गुजरात दंगों की याद दिलाने वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बवाल जारी है, इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार की तरफ से बैन कर दिया गया है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि ये डॉक्यूमेंट्री एक प्रोपेगेंडा के तहत जारी हुई और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई. कई लोग सरकार के फैसले पर भी सवाल उठा रहे हैं और इसे प्रेस की आजादी के खिलाफ बताया जा रहा है. हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब भारत में किसी डॉक्यूमेंट्री या फिल्म को बैन कर दिया गया है. इससे पहले कई फिल्मों, किताबों और डॉक्यूमेंट्रीज पर भारत में बैन लगाया जा चुका है.
अब बात डॉक्यूमेंट्री बैन की हुई है तो उन डॉक्यूमेंट्रीज की बात कर लेते हैं, जिन्हें लेकर भारत में बवाल हुआ और बाद में सरकार ने उन्हें बैन कर दिया.
'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन'
इस डॉक्यूमेंट्री में गुजरात में हुए गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों का जिक्र किया गया है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कि तब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, उनकी भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं. इस डॉक्यूमेंट्री में पीएम मोदी के बीबीसी को दिए उस इंटरव्यू को भी दिखाया गया है, जिसमें उनसे रिपोर्टर दंगों को लेकर सवाल पूछ रही है. डॉक्यूमेंट्री के सामने आते ही इस पर बवाल शुरू हो गया और सरकार ने इसे बैन कर दिया.
सत्यजीत रे की 'सिक्किम'
करीब पांच दशक पहले सत्यजीत रे ने एक सिक्किम नाम की डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. जिसे लेकर खूब विवाद हुआ. इस डॉक्यूमेंट्री पर 1971 में तत्कालीन राजा ने बैन लगा दिया था. सिक्किम के भारत में औपचारिक विलय के बाद भी ये बैन जारी रहा. दरअल ये डॉक्यूमेंट्री सिक्किम की संप्रभुता को लेकर बनाई गई थी, कहा गया कि इससे भारत और चीन के बीच रिश्तों में कड़वाहट बढ़ सकती है. साल 2010 में सरकार ने इस पर लगाए गए बैन को हटा दिया, जिसके बाद कुछ जगह इसे दिखा गया. हालांकि कोर्ट में याचिका दायर कर फिर से इसे दिखाने पर रोक लगा दी गई. कहा गया कि राजनीति वजहों के चलते इस डॉक्यू्मेंट्री को लोगों से दूर रखा गया.
'द फाइनल सॉल्यूशन'
साल 2003 में गुजरात दंगों को लेकर सामने आई इस डॉक्यूमेंट्री 'द फाइनल सॉल्यूशन' को लेकर भी खूब विवाद हुआ. ये वो वक्त था जब दंगों को कुछ ही महीने गुजरे थे. राकेश शर्मा ने इसे बनाया था. बाद में भारतीय सेंसर बोर्ड ने इसे बैन कर दिया. कहा गया कि इससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं और हिंदू-मुस्लिम के बीच फिर से तनाव बढ़ सकता है. हालांकि कुछ ही महीनों बाद इसे सेंसर बोर्ड की तरफ से हरी झंडी मिल गई और बाद में इसने नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में स्पेशल जूरी अवॉर्ड का खिताब अपने नाम किया.
'इंशाअल्लाह फुटबॉल'
साल 2010 में आई इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म ने खूब सुर्खियां बटोरने का काम किया. इसे सेंसर बोर्ड की तरफ से रिलीज करने की इजाजत नहीं मिली, इसके बाद डायरेक्टर ने मुफ्त में इसे इंटरनेट पर ही रिलीज कर दिया. ये एक 18 साल के युवक की कहानी थी, जिसे फुटबॉल से काफी ज्यादा प्यार है. उसका पिता एक आतंकवादी संगठन से जुड़ा होता है. इसी के इर्द-गिर्द पूरी कहानी घूमती है. इसके डायरेक्टर अश्विनी कुमार ने इसी डॉक्यूमेंट्री की तर्ज पर एक दूसरी डॉक्यूमेंट्री इंशाअल्लाह कश्मीर बनाई, जिसे लेकर भी खूब विवाद हुआ. इसमें कश्मीरी लोगों की कहानी और उनके डर को दिखाया गया था.
'नो फायर जोन'
साल 2013 में भारतीय सेंसर बोर्ड की तरफ से 'नो फायर जोन: द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' को बैन कर दिया गया. इसके पीछे तर्क दिया गया कि इस डॉक्यूमेंट्री की वजह से भारत के श्रीलंका के साथ रिश्तों पर असर पड़ सकता है. इस विवादित डॉक्यूमेंट्री को अवॉर्ड विनिंग फिल्ममेकर कैलम मैक्रे ने बनाया था. डॉक्यूमेंट्री में श्रीलंका की सेना और LTTE के बीच हुए सिविल वॉर को दिखाया गया था. हालांकि इंटरनेट पर लोगों ने इसे देखा और अब भी एक्सेस करने के कई तरीके खोजे जाते हैं.
'इंडियाज डॉटर'
दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को एक युवती के साथ हुए सामूहिक बालात्कार और वहशीपन को लेकर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री इंडियाज डॉटर को लेकर खूब विरोध हुआ. ब्रिटेन की फिल्ममेकर लेस्ली एडविन ने इसे बनाया था. साल 2015 में विवाद बढ़ने के बाद भारत में इसे बैन कर दिया गया. हालांकि इससे पहले ही बीबीसी समेत तमाम चैनल और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इसे दिखा चुके थे. इस दौरान भी बैन के फैसले को लेकर खूब चर्चा हुई और सरकार की आलोचना की गई.
इन फिल्मों और किताबों पर भी लगा बैन
अब अगर उन विवादित फिल्मों और किताबों की बात करें जिन पर भारत में बैन लगाया गया तो इसकी लिस्ट काफी लंबी है. बैंडिट क्वीन, ब्लैक फ्राइडे, कामसूत्र, फायर, परजानिया, पांच और अनफ्रीडम जैसी फिल्में विवाद में रहीं और इन पर बैन भी लगाया गया. वहीं किताबों की अगर बात करें तो इनमें सलमान खुर्शीद की द सैटेनिक वर्सेस, द हिंदूज, अंडर्सटैंडिंग इस्लाम थ्रू हदीस, द रामायण, जिन्ना: इंडिया पार्टिशन इंडिपेंडेंस, द प्राइस ऑफ पावर, तस्लीमा नसरीन की 'लज्जा', एन एरा ऑफ डार्कनेस, द हर्ट ऑफ इंडिया जैसी किताबों पर भारत में बैन लगाया गया.