पिछले कुछ दिनों से देश में दो महिलाएं सुर्खियों में हैं. एक सीमा हैदर, जो कथित तौर पर अपने प्रेम के लिए पाकिस्तान से तीन देशों को फांदते हुए उत्तर प्रदेश के नोएडा पहुंच गयीं तो दूसरी ओर एसडीएम ज्योति मौर्य हैं, जिन पर उनके पति ने धोखा देने के आरोप लगाए. सीमा से फिलहाल एटीएस पूछताछ कर रही है, तो ज्योति अपने पति आलोक के साथ अब रहना नहीं चाहती हैं, उन्होंने तलाक के लिए आवेदन किया है और प्रक्रिया चल रही है. इस बीच एक समाज के तौर पर हमने जो प्रतिक्रिया दी है, वह कहीं न कहीं हड़बड़ी से भरी और बेहद एकांगी है. 


समाज एकांगी और संकीर्ण प्रतिक्रिया दे रहा


ये दोनों ही जो घटनाएं हैं- ज्योति मौर्य और सीमा हैदर वाली, तो टीवी और बाकी माध्यमों से जितना समझ आता है, उसे अलग-अलग देखने और समझने की बात है. दोनों को ही समाज, खासकर पुरुषवादी समाज अपने अलग-अलग नैतिक मूल्यों के हिसाब से देख रहा है. जैसे, कि सीमा हैदर के मामले को एक जीत की तरह दिखाया जा रहा है, विक्ट्री की तरह सेलिब्रेट किया जा रहा है, अब वहीं सोचिए कि पाकिस्तान से कोई जावेद आता और यहां की किसी रजनी या रश्मि से शादी करता तो फिर हमारी क्या प्रतिक्रिया आती? तीन देशों को पार कर आय़ी सीमा हैदर के मामले को सेक्योरिटी या कानून के ऐंगल से देखने की जगह हम लोग दूसरे नजरिए से काम ले रहे हैं. यह दो व्यक्तियों के बीच हुए प्रेम संबंध, जो बिल्कुल उनका निजी मामला है, की तरह ही देखा जाना चाहिए. हां, उसके साथ ही दो देशों के बीच इससे होनेवाली अड़चन या निजी संबंध से राष्ट्र-राज्य के कानून पर पड़नेवाले असर के हिसाब से भी इसे देखना चाहिए. यह कानून का मामला है. हम समाचारों में देख पा रहे हैं कि कई जगहों पर सीमा को जासूस भी बताया जा रहा है. हालांकि, किसी भी कहानी की कई परतें होती हैं और यह पूरा मामला दरअसल हमारे समाज की किसी भी घटना को उसकी तहों में, पूर्ण सम्यकता के साथ देखने की जगह एक शब्द में फिट कर देने की हमारी लिप्सा को भी दिखाता है. 



बेवफाई बहुत जटिल शब्द


आप ज्योति मौर्य का मामला लीजिए. दरअसल, उस पूरे मामले में एक जोड़े के बीच व्यक्तिगत मतभेद, महत्वाकांक्षा, आगे का रास्ता चुनने की उनकी स्वतंत्रता और वैवाहिक जटिलताओं के पेंचों को देखा ही नहीं गया है, जबकि वह पूरा मसला है ही वही. यहां भी आप वही सोचिए कि ज्योति मौर्य की जगह कोई पुरुष होता. ऐसे तमाम उदाहरण आपको मिल जाएंगे, और तमाम जब मैं कह रहा हूं, तो उसका अर्थ है कि ऐसे उदाहरण बहुतायत में हैं, जब पुरुष पद या प्रतिष्ठा में जब बेहतर मुकाम पर पहुंच जाता है तो वह अपनी पत्नी को तलाक देता है, अलग हो जाता है, कई बार तो यह भी होता है पहली पत्नी को तलाक दिए बिना भी वह दूसरी महिला के साथ रहने लगता है. ज्योति के मामले में जो एक शब्द आ रहा है बारहां, वह है- बेवफाई. अब बेवफाई बड़ा जटिल शब्द है. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया हो या तकनीक की बढ़ती दखल, समाज में बदलाव हो रहे हैं, इस वजह से सामाजिक मूल्यों मे भी बदलाव हो रहे हैं और इसी वजह से हमारे विवाह, नातेदारी और संबंधों में भी परिवर्तन हो रहा है.



हालांकि, हम पुरुषों की अनैतिकता की बहुत बात नहीं करते. इसलिए नहीं करते, क्योंकि समाज कहीं न कहीं उस बात से सहज हो चुका है, स्वीकार चुका है. हां, अगर कोई महिला ऐसे मामले में इनवॉल्व है, तो हम तुरंत कंगारू-कोर्ट सजा लेते हैं. दो व्यक्तियों के बीच परस्पर मनमुटाव के कई कारण होते हैं. आकर्षण की कमी होना, आर्थिक कारण, सामाजिक कारण सभी इसमें शामिल होते हैं. मीडिया की खबरों के आधार पर जो हम किसी को सही और गलत ठहराने की जिम्मेदारी ले चुके हैं, उससे हमें बचना चाहिए. 


निजता का हमारे समाज में अब नहीं महत्व


हमारे समाज में अब निजता का कोई वैल्यू नहीं रहा है. सामाजिक बदलाव की कई तरह की प्रक्रियाएं जो चल रही हैं, जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं, उसमें निजता की हमारी सोच भी प्रभावित हुई है. जो बातें हम पहले बाहर नहीं लाते थे, घर की चारदीवारी के अंदर रखते थे, आज सोशल मीडिया के जमाने में हम दूसरों की जिंदगी को सीधा पेश कर देने में कोई दिक्कत नहीं मानते. कई बार हमें मार्केट-ड्रिवेन फोर्सेज इस तरह से प्रेरित भी करती हैं कि निजता को छोड़कर हम उसे पब्लिक कंजम्पशन का मामला बना दें. लोगों को जो अपने आप को, उनकी आइडेंटिटी को अभिव्यक्त  करने का जो मौका मिला है, उसे छोड़ना वह नहीं चाहते हैं. इंस्टाग्राम, वीडियो ब्लॉग्स, रील वगैरह को जिस तरह की तवज्जो मिल रही है, जिस तरह का प्रचार मिल रहा है, वह हमारे समाज का ही तो दर्पण है. ये दोनों ही मसले ऐसे हैं, जिसे कानूनी हिसाब से देखना चाहिए. कई बार सामाजिक तौर पर बहुत ठीक होते हुए भी कोई बात कानूनी तौर पर सही नहीं होती.


यह सवाल बहुत ही 'वैल्यू लोडेड' है कि ज्योति या सीमा में कौन अनैतिक है, या कौन गलत है, समाजशास्त्रीय ढंग से देखें तो एक धारा को चुन कर दूसरे को गलत ठहराना माफिक नहीं होगा, क्योंकि इन दोनों ही प्रकरणों की कई सतहें है, कई परतें हैं. उसी तरह जहां तक समाज और उसके रिएक्शन की बात है, तो वह भी हमें एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ देखना होगा. समाज बदलाव की विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजर रहा है. हमारा समाज जिस तरह से आधुनिक हो रहा है, वह काफी हाइब्रिड किस्म का है. मतलब, मिले-जुले. हम अपनी पुरातन परंपरा को छोड़ भी नहीं पा रहे हैं, हां कुछ नई चीजों को अपना जरूर ले रहे हैं. इसका जो फाइनल प्रोडक्ट है, वह अधपका कचरा जैसा है. तो, जिस तरह इन दोनों महिलाओं के बारे में ओपिनियटेड होकर लोग फैसला सुना रहे हैं, वह हमारे खिचड़ी समाज को ही दिखाता है. यहां हम कह सकते हैं कि कुछ पुरातन मूल्यों का पतन भी हुआ है, लेकिन कुछ बाकी आधुनिक मूल्य जो हैं, उनको भी हम नहीं अपना सके हैं. यही हमारे सोशल मीडिया पर व्यवहार को दिखाता भी है औऱ यही उसकी व्याख्या भी है. 



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