प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री की टाइमिंग से साफ जाहिर है कि इसे क्यों जारी किया गया है. आने वाले वक्त में देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, वहीं इसके ठीक बाद 2024 में लोकसभा चुनाव होना है. हमारे यहां भारत विरोधी देश के बाहर भी हैं और अंदर भी हैं, जो वक्त-वक्त पर ऐसा करते हैं और प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. 


पहले एक कल्पना थी कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता शायद कम हो जाएगी, लेकिन जितने सर्वे आए हैं और गुजरात चुनाव नतीजों ने बता दिया कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हो रही बल्कि बढ़ रही है. विदेशी मंचों पर भी कहा जा रहा है कि भारत एक चमकता हुआ सितारा है. भारत को हाल ही में जी-20 की अध्यक्षता मिली है. जिसे देखते हुए बीजेपी-आरएसएस विरोधी परेशानी में हैं. 


तनाव पैदा करने की कोशिश 
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में एक थीम दिया गया है, जिससे पीएम मोदी की छवि लांछित हो. पीएम मोदी पर फिर से सवाल उठाने की कोशिश की जा रही है. भारत में जो लोग गुजरात दंगे को भूल चुके हैं उन्हें उसकी याद दिलाई जा रही है, जिससे तनाव पैदा हो. अगर कोई भी मीडिया संस्थान गुजरात दंगों पर दो भागों में इतनी बड़ी डॉक्यूमेंट्री लाती है तो इसके पीछे कोई अच्छा इरादा नहीं हो सकता है. 


बीबीसी ने शुरुआत में ही गोधरा कांड की चर्चा की है, जिसमें लिखा है कि रेल दहन के कारण क्षेत्र अब भी विवादित हैं... आगे कहा गया है कि इसका आरोप मुसलमानों पर लगाया गया. जबकि गोधरा रेल दहन की पूरी जांच हो चुकी है, हाईकोर्ट ने फांसी तक की सजा सुनाई है... और इतना होने के बाद आप अब तक इसे विवादित बता रहे हैं. ये कैसे अच्छा मकसद हो सकता है. 


सुप्रीम कोर्ट की तरफ से क्लीन चिट
जहां तक गुजरात दंगे का सवाल है, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 400 से ज्यादा पन्नों का एक फैसला दिया है. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी दृष्टिकोण से देखने के बाद गुजरात की हिंसा में नरेंद्र मोदी या तत्कालीन सरकार की भूमिका नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एसआईटी की जांच सही है और उसमें बदलाव की कोई जरूरत नहीं है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जो लोग इस मामले को बार-बार कोर्ट में ला रहे हैं, उनकी जांच होनी चाहिए. उसमें कुछ अधिकारी और कुछ एनजीओ भी शामिल हैं. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ये कह रहा है और दूसरी तरफ बीबीसी की ये डॉक्यूमेंट्री है. 


बीबीसी ने बताया है कि 2012 में आई जांच रिपोर्ट हमारे हाथ लग गई, ये रिपोर्ट 10 साल बाद अचानक कैसे बीबीसी के हाथ लग गई. अगर कोई रिपोर्ट हाथ लगती है तो पहले उसे रिपोर्ट या ब्रेकिंग की तरह चलाया जाता है. उसकी डॉक्यूमेंट्री नहीं बनाई जाती है. सवाल ये है कि ये क्यों किया गया है? क्या भारत में तनाव पैदा करने की कोशिश हो रही है, क्या मुस्लिम देशों के साथ जो हमारे अच्छे संबंध हैं, उन्हें खराब करने की कोशिश है? क्या चुनाव से पहले देश में अव्यवस्था दिखाने की कोशिश हो रही है. बीबीसी की भूमिका 2002 दंगों और इससे पहले से ही ऐसी रही है. 


सख्त कार्रवाई की जरूरत
बीबीसी को हम दोषी ठहरा सकते हैं, लेकिन हमारे देश में ही ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जिन्हें किसी भी नेता या पार्टी से विचारधारा के तौर पर समस्या हो उससे कोई समस्या नहीं है... लेकिन यहां ये विरोध घृणा के तौर पर है. इन लोगों ने प्रचारित किया है कि ये संगठन मुस्लिम विरोधी है, जो कभी साबित नहीं हुआ है. गुजरात दंगों के नाम पर कई लोगों ने अरबों रुपये कमाए. दुनियाभर के तमाम एनजीओ और संगठनों को मोदी सरकार के आने के बाद खतरा पैदा हुआ, इसीलिए ऐसी रिपोर्ट सामने आ रही हैं.


हैदराबाद और जेएनयू में जो कुछ हो रहा है उसमें हमारे देश के वो लोग शामिल हैं, जो एकता और अखंडता को तोड़ना चाहते हैं. जो लोग स्क्रीनिंग कर रहे हैं उनके खिलाफ सख्त होने की जरूरत है, उनका विरोध भी होना चाहिए और कानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए. क्योंकि देश सुरक्षित रहेगा तभी हम सभी रहेंगे. नरेंद्र मोदी आज हैं कल नहीं हैं, लेकिन इस तरह का माहौल बनाना गलत है. 


डॉक्यूमेंट्री से विपक्ष को होगा नुकसान
विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, वो इस मामले को आने वाले चुनाव में इस्तेमाल करेगा. कोशिश ये होगी कि सेकुलरिज्म के नाम पर मुसलमान एकजुट हों और वो बीजेपी के खिलाफ वोट करें. एक माहौल बनाने की कोशिश होगी कि मोदी के खिलाफ बयानबाजी हो. चुनाव में ये मुद्दा उठेगा, लेकिन मेरा मानना है कि इसका असर बीजेपी और नरेंद्र मोदी के पक्ष में जाएगा. विरोधी समझ नहीं पा रहे हैं कि ये उन मुद्दों को उठाते हैं जिनसे बीजेपी और मोदी जी को फायदा होता है. इस डॉक्यूमेंट्री को अगर चलाया जाएगा तो इससे फायदा बीजेपी को ही होगा. 



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