भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश (डिविडेंट) भुगतान करने का ऐलान बुधवार को किया. यह रकम एक साल पहले की तुलना में दोगुने से भी अधिक है. आरबीआई, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 (अधिशेष लाभ का आवंटन) के अनुसार, अधिशेष - यानी व्यय पर आय की अधिकता  को सरकार को हस्तांतरित करता है. अधिनियम की धारा 47 में कहा गया है कि खराब ऋण, मूल्यह्रास और अन्य खर्चों के लिए प्रावधान करने के बाद, शेष लाभ का भुगतान केंद्र सरकार को किया जाना चाहिए. ऐसा ही ज़्यादातर देशों में होता है, यूएस फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ जापान, बैंक ऑफ इंग्लैंड, जर्मन बुंडेसबैंक के कानून यह स्पष्ट करते हैं कि मुनाफा सरकार या राजकोष को हस्तांतरित किया जाना चाहिए.


आरबीआई का तगड़ा मुनाफा


अधिशेष व लाभांश गणना बिमल जालान समिति द्वारा अनुशंसित आर्थिक पूंजी ढांचे (ईसीएफ) पर आधारित थी, जिसने आरबीआई को अपनी बैलेंस शीट के 5.5% और 6.5% के बीच आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) बनाए रखने की सलाह दी थी. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए आरबीआई ने 87,416 करोड़ रुपये का लाभांश सरकार को दिया था. इससे पहले आरबीआई द्वारा दिया गया उच्चतम स्तर वर्ष 2018-19 में था, जब रिजर्व बैंक ने 1.76 लाख करोड़ रुपये का लाभांश केंद्र सरकार को दिया था. वर्ष 2009 से 2014 तक लगभग 1.07 लाख करोड़. रूपये का लाभांश आरबीआई ने सरकार को दिया था. औसतन, ये हस्तांतरण सकल घरेलू उत्पाद के 0.5 प्रतिशत के आसपास रहते हैं. इस राशि से सरकार को अपना वित्तीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही नई योजनाओं में खर्च करने में भी मदद मिलेगी. इसके साथ ही सरकार की जनकल्याण योजनाओं के लिए पैसा जुटाना भी इस रकम के मिलने के बाद काफी हद तक आसान हो जाएगा.  केंद्र सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे और राजस्व के बीच अंतर को 17.34 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 5.1 प्रतिशत) तक सीमित रखना है.


बैंकिंग क्षेत्र में अहम बदलाव


पिछले कुछ वर्षों में, बैंकिंग क्षेत्र  संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, आगामी 26 मई को केंद्र की मोदी सरकार अपने दस साल पूरे कर रही है. इस अवधि के दौरान बैंकिंग क्षेत्र में कई सुधार लागू किए गए हैं. वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री की पहल पर लगभग 52 करोड़ लोगों ने प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत अपना खाता खुलवाया है, इनमें से 55% से अधिक खाते महिलाओं के नाम पर हैं. 2018 में सरकार ने इण्डिया पोस्ट पेमेंट बैंक की स्थापना की जिसका मकसद पोस्ट ऑफिस के नेटवर्क का इस्तेमाल करके बैंकिंग को गांव-गांव तक पहुंचाना था. वर्ष 2020 में सरकार ने 10 सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय किया. बैंकिंग क्षेत्र के लिए रीकैपिटलाइजेशन एंड रिफॉर्म तथा इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड जैसे बड़ेकदम लिए गए हैं. भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 75 जिलों में 75 डीबीयू ('डिजिटल बैंकिंग यूनिट) की शुरुआत प्रधानमंत्री ने की. 35 करोड़ से अधिक डाकघर जमा खातों को कोर बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा जा रहा है.


यूपीआई ने बदला खेल


यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) अब विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त प्लेटफॉर्म बन गया है और यह हर महीने 1200 करोड़ से अधिक लेनदेन करता है. बजट में भारत ने एक डिजिटल मुद्रा की योजना की घोषणा की है. बैंकों का सकल एनपीए, जो 2018 में लगभग 11% था, सितंबर 2023 तक घटकर 3% से भी कम हो गया है.  बैंकों की पूंजी पर्याप्तता 31 मार्च, 2020 के 14.8 प्रतिशत से 181 आधार अंक (बीपीएस) बढ़कर 30 सितंबर, 2023 को 16.6 प्रतिशत हो गई है. वर्ष 2023 में एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक का विलय होने के बाद पूंजीकरण के हिसाब से यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बैंक बन गया है. पीएसबी की लाभप्रदता वित्त वर्ष 2014 में 37 हजार करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 23 में 1 लाख 8 हजार करोड़ हो गई. सरकार ने वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 21 के दौरान पीएसबी को पुनर्पूंजीकृत करने के लिए अभूतपूर्व 3.11 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया. हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में व्यक्तिगत ऋणों में ज्यादा वृद्धि हुई है जो चिंताजनक है.


डिजिटल बैंकिंग और साइबर सुरक्षा


डिजिटल बैंकिंग के बढ़ते युग में साइबर सुरक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है. भारतीय फिनटेक उद्योग 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होने का अनुमान है. आज  भारत के पास विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र है. डेलॉयट रिसर्च एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार देश में अभी 110 करोड़ लोग मोबाइल फ़ोन का उपयोग कर रहे जिसमें 72 करोड़ लोग स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे और इसकी संख्या 2026 तक 100 करोड़ पार कर जाने की उम्मीद है. फिर भी ऑनलाइन फ्रॉड के चलते वर्तमान में सिर्फ चार करोड़ लोग ही मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं. इसी दस सालों में देश ने कई बैंक घोटाले भी देखे हैं, जिनमे डीएचएफएल (35,000 करोड़), एबीजी शिपयार्ड (23,000 करोड़), नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का बैंक घोटाला (10,000 करोड़) व  विजय माल्या का बैंक घोटाला (9,000 करोड़) आदि प्रमुख हैं. पिछले कुछ वर्षों में बैंकों का एनपीए घटा है, लेकिन इसके पीछे की स्याह हकीकत बट्टे खाते हैं. बैंकों ने 5 साल में जितने कर्ज की वसूली की, उसके दोगुने से अधिक बट्टे खाते में डाल दिया. पिछले पांच वित्त वर्षों में 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के ऋण को बट्टे खाते में डाला है.


बैंको का ऋण और सुधार 


बड़े कॉरपोरेट बैड लोन को लगातार बट्टे खाते में डालने के बजाय, भारत को ऋण वसूली प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा. सरकार को बैंकों के निजीकरण के लिए जल्दबाजी नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे व्यापक शासन सुधार पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यदि बैंकिंग क्षेत्र स्वतंत्र बोर्ड व गतिशील ढ़ंग से चलाया जाये तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी किसी भी अन्य निजी बैंक की तरह काम कर सकते हैं. नियोबैंक को अब बैंकिंग के भविष्य के रूप में पेश किया जा रहा है.ऐसी नीतियां बनाना आवश्यक है जो बैंकिंग की आसानी में सुधार करें और हर किसी की जरूरतों के अनुसार ऋण पहुंच प्रदान करें. भारत को डिजिटल पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए हमें लगातार रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (आरपीए), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग का लाभ उठाने की जरूरत है.


अंतरराष्ट्रीय एजेंसी पीडब्लूसी के सर्वे के अनुसार भारत वर्ष 2040 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बैंकिंग हब हो सकता है.  बैंक अपनी वेल्थ क्रिएटर्स की भूमिका से आगे बढ़कर जॉब क्रिएटर्स की भूमिका का समर्थन करें जिससे इन बैंकों के साथ ही देश का बैलेंस शीट भी मजबूत बने. वास्तव में अमृत काल के दौरान एक विकसित राष्ट्र के रूप में भारत की यात्रा केवल एक स्वस्थ बैंकिंग प्रणाली द्वारा ही संभव है और यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यात्रा शुरू हो गई है. फिर भी एक उभरती अर्थव्यवस्था में एक केंद्रीय बैंक के लिए, सावधानी बरतना हमेशा फायदेमंद होता है, क्योंकि एक वैश्वीकृत दुनिया में, दुनिया के किसी भी आर्थिक घटना का सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव तो पड़ता ही है.


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