JNU में छात्रों की सुरक्षा से हुआ समझौता, किस कानून के तहत डॉक्यूमेंट्री देखने पर लगाया गया बैन?
BBC Documentary Row: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) एक बार फिर विवादों के चलते चर्चा में है. इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बनाई गई बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर बवाल जारी है. इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद शुरू हुआ, पहले प्रशासन की तरफ से बिजली काट दी गई और इसके बाद AISA की तरफ से आरोप लगाया गया कि एबीवीपी के छात्रों ने उन पर पत्थरबाजी की. इस पूरे मामले को लेकर जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकीं आइशी घोष ने हमसे बातचीत की. आइशी के इस ब्लॉग में पढ़ें कि वो जेएनयू के इस विवाद पर क्या कह रही हैं.
जेएनयू में हमने सोचा था कि पीएम मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करें, लेकिन प्रशासन की तरफ से शाम को ही लाइट काट दी गई. इसके बाद हमने अपने फोन निकालकर और लैपटॉप में डॉक्यूमेंट्री देखी. इन लोगों को ये बात हजम नहीं हो पाई और उसके बाद पत्थरबाजी शुरू हो गई. हम लोग अपनी प्राइवेसी में क्या देख रहे हैं उस पर सरकार पाबंदी नहीं लगा सकती है.
ये एक लोकतांत्रिक तरीके से चलने वाला देश है, जहां पर कोई भी कुछ भी देख सकता है. ऐसा करने से रोकना राइट टू प्राइवेसी का हनन है. देश में कोई भी तानाशाही नहीं है. विचारों में मतभेद हो सकता है, लेकिन आप किसी को कुछ भी कहने या देखने से रोक नहीं सकते हैं. चार दिन पहले जेएनयू कैंपस के अंदर द कश्मीर फाइल्स की स्क्रीनिंग हुई. इसमें जिन छात्रों को जाना था, वो अपनी मर्जी से गए. कहीं से भी ये सुनने में नहीं आया कि किसी ने इसका विरोध किया या फिर पत्थरबाजी की.
कहा जा रहा है कि सरकार ने इसे बैन कर दिया है, उसके बाद भी हम इसे देख रहे हैं. हमें आप एडवाइजरी दिखाइए, दिखाइए कि किस नियम के तहत इसे बैन किया गया है. सरकार ने किस कानून के तहत इसे बैन किया है... अगर बैन भी है तो ये हमें बाहर से नहीं भेजा जा रहा है, ये वीडियो सभी के पास है सभी इसे एक्सेस कर सकते हैं, तो कोई भी इसे कहीं भी देख सकता है. कहा जा रहा है कि बीबीसी ने एजेंडे के तहत ये डॉक्यूमेंट्री बनाई है, लेकिन जब तक हम इसे देखेंगे नहीं तब तक किसी नतीजे तक कैसे पहुंच सकते हैं. इसे देखने के बाद छात्र आपस में चर्चा करेंगे, सोचेंगे और फिर नतीजे पर पहुंचेंगे, जिसके लिए यूनिवर्सिटीज को जाना जाता है. अगर स्टूडेंट्स ये नहीं कर सकते हैं तो फिर तो यूनिवर्सिटी में पढ़ाई और रिसर्च का कोई मतलब ही नहीं बनता है.
2014 के बाद एबीवीपी ने जेएनयू में खुद कई फिल्मों की स्क्रीनिंग करवाई है. हमने कभी भी उसका विरोध नहीं किया. हम लोग जब भी स्क्रीनिंग करवाते हैं ये लोग उसका विरोध करते हैं और उसे बंद करवाते हैं. सरकार को क्रिटिसाइज करने वाली हर चीज से इन लोगों को दिक्कत है. ये लोग इसकी शिकायत पुलिस, सिक्योरिटी या प्रशासन से नहीं करते हैं. ये लोग हिंसा करते हैं और पत्थरबाजी करते हैं.
इस पूरे मामले में जेएनयू प्रशासन ने छात्रों की सुरक्षा के साथ समझौता किया है. प्रशासन को पता था कि बिजली काटने के बाद हंगामा होता है और इसका फायदा उठाया जाता है. इसके बावजूद लाइट बंद कराया गया. ये पहले से सब कुछ तय था, सिक्योरिटी गार्ड्स को पहले से बताया गया था कि इनकी मदद नहीं करनी है. जेएनयू प्रशासन सरकार के सामने झुककर रहना चाहता है.
पत्थरबाजी को लेकर हम लोगों ने पुलिस में शिकायत की है. हम लोगों ने सबूत दिए हैं और कोशिश है कि एक्शन लिया जाए. हमारे कैंपस के अंदर जो माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, उससे सख्ती से निपटना चाहिए. हम लोग इस मामले को लेकर जेएनयू प्रशासन से मुलाकात करेंगे. हमारा मकसद था कि डॉक्यूमेंट्री सभी लोग देख पाएं, जो सभी ने देख ली. हम शांतिपूर्वक इसे देख रहे थे, तभी पत्थरबाजी हुई. हम प्रशासन से यही कहेंगे कि किसी भी हाल में जेएनयू के छात्रों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाना चाहिए.
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