अयोध्या का इंसाफ नई सियासी उम्मीदों को जन्म दे रहा है और इसे भुनाने की कोशिश में अब काशी और मथुरा की बात होने लगी है और करने वाला कोई और नहीं बीजेपी के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील सुब्रमण्यम स्वामी हैं। जिनका साफ कहना है कि इस मसले पर वो पार्टी के रुख का भी इंतजार करने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट अगर अयोध्या में हिंदूओं के हक में फैसला सुनाता है तो उनका मिशन काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि को लेकर होगा। सुब्रमण्यम स्वामी देश के उन चंद नेताओं में शुमार हैं। जिनकी ज्यादातर बातें तथ्यों पर आधारित होती हैं क्योंकि वो एक मंझे हुए वकील भी हैं लेकिन सत्ता में उनके पूरे दौर को देखें तो लगता है कि उनकी पूरी सियासत तथ्य़ों को निजी एजेंडे में तब्दील कर सुर्खियों में रहने की रही है।


आमतौर पर सियासत का मकसद जनता का हित होता है लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी की सियासत में मकसद अपने निजी एजेंडा बढ़ाना ज्याद रहा है। हालांकि उनकी कानूनी समझ-बूझ उनकी बातों को अक्सर स्थापित भी कर देती है। शायद इसीलिए जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या मसले तक पर कुछ बोलने से परहेज़ करते रहे हैं उस वक्त में स्वामी ना सिर्फ अयोध्या पर फैसलाकुन बातें कर रहे हैं बल्कि मथुरा-काशी पर भी दावा दोहरा रहे हैं।


स्वामी का उत्साह बेवजह नहीं है। असल में सुप्रीम कोर्ट भी इस मसले को जल्द से जल्द निपटाना चाहता है। सालों पुराने इस विवाद में फैसला देकर वो एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता है।  कोर्ट ने दोनों पक्षों से पूछा है कि बहस के लिए उन्हें कितना समय चाहिए...साथ ही कोर्ट ने हिंदू पक्ष से मुस्लिम पक्ष की दलील पर अपना पक्ष रखने के लिए समय पूछा है...दरअसल कोर्ट ने ऐसी मंशा जताई है कि जितना समय सभी पक्षों के जवाब में लगेगा...उसी आधार पर कोर्ट अपना फैसला लिखने के लिए समय तय करेगी।


फैसले के जल्द आने की उम्मीद इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि अयोध्या मसले पर खुद सुप्रीम कोर्ट सर्व सम्मति से जल्द फैसला सुनाने की तरफ बढ़ रहा है। 23 दिन की सुनवाई बीतने के बाद अब हिंदू और मुस्लिम के पक्ष फिर से कोर्ट के बाहर बातचीत से मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके लिए दो प्रमुख पार्टियों सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखा है। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले मध्यस्थता से हल निकालने के लिए पैनल बनाया था। 155 दिनों तक कोशिशें भी हुईं, लेकिन कोई हल नहीं निकला। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए जो पैनल बनाया था उसमें तीन लोग शामिल थे। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जज एफएम कलीफुल्ला, सीनियर वकील श्रीराम पंचू और श्री श्री रविशंकर का नाम था।


स्वामी एक मंझे हुए वकील है...कोर्ट की बारीकियां समझते हैं...यही वजह है कि उनका आत्मविश्वास उनसे बार-बार ये कहलवा रहा है कि फैसला सुप्रीम कोर्ट करोड़ों हिंदुओं की आस्था के हित में सुना सकता है।


अयोध्या का विवाद हो सकता है कोर्ट के फैसले के बाद सुलझ जाए...लेकिन राम जन्मभूमि के साथ ही जिस कृष्ण जन्मभूमि के विवाद की बात सुब्रमण्यम स्वामी कर रहे हैं...उसे भी समझना जरूरी हैं...क्योंकि यहां भी विवाद कमोवेश अयोध्या की तरह ही है।


मथुरा विवाद के बारे में कहा जाता है कि जहां भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है...वहां जेल वाली जगह पर मंदिर 80-57 ईसा पूर्व में बनाया गया...जिसका महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख में 'वसु' नाम के शख्स का उल्लेख किया गया है...इसके बाद दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया यानी जीर्णोद्धार किया गया...जिसे फिर सन 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया..इसके बाद महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन 1150 ई. में जज्ज नामक शख्स ने इसे फिर बनवाया...कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला लेकिन इस मंदिर को ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने फिर बनवाया...कहा जाता है कि ये इतना भव्य और बड़ा था कि आगरा यहां से दिखता था...जिसे मुस्लिम शासकों ने सन 1660 में नष्ट किया
जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवाई। 1669 में इस ईदगाह का निर्माण कार्य पूरा हुआ...आज की तारीख में दोनों मौजूद हैं।


अयोध्या और मथुरा की तर्ज पर काशी का इतिहास भी विवादों में घिर गया है, वो भी तब काशी को अनादिकाल का माना जाता है शिव और पार्वती का स्थान माना जाता है...लेकिन सियासी तौर पर अयोध्या के साथ ही मथुरा और काशी दोनों खड़े हैं...जिनके लिए इंसाफ करने की बात सुब्रमण्यम स्वामी कर रहे हैं।


ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था...लेकिन 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद इसे तुड़वा दिया...फिर मंदिर बनाया गया लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तोड़ दिया इसके बाद 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने फिर बनाया...जिसे 1632 में शाहजहां ने मंदिर तोड़ने का हुकुम दिया...लेकिन हिंदुओं के विरोध ने ऐसा होने नहीं दिया....डॉ एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया...18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दिया...मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई...1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया...


इस चर्चा में एक बात तो साफ है किअयोध्या में राम मंदिर को लेकर जनता की आस्था पर सियासत बंद होने का नाम नहीं ले रही है। सियासी नफे के लालच में सर्वोच्च अदालत को भी नजरअंदाज किया जा रहा है, जनता से कोसों दूर सुब्रमण्यम स्वामी सरीखे नेताओं के बयान इसी संदर्भ में समझे जा सकते हैं । बावजूद इसके पार्टी आलाकमान की चुप्पी भी शायद ऐसी सियासत को शह देती है। स्वामी जैसे नेताओं के बयान सर्वोच्च अदालत जैसी संस्था की कार्यवाहियों पर बेवजह पर सवाल उठाने का मौका देते हैं ।