जम्मू-कश्मीर में जब से अनुच्छेद 370 को सरकार ने निरस्त किया है, दावा किया गया कि वहां पूरी शांति है. हालांकि आए दिन वहां मुठभेड़ होते रहती है. हाल ही में आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत शनिवार यानी 6 मई को हुई एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने लश्कर के आतंकी को मार गिराया था. वहीं, बारामूला के वनिगम पयीन इलाके में शुक्रवार यानी 5 मई को भी मुठभेड़ हुई थी तब लश्कर के दो आतंकवादी मारे गए थे. 5 मई को ही राजौरी के खेसारी क्षेत्र में आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें 5 सैनिकों की जान चली गई. रविवार यानी 7 मई को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में पुलिस को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है. 5 किलो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के साथ आतंकवादी के एक सहयोगी को गिरफ्तार किया गया. कश्मीर में इसी महीने के आखिरी सप्ताह में जी20 की एक बैठक भी होनेवाली है.


कश्मीर है पाकिस्तान की दुखती रग


ये जो सुरक्षाबलों के साथ आतंकी मुठभेड़ की बात है, शनिवार 6 मई को या उससे पहले शुक्रवार को, जिसमें पांच आर्मी के जवानों ने बलिदान दिया. इस तरह की मुठभेड़ या घटनाओं पर बात करने से पहले थोड़ा बैकग्राउंड पर बात करनी होगी. अभी पुलवामा में एक आतंकी हमला हमारे सुरक्षाबलों ने नाकाम भी किया है, इशफाक नाम के शख्स से 5-6 किलो आईईडी भी पकड़ा, लेकिन जब भी कश्मीर की बात होगी तो भारत-पाक संबंधों की बात भी होगी, क्योंकि यह मुद्दा इन दोनों के आपसी संबंधों का केंद्र बिंदु है.


अभी हमने SCO की बैठक में भी यही देखा कि बिलावल का आना किस तरह तमाम मसलों को पीछे छोड़ कश्मीर पर केंद्रित हो गया. मई में ही 23-24 तारीख को कश्मीर में G-20 की एक बैठक भी होनी है. इन सब बातों को अगर हम बैकग्राउंड में समझ लें, तो आगे की बात समझना आसान होगा. कई वर्षों से हमने देखा है कि जब भी पाकिस्तान का कोई नेता भारत आता है या भारत का नेता या डिग्निटरी पाकिस्तान जाता है, यानी दोनों देशों के बीच सामान्य संबंधों की बहाली के प्रयास होते हैं, तो आतंकी हमलों में तेजी आ जाती है. कश्मीर में अस्थिरता का माहौल बनाने की कोशिश की जाती है, ताकि जो भी विदेशी या देशी प्रतिनिधि ऐसे मौकों पर भारत आते हैं तो उनको यह संदेश दिया जा सके कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य नहीं है. खासकर, जब से भारत ने यह घोषणा की है कि G-20 की एक बैठक कश्मीर में भी होगी, तब से पाकिस्तान को बेचैनी है. बिलावल भुट्टो कई बार यह बात कह भी चुके हैं.


भारत ने जब से कश्मीर में 370 को संशोधित किया है, तब से कश्मीर में दो घरानों के राज की समाप्ति हुई है. जो एक अन्याय वहां की आम जनता के साथ हो रहा था, वाल्मीकियों के साथ, कश्मीरी पंडितों के साथ बक्करवालों और गुर्जरों के साथ हो रहा था, वह अब खत्म हुआ है. कश्मीर की हरेक महिला को अधिकार मिला है. तभी से पाकिस्तान बिलबिला रहा है. बिलावल भुट्टो की यही बिलबिलाहट तो SCO की बैठक में भी देखने को मिली, हालांकि एस जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय पक्ष ने उन्हें खूब ही धता बताया और कह दिया कि बात तो अब POJ&K पर हो, गिलगित-बाल्टिस्तान पर हो, अक्साई चिन पर हो. SCO में पाक-चीन की द्विपक्षीय वार्ता के बाद ही बिलावल भुट्टो ने कश्मीर पर आग उगलने की कोशिश की है. एक तरह से कहें तो भारत को धमकी ही दी. G-20 की कश्मीर में बैठक को लेकर भारत पूरी तरह से तैयार भी है और इसीलिए कश्मीर में एनएसजी कमांडो के साथ ही नौसेना के मार्कोज कमांडो की तैनाती भी वह श्रीनगर में करेगा.


ये दीपक के बुझने के पहले की फड़फड़ाहट


पाकिस्तान की यह कोशिश हमेशा से रही है कि वह कश्मीर के मसले को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह दिखा सके कि वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. हालांकि, भारत ने अनुच्छेद 370 को संशोधित कर उस भेद को मिटाया है, जिसकी वजह से वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा था. जहां तक कश्मीर में हो रहे हमलों की बात है, तो अगर हम 2019 से पहले की घटनाओं की और अभी तात्कालिक घटनाओं की बात करें तो निस्संदेह आतंकी घटनाओं में बहुत कमी आई है. यहां तक कि श्रीनगर की सड़कों पर पत्थरबाज घूमा करते थे, अभी आम नागरिक और टूरिस्ट घूमते हैं, अपना काम करते हैं, बच्चे रोजाना स्कूल जाते हैं और जन जीवन भी अब सामान्य हुआ है. वर्तमान की आतंकी घटनाओं का सच पूछिए तो दीपक बुझने से पहले की फड़फड़ाहट है. हमारी सिक्योरिटी फोर्सेज वैसे लगातार कोशिश कर रही हैं कि ऐसी घटनाएं जीरो हो जाएं, पर कुछ घटनाएं हो ही जाती हैं. अब्दुल्ला एवं मुफ्ती परिवार भी उल्टे-सीधे बयान देकर अलगाववाद की आग को फूंक देते रहते हैं. अभी भी कश्मीर में जो 20 फीसदी ढांचा बाकी है आतंक का, जो स्लीपर सेल मौजूद हैं, उनको भी जल्द ही खत्म कर दिया जाएगा. बस, कुछ और समय की बात है, क्योंकि 70 वर्षों की गंदगी को समाप्त करना बहुत आसान भी नहीं होता.


भारत सरकार की सुरक्षा नीति बिल्कुल पटरी पर


सरकार के हाथों से चीजें फिसल नहीं रही है. जहां तक सुरक्षा नीति का सवाल है, तो इस सरकार ने कई महत्वपूर्ण मसलों को अपनी सुरक्षा नीति से सुलझाया है. यहां तक कि उत्तर-पूर्व में अब ये बात चल रही है कि वहां से आफ्स्पा यानी आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल एक्ट को हटा दिया जाए. वह भी बहुत बड़े इलाके से. नॉर्थ-ईस्ट में चीन का अपना इंटरेस्ट है, उसने हाल ही में अरुणाचल में गुस्ताखी की है. म्यांमार में अभी सैन्य शासन है और वह चीन के करीब है. यह भारत की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है. उत्तर-पूर्व के अलगाववादी अधिकांशतः घटनाओं को अंजाम देकर म्यांमार ही भागते हैं. आपको याद होगा कि म्यांमार में भी भारतीय सेना ने एक कार्रवाई की थी.


अभी जो हम मणिपुर में देख रहे हैं, वहां कुछ जातीय यानी एथनिक समस्याएं या कान्फ्लिक्ट हैं. वह मैतेई और कुकी का मणिपुर में हो सकता है, मेघालय में खासी और गारो का है. उसी तरह असम में भी है. ये सब समस्याएं भी कई वर्षों से चल रही हैं. सरकार सभी अलगाववादियों से लगातार बात कर रही है, कई मामलों को सुलझा भी रही है. मणिपुर का जो मसला है, वह तो विदेशी षडयंत्र भी लगता है. आखिर, 2014 से अब तक भारत ने अच्छी खासी प्रगति कर ली है. आर्थिक मोर्चे से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक, भारत ने बहुत कुछ पाया है. देश में राजनीतिक स्थिरता है और विदेशी ताकतें इसी को डिस्टैबिलाइज करना चाहती हैं. इसके पीछे चीन का भी हाथ हो सकता है, ताकि अगर उत्तर-पूर्व अस्थिर रहे तो वहां AFSPA लगा रहे और उसकी आड़ लेकर अलगाववादियों को भड़काया जा सके.


कश्मीर में आनेवाले दिनों में शांति होगी, इसमें कोई संदेह नहीं. बिलावल की बातों से संदर्भ निकालें, G-20 की बैठक का समय देखें तो भारतीय सुरक्षा बलों को बहुत चौकस रहने की जरूरत है. यह भारत के पास एक बड़ा मौका है, विदेशी राजनयिकों को दिखाने का कि कश्मीर में सब कुछ ठीक चल रहा है और वहां अमन चैन है.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)