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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद: 'कांग्रेस का खत्म हो गया है प्रभाव, प्रोपेगेंडा के लिए विदेशी ताकतों का ले रही है सहारा'

सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का पालन किया है और सरकार को नोटिस दिया है. कुछ लोगों को इस देश में ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी जेब में है और वो किसी न किसी प्रकार से देश और सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का बहाना खोज ही लेते हैं.

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर सबसे बड़ा सवाल ही यही है कि जब भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पूरी मामले की जांच कर इसे बंद कर दिया, तो उसके बाद भी कोई डॉक्यूमेंट्री बनाता है या कोई प्रोपेगंडा फैलाता है, इससे यही जाहिर होता है कि वो सुप्रीम कोर्ट को ही चुनौती दे रहा है. ये डॉक्यूमेंट्री अगर भारत के किसी एक इंस्टीट्यूट के खिलाफ है तो वो सुप्रीम कोर्ट है.

2002 से ही प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है

ये एक ही तरह के लोग हैं. उनका 2002 से लेकर आजतक कोई और एजेंडा ही नहीं है. इस देश के सभी कानूनी प्रावधानों के तहत गुजरात दंगों की जांच हुई है. उसके पहले जो गोधरा का कांड हुआ, जिसमें 59 लोगों को जीवित जला दिया गया, ये लोग उसके बारे में कभी चर्चा नहीं करते हैं. गुजरात के दंगों की न्यायिक जांच हुई. सुप्रीम कोर्ट से जांच हुई है. उस दंगे के बाद खुद कांग्रेस की केंद्र में 10 साल सरकार रही है. कांग्रेस ने हर वो तरीका आजमाया, जिसके जरिए मोदीजी को इसका दोषी करार दे दिया जाए. कांग्रेस की खुद की बनाई हुई एसआईटी ने जांच की है.

देश से बाहर की ताकतों का सहारा

हर तरह का हथकंडा जब फेल हो गया, तब नया तरीका अपनाया गया है. चुनाव आने से पहले 2002 का मुद्दा उठाया जाए, देश का माहौल खराब करने की कोशिश की जाए, दंगों के बारे में एक झूठा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जाए. ये वहीं चेहरे हैं, जो पिछले 20-21 साल से काम कर रहे हैं. इस बार उन लोगों ने बस एक चीज अलग की है. इस बार देश के अंदर ये काम करने की बजाय देश से बाहर की ताकतों का सहारा लिया है. शायद यहीं सबसे बड़ा कारण है, जिसकी वजह से सरकार ने इसे बैन करने का निर्णय लिया.

डॉक्यूमेंट्री पूरी तरह से प्रोपेगेंडा है

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पूरी तरह से प्रोपेगेंडा है. अगर ये प्रोपेगेंडा नहीं होता तो इसमें सुप्रीम कोर्ट के जांच से जुड़े तथ्यों को शामिल किया जाता. इसमें गोधरा के पूरे कांड और उसमें दोषी पाए गए लोगों को मेंशन किया जाता. गुजरात की दंगों की जांच में क्या-क्या हुआ, किन-किनको पकड़ा गया, किन-किनके खिलाफ कार्रवाई हुआ. इस सब तथ्यों को शामिल किया जाता. किन लोगों को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली, उनको भी मेंशन करते. इन तथ्यों को मेंशन नहीं करते हुए सिर्फ मोदीजी के ऊपर निशाना लगाने की झूठी कोशिश की गई है. 2002 से बोले जा रहे झूठ को आज 21 साल बाद दोबारा बोलने की कोशिश की गई है. इस तरह का प्रोपेगेंडा देश पिछले 20 साल से देख रहा है. जब इन लोगों को समझ में आया कि देश में चलाए गए प्रोपेगेंडा से काम नहीं चल रहा है तो इसी को घूमा करके बीबीसी से करवाने की कोशिश की गई है.

डॉक्यूमेंट्री में कोई नई चीज नहीं है

इस डॉक्यूमेंट्री में ऐसी कोई नई चीज नहीं है, जिसे इन लोगों ने पहले नहीं कहा है. कोई नया फैक्ट लेकर आ रहे हैं, ऐसा नहीं है. मैं तो कई बार ये बात बोलता हूं कि बीबीसी की जगह ये डॉक्यूमेंट्री भारत में बनाई गई होती और चुनाव से पहले चलाई होती तो, 50 सीटें ज्यादा ही आती. इसकी वजह ये है कि लोग अब इनके झूठ से उकता चुके हैं, लोग अब इनके झूठ पर गुस्सा होते हैं. इस पर बैन लगाने का कारण ये नहीं है कि इसमें दिखाया क्या गया है. बैन लगाने का कारण ये है कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है. कोई भी बाहर की मीडिया एजेंसी अगर भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ग़लत बताते हुए कोई प्रोपेगेंडा फैलाती है, तो भारत में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, वो अपनी डेमोक्रेसी में किसी बाहरी दखल को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी. बीबीसी कोई इंडिपेन्डेंट एजेंसी है भी नहीं, एक सरकारी मीडिया एजेंसी है. फिर ब्रिटेन की खुद की जो स्वतंत्र मीडिया है, वो ये बोल रही है कि बीबीसी को इंटरनेशनल प्रोपेगेंडा करने के लिए चाइनीज फंडिंग मिलती है. इन परिस्थितियों में अगर बीबीसी भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ग़लत बताती है, तो देश की किसी भी सरकार की ये पहली जिम्मेदारी होगी कि उसे ब्लॉक किया जाए.

कांग्रेस का खत्म हो गया है प्रभाव

विपक्ष के जो सिंसिबल वॉयसेज हैं, वे ये जानते हैं कि देश में आप विरोध या राजनीति करो. लेकिन आप किसी और देश की मीडिया को ये अलाउ नहीं कर सकते कि वो भारत के किसी संस्था के खिलाफ बिना किसी तथ्यों के दुष्प्रचार करे. ए के एंटनी के बेटे ने यहीं बोला. ट्रोल करने वालों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया कि 24 घंटे में उनको पार्टी छोड़नी पड़ गई. मेरा ये मानना है कि इस देश में जो भी विवेकशील विपक्ष है, उसे अच्छे से पता है कि सत्ता पक्ष का विरोध देश का विरोध नहीं बन जाना चाहिए. ऐसा कोई भी शख्य देश विरोधी प्रोपेगेंडा के साथ कतई खड़ा नहीं होगा. सरकार के खिलाफ जो भी कुछ करना है, वो आप देश के अंदर कीजिए. आपको किसी विदेशी मीडिया की जरूरत क्यों पड़ रही है. कांग्रेस की आज की जो लीडरशिप है वो बार-बार यही कर रही है. हमने किसान आंदोलन में यही देखा कि कांग्रेस ने जितनी भी इंटरनेशनल एंबेसी हैं, उनके बाहर प्रोटेस्ट प्लान किया था. कांग्रेस ने किसान आंदोलन को मोदी सरकार की जगह देश के खिलाफ आंदोलन बनाने की कोशिश की थी. आज भी वो यही कर रहे हैं. देश में अब कांग्रेस का उतना प्रभाव नहीं बचा है, इसलिए वो बाहरी ताकतों का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं.

ब्रिटेन में भी ऐसी बहुत सारी ताकतें हैं, जो नहीं चाहती कि भारत के साथ अच्छे संबंध बने. ऐसे लोग नहीं चाहते कि ऋषि सुनक पीएम पद पर बने रहें. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को ब्रिटेन के इस आंतरिक हालात के संदर्भ में भी देखने की जरूरत है. ब्रिटेन की मीडिया ये खबरें दे रही है कि चीन किस तरह से उनकी पॉलिटिक्स में दखल देने की कोशिश कर रहा है. इन सब हालातों में हम ये मान सकते हैं कि बीबीसी डॉक्यूमेंट्री उसी एजेंडे का हिस्सा है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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