बजरंग दल सुर्खियों में है. कर्नाटक चुनाव के अंतिम चरण में इसकी खूब चर्चा हुई. यहां तक कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस पर बैन लगाने का वादा किया और प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर इसके लिए जमकर निशाना साधा. योगी आदित्यनाथ हों या मल्लिकार्जुन खरगे, सभी ने बजरंग दल की चर्चा की, बजरंगबली को याद किया, हनुमान चालीसा की पंक्तियां दोहराईं. बजरंग दल पहले भी सुर्खियों में रहा है. इस पर 1992 में अयोध्या के बाबरी ढांचे विध्वंस के बाद तत्कालीन पीवी नरसिंह सरकार ने बैन भी लगाया था, लेकिन बाद में ट्रिब्यूनल ने रद्द कर दिया. कई बार इस संगठन पर वैलेंटाइन डे के दौरान मारपीट, काऊ विजिलैंटिज्म आदि के आरोप भी लगते हैं, लेकिन बजरंग दल सचमुच है कैसा, क्या काम करता है, इसके लक्ष्य क्या हैं, इन सवालों को लेकर बहुत साफ स्थिति नहीं है.
राममंदिर आंदोलन से निकला बजरंग दल
सबसे पहले तो बजरंग दल के बारे में जानना चाहिए. इसकी स्थापना 1984 के अक्टूबर में हुई थी. तब राममंदिर आंदोलन का कार्य चल रहा था. उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार नारायण दत्त तिवारी की थी. उस सरकार ने तब विहिप द्वारा आयोजित श्रीराम जानकी रथ यात्रा को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद संतों के आह्वान पर विश्व हिंदू परिषद ने वहां उपस्थित युवाओं को ही यात्रा का पहरेदार बना दिया यानी युवाओं को ही सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दे दी. इसी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए बजरंग दल की स्थापना की गई थी. बाद में 1993-94 तक संगठन का विस्तार हुआ और यह दक्षिण भारत तक भी पहुंचा. मुख्य रूप से जन्मभूमि आंदोलन के लिए ही इसकी स्थापना हुई थी. इसका मुख्य कार्य हिंदू समाज को जाग्रत करना, लव जिहाद और घरवापसी, धर्मरक्षा और गोहत्या जैसे मुद्दों पर भी काम करती है.
ग्राहम स्टेंस की हत्या दुखद, बजरंंग दल का लेनदेन नहीं
बजरंग दल की स्थापना से लेकर अब तक अगर देखें तो एक जो आरोप लगा है, विरोधियों द्वारा, वह ग्राहण स्टेंस की हत्या है. इसके अलावा कोई भी आरोप लाख चाहने के बावजूद बजरंग दल के दामन पर नहीं लग सका है. बजरंग दल ऐसा घृणित कार्य कर ही नहीं सकता. बजरंग दल महिलाओं की, बच्चों की रक्षा करता है. यह संगठन हमला करने या क्षति पहुंचाने के लिए बना ही नहीं है. कोई दूसरा अगर हिंदू समाज पर आक्रमण करे, तो उसकी रक्षा हम करेंगे, यही बजरंग दल की सोच है. आज तक बजरंग दल को बदनाम करने के लिए सारे विपक्षी दल, सारे विरोधी आरोप लगाने की कोशिश करते रहे हैं, पर साबित कुछ हीं हो पाया है. ग्राहम स्टेंस की हत्या दुखद है, निंदनीय है. उसकी जांच हो. साथ ही, उसके कारणों की भी जांच हो, लेकिन एक घटना जिससे कोई लेनादेना नहीं हो, उसके आधार पर पूरे संगठन को बदनाम करने की कोशिश तो ठीक नहीं है. बजरंग दल का किसी भी तरीके से संगठन के तौर पर ग्राहम स्टेंस की हत्या से कोई लेना-देना नहीं है. पीरियड.
ग्राहम स्टेंस हत्याकांड में 14 लोगों को नामजद किया गया. उसमें से 11 को बरी किया गया. पहला सवाल तो पुलिस पर यहीं उठता है. यह कैसी जांच थी, कैसा आरोपपत्र था कि कोर्ट सबको बरी कर देती है. ये चार्जशीट ही खुद में संदेह उत्पन्न करनेवाला है. हाईकोर्ट ने आपके साक्ष्य को नहीं माना, तभी तो उसने बेल दिया और बरी किया. दारा सिंह व्यक्तिगत तौर पर अपराध में शामिल था, बजरंग दल एक संगठन के तौर पर इसमें लिप्त नहीं था, यह वाधवा कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में ही दिया. तत्कालीन सरकार के दबाव में बजरंग दल को बदनाम करने के लिए जबरन वो चार्जशीट बनाई गई. गवाहों के बयान से लेकर पूरे केस फाइल को जब आप पढ़ेंगे, तो आप देखेंगे कि जिन गवाहों के बयान के आधार पर चार्जशीट फाइल हुई, वे गवाह ही हॉस्टाइल हो गए. तो, एक बार फिर से दोहरा रहा हूं कि बजरंग दल का कोई लेनादेना नहीं है, हत्या से.
बजरंग दल तो प्रेम का समर्थक है
हम लोग तो प्रेम के पुजारी हैं. इसलिए, क्योंकि कृष्ण को मानते हैं, पूजते हैं. भगवान कृष्ण का राधा से क्या संबंध है, प्रेम का ही तो. बजरंग दल 'वसुधैव कुटुम्बकम्' को मानता है. सभी के कल्याण की कामना करता है. इसमें कहीं से भेदभाव नहीं है, कोई अलगाव नहीं है. हम लोग प्रेम के खिलाफ नहीं हैं, प्रेम के नाम पर फूहड़ता, वह भी पार्क में, सड़कों पर, रेस्त्रां में होने के खिलाफ हैं. प्रेम कीजिए, लेकिन फूहड़ता वह भी सार्वजनिक तौर पर तो बिल्कुल नहीं. सरकार भी तो सार्वजनिक तौर पर धूम्रपान के खिलाफ दंडित करती है, तो इसका क्या मतलब? हम सरकार नहीं हैं, इसलिए हम दंडित नहीं करते. हम आग्रह करते हैं. हम समझाते हैं, हम प्रयास करते हैं. कुछ विरोधी तत्व जबरन किसी पर हमला कर बजरंग दल का नाम लगाते हैं. कई जगह बजरंग दल के कार्यकर्ताओं से मारपीट हुई है. हम लोग मारपीट नहीं करते हैं. बस, प्रेम से समझाने की कोशिश करते हैं.
लव-जिहाद पर केरल हाईकोर्ट ने एसआईटी से रिपोर्ट मांगी थी. उस एसआईटी रिपोर्ट में यह उल्लिखित है कि हजारों लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाया गया है, उनका धर्मांतरण किया गया है. केरल में न तो भाजपा या भाजपा समर्थित दल की सरकार है, न ही वहां की कोर्ट औऱ एसआईटी को किसी ने मजबूर किया है. बजरंग दल तो बस उसको मानता है. यूपी जैसा कोई भाजपा शासित राज्य होता तो यह आरोप लग सकता था कि भाजपा ने जबरन यह सब किया, लेकिन केरल में तो कांग्रेस और वामपंथी ही रहते हैं सत्ता में. केरल में तो जो सरकार है, वही इसको नकारती है, लेकिन उन्हीं की ये रिपोर्ट भी है.
गो-तस्करों ने की हैं हत्याएं
हाल के दिनों में ही कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जब गो-तस्करों ने पुलिसवालों को ही रौंद दिया है. कई जगहों पर गो-तस्करों को सजा भी मिली है. आखिर, जो देश का कानून है, कई राज्यों में गोहत्या पर पाबंदी है, तो उसकी इतनी अनिवार्यता क्या है? इस देश का संविधान कहता है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा काम न करे, जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को कष्ट पहुंचे. यह क्या पूछने की बात नहीं है कि जब पूरे हिंदू समाज में गाय को मां का दर्जा मिला है, तो उसकी हत्या करना कौन सा जरूरी है, क्या हमारी भावनाओं को भड़काना बेहद जरूरी है?
याद रखिए कि हिंदू घटा है तो देश बंटा है. 1947 में तो बांग्लादेश और पाकिस्तान भी हमारे हिस्से थे. उसके पहले अफगानिस्तान और म्यांमार भी. आप 1947 लीजिए, 1990 का कश्मीर लीजिए या हाल-फिलहाल की कोई घटना लीजिए. हर जगह हिंदुओं को मारा गया है, उनको भगाया गया है. 1921 के जो दंगे हुए, उस समय कौन सा बजरंग दल या भाजपा वहां थी? आप इस देश का नक्शा देखिए और कैसे हमारा क्षेत्रफल सिकुड़ा है, वह देख लीजिए. जनसंख्या का घनत्व देख लीजिए. आपको जवाब मिल जाएगा. एक बात और सोचने की है. इस देश का विभाजन किस आधार पर हुआ था? मजहब के आधार पर ही न. कोई क्रिकेट खेलने के लिए तो हुआ नहीं. अब फिर 2047 में गजवा-ए-हिंद का नारा क्यों बुलंद हो रहा है, क्या देश को फिर से एक साजिश में झोंकने की तैयारी नहीं है यह? हाल ही में तमिलनाडु से एक खबर आई थी, जहां 70 फीसदी जनसंख्या हो गई मुसलमानों की तो वहां हिंदुओं के संस्कारों पर ही रोक लगाने की बात होने लगी. आखिर कैसे कहें कि हिंदू खतरे में नहीं है, इस देश में 9 राज्य ऐसे हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो रहे हैं. जहां भी हिंदू घट रहा है, देश बंट रहा है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)