एक्सप्लोरर

भारत की ताकत से वाकिफ़ चीन क्यों ललकार रहा है जंग के लिए?

लद्दाख औऱ अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन लगातार भारत को उकसाने वाली हरकतें करने से बाज़ नहीं आ रहा है क्योंकि वह चाहता है कि उकसावे में आकर भारत कोई ऐसी कार्रवाई करे, जिसका फायदा वो उठा सके. ताजा मामला भारत के उप राष्ट्रपति वैंकया नायडू की पिछले दिनों की गई अरुणाचल यात्रा से जुड़ा है जिस पर चीन ने ऐतराज़ जताया है. चीन अरुणाचल के बड़े हिस्से  पर अपना दावा जताता रहा है औऱ वह हमारे नेताओं की अरुणाचल यात्रा का पहले भी कई बार विरोध कर चुका है. जबकि भारत ने उसके दावे और उसकी आपत्तियों को हमेशा ये कहकर  खारिज़ किया है कि अरुणाचल भारत का अविभाज्य अंग है औऱ देश का कोई भी नेता उस राज्य की यात्रा करने के लिए स्वतंत्र है.

वैसे इस महीने की शुरुआत में ही चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ करने की भी कोशिश की थी, जिसे हमारे सैनिकों ने नाकाम कर दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि चीन हमारी जमीन पर आखिर कब्ज़ा क्यों करना चाहता है और क्या वह भारत को युद्ध के लिए ललकार रहा है?

चीन के इस नापाक इरादे को समझने के लिए इतिहास की गहराई में जाना पड़ेगा. साल 1962 में चीन और भारत के बीच छिड़े युद्ध के वक़्त चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के आधे से भी ज़्यादा हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था. लेकिन फिर चीन ने एकतरफ़ा युद्ध विराम घोषित कर दिया और उसकी सेना भी मैकमोहन रेखा के पीछे लौट गई. इसलिये चीन जब भी अरुणाचल पर अपने दावे का राग अलापता है, तो सामरिक मामलों के जानकार भी इसी उधेड़ बुन में पड़ जाते हैं कि अगर चीन को अरुणाचल प्रदेश पर कब्ज़ा करना ही था, तो फिर 1962 की लड़ाई के दौरान आखिर वो इससे पीछे क्यों हट गया?

हालांकि उस युद्ध के कुछ साल बाद चीन ने ये कहना शुरु कर दिया कि वो अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता क्योंकि ये उसके 'दक्षिणी तिब्बत का इलाक़ा' है. शायद यही वजह है कि तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा हों या फिर भारत के प्रधानमंत्री, सबके अरुणाचल दौरे पर चीन आपत्ति जताता रहा है. साल 2009 में मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था तो चीन को इस पर आपत्ति हुई थी. फिर साल 2014 में प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी जब राज्य के दौरे पर गए,तब भी चीन को मिर्ची लगी और उसने इस पर गहरा ऐतराज़ जताते हुए ठीक वैसा ही बयान जारी किया,जैसा कि अब उप राष्ट्रपति नायडू के दौरे को लेकर किया है.

दरअसल,अरुणाचल प्रदेश पर दावा करने की वजह भी है.'ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सामरिक मामलों पर शोध के विभाग प्रमुख हर्ष पंत के मुताबिक दोनों देशों के बीच विवाद की सबसे बड़ी समस्या मैकमोहन रेखा का स्पष्ट रूप से मौजूद ना होना है और चीन इसी का फायदा उठाते हुए अपना दावा ठोकता रहता है और उसके सैनिक भी घुसपैठ की कोशिश में जुटे रहते हैं.सामरिक विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन चाहता है कि वो कूटनीतिक स्तर पर अरुणाचल प्रदेश पर दावा कर मामले को तूल देता रहे. मगर वो कभी भी इसका 'सक्रिय नियंत्रण' भी अपने पास नहीं रखना चाहता है. इसकी बड़ी वजह ये है कि अरुणाचल में रहने वाले लोग कभी भी चीन के साथ खड़े नज़र नहीं आए.

सवाल ये भी उठता है कि चीन आखिर मैकमोहन रेखा को क्यों नहीं मानता? दरअसल,साल 1914 में भारत में ब्रितानी हुकूमत थी. तब उस वक़्त की भारत सरकार और तिब्बत की सरकारों के बीच शिमला में एक समझौता हुआ था.इस समझौते पर ब्रितानी हुकूमत के प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन और तत्कालीन तिब्बत की सरकार के प्रतिनिधि ने हस्ताक्षर किए थे. समझौते के बाद भारत के तवांग सहित पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र और बाहरी तिब्बत के बीच दो देशों की सीमा मान ली गई, जिसे मैकमोहन लाइन कहा जाता है. भारत 1947 में आज़ाद हुआ,जबकि एक देश के रुप में चीन 1949 में अस्तित्व में आया.

लेकिन चीन शिमला समझौते को ये कहकर खारिज करता रहा है कि तिब्बत पर चीन का अधिकार है और तिब्बत की सरकार के किसी प्रतिनिधि के हस्ताक्षर वाले समझौते को न तो वो स्वीकार करता है और न ही करेगा.भारत में तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत ने मैकमोहन लाइन दर्शाता हुआ मानचित्र पहली बार साल 1938 में आधिकारिक तौर पर प्रकाशित किया था. जबकि पूर्वोत्तर सीमांत प्रांत 1954 में ही अस्तित्व में आया.

हालांकि सामरिक जानकार मानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन ने पहले उतनी आक्रामकता नहीं दिखाई थी लेकिन 1986 में भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग के सुम्दोरोंग चू के पास चीनी सेना की बनाई स्थायी इमारतें देखीं. तब पहली बार इस क्षेत्र में भारतीय सेना सक्रिय हुई और उसने हाथुंग ला पर अपनी तैनाती को मज़बूत कर दिया. बताते हैं कि तब चीन इससे बौखला उठा था और एक दौर ऐसा भी आया, जब ये लगने लगा था कि चीन और भारत के बीच युद्ध की स्थिति तैयार हो गई गई है. लेकिन मामला तब शांत हुआ जब भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी बीजिंग पहुंचे जिसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच पहली 'फ्लैग मीटिंग' आयोजित की गई. लेकिन बाद के सालों में चीन ने आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी. एक बार तो दिबांग घाटी में चीन की सेना ने पोस्टर लगा कर उस पूरे इलाके को ही चीन के अधीन बता दिया था.

वैसे लद्दाख व अरुणाचल का विवाद बनने से बहुत पहले भारत और चीन के बीच रिश्ते पहली बार तब ख़राब हुए जब 1951 में चीन ने तिब्बत का अधिग्रहण किया. तब चीन ने सफाई देते हुए कहा था कि वो तिब्बत को आज़ादी दिला रहा है. लेकिन चीन के इरादे को भांपते हुए उसी दौरान भारत ने तिब्बत को अलग राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी.

हालांकि अरुणाचल प्रदेश एक अलग राज्य के रूप में साल 1987 में ही अस्तित्व में आया. उससे पहले 1972 तक इसे नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था.ले किन 20 जनवरी 1972 को इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया और इसका नाम अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया. उसके बाद पिछले तीन दशक में पूर्व में स्थित अनजाव से लेकर राज्य के पश्चिम में स्थित तवांग तक 'लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल' यानी 'एलएसी' के आस पास के 1126 किलोमीटर के इलाके के पास चीन की गतिविधियों के निरंतर बढ़ते रहने की बात सामने आने लगी. बीच-बीच में चीन ऐसा नक्शा भी जारी करता रहता है जिसमें अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों को वो अपना हिस्सा बताता रहता है.

लेकिन सबसे ज़्यादा गतिविधियां दिबांग घाटी में देखी गई हैं जहां से चीन की 'पीपल्स लिबरेशन आर्मी' की घुसपैठ की खबरें तकरीबन हर महीने ही मिलती रहती हैं. सामरिक मामलों के जानकार सुशांत सरीन कहते हैं, "चीन भी जानता है कि भारत की सैन्य ताक़त अब कमज़ोर नहीं रह गयी है. भारत पहले से ज़्यादा मज़बूत है. लेकिन चीन तवांग के मठ पर क़ब्ज़ा कर बौध धर्म को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है. तवांग मठ 400 साल पुराना है और ये माना जाता है कि छठे दलाई लामा का जन्म भी तवांग के पास ही साल 1683 में हुआ था." उनके मुताबिक इसीलिये  चीन ने अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को चीन में प्रवेश के लिए वीज़ा होने की शर्त को ज़रूरी नहीं माना है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

देश से ये चार बड़े कानून हो जाएंगे खत्म? गृहमंत्री अमित शाह ने कर ली पूरी तैयारी
देश से ये चार बड़े कानून हो जाएंगे खत्म? गृहमंत्री अमित शाह ने कर ली पूरी तैयारी
नेपाल की सड़कों पर योगी आदित्यानाथ का पोस्टर लेकर क्यों उतरे लोग, जानिए क्या है विवाद
नेपाल की सड़कों पर योगी आदित्यानाथ का पोस्टर लेकर क्यों उतरे लोग, जानिए क्या है विवाद
जॉन अब्राहम की 'द डिप्लोमैट' में ऐड होगा खास डिस्कलेमर, सेंसर बोर्ड ने फिल्म के इस सीन पर भी लगाया कट
जॉन अब्राहम की 'द डिप्लोमैट' में ऐड होगा खास डिस्कलेमर, CBFC ने किए ये बदलाव
BCCI Central Contract 2025: आवेश खान-रजत पाटीदार समेत ये खिलाड़ी हो सकते हैं BCCI सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से बाहर
आवेश खान-रजत पाटीदार समेत ये खिलाड़ी हो सकते हैं BCCI सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से बाहर
ABP Premium

वीडियोज

Baba bageshwar In Bihar: बिहार में बागेश्वर बाबा की हिंदू कथा पर हंगामा क्यों बरपा? देखिए रिपोर्ट | ABP NewsChhattisgarh ED Raids: ED ने पूछताछ के लिए भूपेश बघेल के बेटे को बुलाया, आज कांग्रेस का बड़ा प्रदर्शन | ABP NewsIndore Mhow Violence: इंदौर हिंसा मामले में आरोपियों पर कसा शिकंजा, 13 गिरफ्तार, NSA लगाने की तैयारी |  ABP NewsICC Champions Trophy 2025: चैंपियंस की वतन वापसी, मुंबई में रोहित शर्मा की झलक पाने के फैंस का हुजूम | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
देश से ये चार बड़े कानून हो जाएंगे खत्म? गृहमंत्री अमित शाह ने कर ली पूरी तैयारी
देश से ये चार बड़े कानून हो जाएंगे खत्म? गृहमंत्री अमित शाह ने कर ली पूरी तैयारी
नेपाल की सड़कों पर योगी आदित्यानाथ का पोस्टर लेकर क्यों उतरे लोग, जानिए क्या है विवाद
नेपाल की सड़कों पर योगी आदित्यानाथ का पोस्टर लेकर क्यों उतरे लोग, जानिए क्या है विवाद
जॉन अब्राहम की 'द डिप्लोमैट' में ऐड होगा खास डिस्कलेमर, सेंसर बोर्ड ने फिल्म के इस सीन पर भी लगाया कट
जॉन अब्राहम की 'द डिप्लोमैट' में ऐड होगा खास डिस्कलेमर, CBFC ने किए ये बदलाव
BCCI Central Contract 2025: आवेश खान-रजत पाटीदार समेत ये खिलाड़ी हो सकते हैं BCCI सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से बाहर
आवेश खान-रजत पाटीदार समेत ये खिलाड़ी हो सकते हैं BCCI सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट से बाहर
EPFO: ईपीएफओ ने सब्सक्राइबर्स को 10 वर्षों में 4.31 लाख करोड़ प्रॉविडेंट फंड का किया भुगतान, 3 गुना बढ़ गई खातों की संख्या
EPFO ने सब्सक्राइबर्स को 10 वर्षों में 4.31 लाख करोड़ प्रॉविडेंट फंड का किया भुगतान
15 हजार रुपये से कम में बैचलर्स और मास्टर्स की पढ़ाई, जानिए कैसे मिलता है इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन
15 हजार रुपये से कम में बैचलर्स और मास्टर्स की पढ़ाई, जानिए कैसे मिलता है इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन
झाड़ियों में छिपकर क्यों केंचुली उतारते हैं सांप? नहीं जानते होंगे उनकी कमजोरी
झाड़ियों में छिपकर क्यों केंचुली उतारते हैं सांप? नहीं जानते होंगे उनकी कमजोरी
PM Modi Mauritius Visit: पीएम मोदी का मॉरीशस में ग्रांड वेलकम! 24 कैबिनेट मंत्री एयरपोर्ट पर पहुंचे, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने लगाया गले
पीएम मोदी का मॉरीशस में ग्रांड वेलकम! 24 कैबिनेट मंत्री एयरपोर्ट पर पहुंचे, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने लगाया गले
Embed widget