पाकिस्तान में जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाइजैक करने की ख़बर ने सभी को हैरान कर दिया. इसे पाकिस्तान के उग्रवादी संगठन बलूच आर्मी लिबरेशन की तरफ से अंजाम दिया गया. लेकिन सवाल उठ रहा है कि ये बलोच संगठन क्यों इस तरह की खतरनाक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और आखिर इंतकाम की ये आग क्यों इनके अंदर धधक रही है? दरअसल, ये पाकिस्तान का वो उग्रवादी संगठन है जो अलग देश की मांग कर रहा है और उससे अलग होना चाहता है.
बलोच का ये काफी पुराना आंदोलन है. इसके नेता भले ही समय-समय पर बदलते रहते हैं लेकिन इसकी मांग समय के साथ और जोर पकड़ती गई. बलूचिस्तान कभी भी पाकिस्तान का अंग नहीं बनना चाहता था. इसके साथ ही, न ही खैबर पख्तूनख्वाह और न ही सिंध चाहता था कि वे कभी पाकिस्तान का हिस्सा बने. जम्मू कश्मीर के जिस हिस्से को पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है, वहां से भी लगातार विद्रोह की आवाज़ें उठ रही हैं.
पंजाब में सबसे ज्यादा आबादी है, ऐसे में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बनने के बाद यहां के बाकी प्रांतों को अपनी कॉलोनी की तरह बना दिया. ये सभी इलाके अल्पविकसित है और गरीबी काफी ज्यादा है. लोगों में असंतुष्टि काफी ज्यादा है. जब कोई कुछ बोलता है तो उसे दबाया जाता है. ये बिल्कुल वैसा ही हो रहा है जैसे बांग्लादेश में हुआ था.
ये है विद्रोह की आवाज
दरअसल, बीएलए एक बड़ा संगठन है. वो जिस प्रांत का है ये बलोचिस्तान काफी संसाधनों से समृद्ध है. वहां पर न सिर्फ गैस है बल्कि खनिज काफी ज्यादा है. इन सबके बावजूद वहां के लोग काफी गरीब हैं. सारे रिवैन्यू चले जाते हैं, नाम की सरकार बिठा रखी है.
जब तक केलात का नवाब या फिर बुगती थे, जब तक वहां की स्थिति थोड़ी बेहतर थी. लेकिन जिस तरह से उनकी हत्या कर दी गई, बलोच के लोग इसे शहीद बताते हैं. इसके बाद से ही मिलिटेंट मूवमेंट काफी मजबूत हुआ है. मिलिटेंट मूवमेंट पहले इस्लामिक था ताकि कोई अन्य सोशल या फिर लिबरल मूवमेंट न नया बन पाए.
लेकिन, अब ये बलोच उग्रवादी संगठन काफी शक्तिशाली हो रहे हैं. ये लोग सेक्युलर है, जिसमें मर्द-औरत सभी शामिल हैं. इन्हें लगता है कि डेमोक्रेटिक तरीके से आजादी नहीं मिल सकती है. इसके बाद बलोच लोगों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया है. इनका सीमा अफगानिस्तान से लगती है.
काफी मजबूत है बलोच उग्रवादी संगठन
जिस वक्त अमेरिकी अफगानिस्तान छोड़कर गए, उस समय वे काफी अत्याधुनिक हथियारों को छोड़ गए थे. वो हथियार भी इन्हें मिल गए. दूसरी बात ये भी है कि आम जनता का इस आंदोलन को पूरा समर्थन है, इसलिए इसे दबाना पाकिस्तान की सरकार या फिर वहां की आर्मी के लिए आसान नहीं है.
जहां तक बलोच आंदोलन की शरुआत की बात है तो पाकिस्तान बनने के बाद अगले साल यानी 1948 में मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी सेनाएं भेजी थी और उसे अपने कब्जे में ले लिया था. जबकि, खैबर पख्तूनख्वाह में बादशाह खान थे, वो भी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे. उन्हें भी दबाया गया. मूवमेंट को दबाया गया. उस वक्त मूवमेंट को दबाना काफी आसान था. लेकिन, उसके फौरन बाद ही पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष शुरू हो गई थी.
ये इलाके विकास का पैमाने पर जहां काफी पिछड़ा हुआ है तो वहीं शिक्षा भी काफी कम है. यहां की सड़कें भी ठीक नहीं है. कनेक्टिविटी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
दूसरी एक बड़ी समस्या इनके सामने आ गई चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर. इससे स्थानीय लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. यहां पर काम करने वाले मजदूरों को दूसरी जगहों से लाया जाता है. यहां पर काम करने वाले ठेकेदार पंजाबी होते हैं. बाकी बड़ी पॉजिशन पर बैठे इंजीनियर जैसे लोग चीन के होते हैं. इसलिए बलोच लोगों का आक्रोश चीन के खिलाफ भी रहता है. वे उन पर भी हमले करते रहते हैं.
ग्वादर पोर्ट जरूर बनाया गया है, लेकिन स्थानीय लोगों को उससे कोई फायदा नहीं है. दूसरी एक वजह ये भी है कि बड़ी संख्या में जिस तरह से बाहर के लोगों को वहां पर लाकर बसाया जा रहा है, इससे बलोच लोगों को लग रहा है कि इनका कल्चर, खानपान और भाषा सब असर पड़ रहा है. पाकिस्तान के खिलाफ बलोच का ये आंदोलन काफी मजबूत है और इसे रोकना इस्लामाबाद के बूते की बात अब नहीं रह गई है.
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