उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार का शोर थम गया है। 10 फरवरी को पहले चरण में 11 ज़िलों की 58 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होनी है और इस इलाके की वोटिंग तय करेगी कि उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी? पश्चिमी उत्तरप्रदेश के इन 58 सीटों के चुनाव के लिए बीजेपी और सपा-आरएलडी के बीच कड़ी टक्कर है. सपा-आरएलडी की रणनीति है कि मुस्लिम और जाट के जरिए जंग जीतने की वहां बीजेपी की रणनीति है कि फिर दबदबा को बरकरार रखना. सपा की बिछाई गई चाल पर बीजेपी की चाल राजनीतिक चौसर जैसी ही दिख रही है. सपा-आरएलडी ने बड़ी होशियारी से कई मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिये. अखिलेश यादव आत्मविश्वास में है कि मुस्लिम वोटर सपा के अलावा कहीं नहीं जाएंगे और सपा-आरएलडी की जीत हो जाएगी लेकिन चुनाव के पहले अमित शाह ने बड़ी चाल है वो है जाट वोटरों को अपनी तरफ खींचने की है.


अमित शाह की क्या है चाणक्य नीति?


भारतीय चुनावी राजनीति के अमित शाह चाणक्य माने जाते हैं. उन्हें मालूम है कि जाट वोटरों के बिना पश्चिमी उत्तरप्रदेश में चुनावी वैतरणी पार करना नामुमकिन है. राजनीतिक समीकरण ऐसे है, जिसकी वजह से अमित शाह को ये चाल चलनी पड़ी है. दरअसल किसान आंदोलन की वजह से जाट वोटर बीजेपी से  नाराज माने जाते हैं, किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए विधानसभा चुनाव की घोषणा के पहले मोदी सरकार ने किसान बिल वापस ले लिये हैं, लेकिन राकेश टिकैत प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से बीजेपी को हराने के संकेत दे रहे हैं. राकेश टिकैत पश्चिमी उत्तरप्रदेश से ही जाते हैं और पूर्व प्रधानमंत्री चौधऱी चरण सिंह के पोते जयंत चौधऱी का गढ़ भी पश्चिमी उत्तरप्रदेश ही है तिसपर अखिलेश यादव ने फिर से जयंत चौधऱी से चुनावी गठबंधन कर लिया है इससे बीजेपी की मुश्किल बढ़ गई है.


इन 58 सीटों पर बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, जबकि ये मुस्लिम बाहुल्य इलाका है जिनकी संख्या करीब 28 फीसदी  मानी जाती है. ये भी ध्यान देने की बात है कि बिना मुस्लिम उम्मीदवार के ही बीजेपी शानदार जीत दर्ज की थी. 58 सीटों में से बीजेपी 53, सपा 2, बीएसपी 2 और आरएलडी 1 सीट जीती थी. मुस्लिम के अलावा इन इलाकों में दलित 18 फीसदी, जाट करीब 16  जाट और 30 ओबीसी है. बीजेपी को लगता है कि मुस्लिम वोटर के बिना इन इलाकों में फिर से चुनाव जीता जा सकता है इसीलिए दोबारा जाट वोटरों पर पैनी नजर है. मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने के बावजूद भी बीजेपी इन इलाकों में पिछली बार भारी मतों से जीत गई है. दरअसल मुस्लिम वोटर बंट जाते हैं इस बार भी 58 सीटों पर सपा-आरएलडी ने 12, बीएसपी 16 और कांग्रेस 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारी है जबकि औवैसी की पार्टी  अधिकतर उम्मीदवार मुस्लिम ही हैं.


जयंत चौधरी पर अमित शाह की क्या चाल है?


उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव बीजेपी के लिए नाक का मुद्दा है. विधानसभा का चुनाव जीतेंगे तभी 2024 में भी लोकसभा का चुनाव जीत पाएगी पार्टी इसीलिए अमित शाह ने बड़ी चाल चली है. दिल्ली में जाट नेताओं की बड़ी बैठक हुई और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जाट समुदाय की विभिन्न खाप पंचायतों के करीब 253 नेताओं ने 26 जनवरी को अमित शाह से मुलाकात  की और कई अपनी मांगें रखीं. अमित शाह ने उस बैठक में कहा बीजेपी का जाट समुदाय के साथ पुराना रिश्ता है और इसे छोटी-मोटी बातों पर नहीं तोड़ा जा सकता और जाट नेताओं की मांग पूरा करने का वादा किया लेकिन सबसे बड़ी चाल चल दी और उन्होंने जाट नेताओं के सामने उन्होंने कहा कि मैं जयंत चौधरी को चाहता हूं, लेकिन उन्होंने घर गलत चुन लिया है हालांकि मेलजोल की संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं, भविष्य में कुछ भी हो सकता है. अमित शाह ने इसके जरिए जाट नेताओं को अपने अपने इलाकों में ये संदेश फैलाने को कहा कि बीजेपी ही जाट की हितैषी पार्टी है. बीजेपी ही जाट बिरादरी का भला कर सकता है. दरअसल किसान आंदोलन की वजह से जो जाट वोटर नाराज हैं उसे बीजेपी की तरफ फिर से वापस लाने की तैयारी है इसीलिए अमित शाह को जाट वोटरों को कंफ्यूजड करने की कोशिश की है.


जयंत चौधऱी के लिए हमेशा दरवाजा खुला हुआ है, संदेश यही दिया गया अखिलेश के साथ गठबंधन होने के बाद भी जयंत चौधरी बीजेपी की तरफ लौट सकते हैं, बीजेपी जाट की हितैशी है और जयंत चौधरी के भी हितैषी हैं.  मतलब जयंत चौधऱी को वोट डालने की जगह बीजेपी को वोट डालने की प्रेरित कर रहें हैं. पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाट और मुस्लिम वोटरों की नहीं बनती है. ये संदेश देने की कोशिश है कि गुस्से में अपना वोट बर्बाद मत करें. अमित शाह की इस चाल के बाद जयंत चौधरी लगातार हमलावर बने हुए हैं वो बार बार किनारा करने की कोशिश कर रहे हैं तो बीजेपी लगातार डोरा डाल रही है. जयंत चौधरी ने साफ संकेत दिये हैं कि वो बीजेपी के साथ नहीं जाने वाले हैं. कभी कहा कि मैं कोई चवन्नी नहीं पलट जाऊं तो कभी कहा कि ऐसी वोटिंग करो कि बीजेपी की चर्बी उतर जाए. उनकी कोशिश है कि जाट वोटरों में उनके लेकर कोई भ्रम पैदा ना हो. अब सवाल है कि जयंत चौधरी पर अमित शाह का जादू काम करेगा या नहीं वो 10 मार्च को ही पता चलेगा.



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