरिक घृणित अपराध का शिकार हो रहे हैं. 


एनसीआरबी रिपोर्ट कहती है कि देश में अपराध की दर सबसे ज्यादा दिल्ली में है. आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में हर दिन 1189 आपराधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं. दिल्ली में अपराध की भयावहता को समझना हो तो इस आंकड़े को समझिए कि दिल्ली में प्रति लाख निवासियों के बीच 1832.6 अपराध होते हैं और यह दर देश में पहले नंबर पर है. वहीं, दूसरे नंबर पर जयपुर है, लेकिन यहां क्राइम के आंकड़े दिल्ली के मुकाबले आधे हैं यानी 916.7 प्रति लाख. यहां पर ध्‍यान देने वाली बात यह है कि देश में औसत अपराध 258.1 प्रति लाख आबादी है, जबकि दिल्‍ली में यहीं आंकड़ा 1832.6 है.  


अब दिल्ली में डरने लगी हैं महिलाएं


महिलाओं के संदर्भ में समझें तो दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर देश में सबसे ज्यादा- 144.4 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 66.4 है. हर दिन औसतन तीन बलात्कार की घटनाओं के साथ दिल्ली में सालभर में 1212 बलात्कार की घटनाएं दर्ज हो रही हैं.


मुंबई के मुकाबले दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराध दुगुना है. दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं सालाना 14,158 हैं तो मुंबई में महज 6,176. बेंगलुरू में यही आंकड़ा 3,924 है. यानी दिल्ली बेंगलुरू के मुकाबले महिलाओं के लिए तीन गुणा ज्यादा असुरक्षित है.


एक लाख आबादी पर महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध के मामले में दिल्ली दूसरे नंबर पर है. दिल्ली में यह दर 185.9 है. आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए पहल करने के बजाए दिल्ली के एलजी कुछ और काम में व्यस्त हैं. दिल्ली परिवहन निगम की बसों में मार्शल भैया को बहनें आज भी याद करती हैं. 


अरविंद केजरीवाल ने 2015 बसों में मार्शल की तैनाती की थी. निर्भया कांड के बाद कोई अनहोनी बसों में नहीं हुई है तो इसके पीछे इन मार्शलों की भूमिका अहम रही है. बीते वर्ष नवंबर 2023 में एलजी ने 10 हजार से ज्यादा मार्शलों को सेवामुक्त कर दिया. घर से बाहर बसों में मुफ्त सफर कर रही महिलाओं को इस फैसले के बाद असुरक्षा के हालात का सामना करना पड़ रहा है. यह मुद्दा सिर्फ मार्शलों की पुनर्नियुक्ति मात्र का नहीं है, बल्कि यह मसला सीधे तौर पर महिलाओं की नियुक्ति से जुड़ा है. मुख्यमंत्री आतिशी ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर बीजेपी के नेता विजेंद्र गुप्ता एलजी से मिलकर मार्शलों की नियुक्ति के लिए उन्हें राजी करा लेते हैं तो वे अरविंद केजरीवाल से आग्रह करेंगी कि चुनाव के दौरान विजेंद्र गुप्ता के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा न करें. जाहिर है मार्शलों की बर्खास्तगी और फिर से बहाली बड़ा सियासी मुद्दा बन चुका है.  


सीनियर सिटिजन और बच्चे भी खौफ में


सीनियर सिटिजन के साथ अपराध के मामले गंभीर हैं. दिल्ली यहां भी सबसे आगे नज़र आती है. 2021 में जहां वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ 1166 अपराध हुए ते वहीं 2022 में यह बढ़कर 1315 हो गये हैं. दूसरे नंबर पर रहने वाली मुंबई में वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ 572 अपराध दर्ज किए गये हैं. बेंगलुरू में यह संख्या और भी कम 458 है.


बच्चों के खिलाफ अपराध में दिल्ली अव्वल है. 8683 मामले दर्ज किए गये हैं. वहीं मुंबई में यह संख्या 3,178 और बेंगलुरू में 1578 है. राजधानी में साइबर क्राइम के मामले 2021 के मुकाबले 2022 में दोगुने हो गये हैं. 2021 में जहां साइबर क्राइम के 345 मामले हुआ करते थे, 2022 में यह बढ़कर 685 हो गये हैं। राष्ट्रीय राजधानी में प्रति दिन पांच डकैतियां होती हैं.


दिल्ली पुलिस में 13 हजार पद खाली!


आश्चर्य की बात है कि दिल्ली पुलिस अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर रही है. करीब 94 हजार का वर्कफोर्स होनी चाहिए. अब भी 13 हजार वैकेंसी हैं. 2014 के बाद से बमुश्किल 5.5 हजार वैकेंसी भरी गयी हैं. चौंकाने वाली बात यह भी है कि केंद्र सरकार ने दिल्ली पुलिस के लिए बजट भी कम कर दिया है. 2024-25 के अंतरिम बजट में बीजेपी ने दिल्ली पुलिस के लिए बजट में 4.5 प्रतिशत की कमी कर दी. यह कमी बीते साल के रिवाइज्ड अनुमानों के मुकाबले हुई है.


दिल्ली दंगे की जांच में दिल्ली पुलिस की दिल्ली की अदालत खिंचाई की थी. यह दंगा 2020 में हुआ था। बगैर सबूत के रिपोर्ट फाइल कर अदालत का वक्त खराब करने की टिप्पणी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने की थी. दिल्ली दंगे की जांच से लेकर आरपो पत्र और सबूतों से छेड़छाड़ को लेकर दिल्ली पुलिस की दिल्ली की अदालत ने एक से अधिक बार खिंचाई की है. 1 मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़क्लिक मामले में भी दिल्ली पुलिस की भूमिका पर उंगली उठाई थी.


कहने की जरूरत नहीं कि अरविंद केजरीवाल पर हमले के बाद दिल्ली में अपराध और असुरक्षा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. यह बड़ा चुनावी मुद्दा भी रहेगा. इसका राजनीतिक नुकसान बीजेपी को और फायदा आम आदमी पार्टी को होगा. जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में दिल्ली में सुरक्षा का मुद्दा उठाया है उससे यह तय हो गया है कि केंद्र को ठोस जवाब के साथ आना होगा. 


प्रेम कुमार
वरिष्ठ पत्रकार व टीवी पैनलिस्ट
@askthepremkumar


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